भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद खोला गया ऐतिहासिक गुरुद्वारा चोवा साहिब

भारत और पाकिस्तान विभाजन के बाद पाकिस्तान ने पंजाब प्रांत के ऐतिहासिक गुरुद्वारा चोवा साहिब के दरवाजे खोल दिए हैं. वहीं भारत समेत दुनिया भर के सिख श्रद्धालु जा सकेंगे. लेकिन यह कदम नवंबर में गुरु नानक देव की 550वीं जयंती के मद्देनजर उठाया गया है. जहां गुरुद्वारा 1947 में पंजाब प्रांत के झेलम जिले में सिख समुदाय के पाकिस्तान से पलायन के बाद से राज्य की अनदेखी की वजह से बंद था.

 

बतादें की यूनेस्को (UNESCO) के विश्व धरोहर साइट रोहतास फोर्ट के करीब स्थित गुरुद्वारा चोवा साहिब को कई उच्चाधिकारियों और समुदाय के सदस्यों की उपस्थिति में एक रंगारंग कार्यक्रम के साथ दोबारा खोला गया. जहां इस कार्यक्रम की शुरुआत अरदास और कीर्तन के साथ हुई.

गैजेट्स का इस्तेमाल बना ‘रिपिटेटिव इंजरी’ की वजह

जहां के इस मौके पर पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के पवित्र स्थानों की देखरेख करने वाले इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ETPB) के अध्यक्ष डॉ. आमेर अहमद मुख्य अतिथि थे. वहीं, पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (PSGPC) के अध्यक्ष सरदार सतवंत सिंह भी मौजूद थे.

इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ETPB) के प्रवक्ता आमिर हाशमी ने बताया कि गुरुद्वारा चोवा साहिब दरवाजा दर्शन के लिए खोला गया है, जहां भारत समेत दुनिया भर के सिख समुदाय आ सकते हैं. उन्होंने कहा कि इस ऐतिहासिक जगह पर घूमने आने के लिए उनका स्वागत है. साथ ही कहा कि गुरुद्वारा का जीर्णोद्धार का काम चल रहा है.

दरअसल यह गुरुद्वारा 1834 में बनकर तैयार हुआ था. ऐसा माना जाता है कि गुरु नानक जो पास के तिल्ला जोगियन मंदिरों से लौट रहे थे और इसी स्थान पर रुके थे, जो उस समय सूखे की स्थिति से जूझ रहा था. ऐसा कहा जाता है कि गुरु नानक ने अपने बेंत से पृथ्वी पर प्रहार किया था तब एक पत्थर निकला जिससे क्षेत्र में एक नेचुरल वाटर स्प्रिंग (चोवा) का पता चला था. लेकिन पाकिस्तान ने पूर्वी शहर सियालकोट में सदियों पुराने शवला तेज सिंह मंदिर को भी पूजा के लिए खोल दिया है. स्थानीय हिंदू की मांग पर विभाजन के 72 साल बाद इस मंदिर को फिर से खोला गया.

 

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