भगवान शिव के इस मंदिर में होते हैं ऐसे चमत्कार, जिसे देख विज्ञान भी है हैरान…

पिथौरागढ़ के सोर घाटी स्थित मोस्टामानू मंदिर इस शहर के सबसे दिव्य स्थलों में से एक मन जाता है।

विज्ञान की मानें तो जो पत्थर ऊंगलियों के दम पर उठा लिया जाए उसे अकेले उठाना बच्चों का खेल माना जाता है लेकिन उस शिव मंदिर में विज्ञान का सिद्धांत भी फेल हो जाता है।

बता दें कि, मोस्टा देवता को सोर घाटी क्षेत्र में वर्षा के देवता के रूप में पूजा जाता है।

हर साल मोस्टामानू मंदिर परिसर में एक मेले का आयोजन किया जाता है, जहां रखे विशाल पत्थर उठाने की होड़ लगी रहती है।

मान्यता है कि इस पत्थर को उठाने वाले की मनोकामना पूरी होती है, जिसे लेकर युवा सुबह से ही पत्थर उठाने में जुटे रहते हैं।

भगवान शिव

हर साल इसमें से कुछ तो सफल रहते हैं और कुछ के हाथ मायूसी लगती है लेकिन सभी वर्ग के लोग इस मेले में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।

मोस्टामानू मंदिर के परिसर में पहुंचते ही मन को असीम शांति मिलती है।

चारों ओर से पर्वत शिखरों, चौड़ी-चौड़ी घाटियों से घिरे इस मंदिर से पूरे सोर के दर्शन होते हैं। बता दें कि इस मंदिर की स्थापना के पीछे एक रोचक कथा जुड़ी है।

मान्यता है कि मोस्टादेवता वर्षा के देवता हैं। उन्हें इंद्र का पुत्र माना जाता है। माना जाता है कालिका मोस्टा देवता की माता हैं। मान्यता तो यह भी है कि कालिका जी भूलोक में मोस्टा देवता के साथ निवास करती हैं।

इंद्र ने पृथ्वी लोक में उसे भोग प्राप्त करने हेतु मोस्टा को अपना उत्तराधिकारी बनाया। दंत कथाओं में कहा जाता है कि इस देवता के साथ चौंसठ योगिनी, बावन वीर, आठ सहस्त्र मशान रहते हैं।

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कहते हैं भुंटनी बयाल नामक आंधी-तूफान उसके बस में हैं वो जब चाहें उसे ला सकते हैं। शिव की तरह मोस्टा देवता अगर रूठ जाएं तो वे सर्वनाश कर देते हैं।

मान्यता है वहां जिस पत्थर को ऊंगलियों के दम पर उठा लिया जाता है, उसे बड़े से बड़े बाहुबली भी नहीं उठा पाते हैं और वो भी तब तक जब तक शिव के मंत्रों का जाप ना किया जाए।

लोगों का दावा है कि बाहुबली भी उस पत्थर को हिला नहीं पाता, वहीं महादेव का नाम लेकर कोई भी उसे ऊंगलियों पर उठा सकता है।

ये चमत्कार शिव के धाम में है। उस जाप में है या उस पत्थर में है। इसका पता तो वैज्ञानिक भी नहीं लगा पाए।

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