बड़ी ही रोचक है भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र मिलने की कथा

भगवान विष्णुभगवान विष्णु और शिव से जुड़ी अनेक कथाएं हमारे धर्म ग्रंथों और पुराणों में मिलती है। ऐसी ही एक कथा है, कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी से जुड़ी हुई। इस दिन बैकुंठ चतुर्दशी पर्व भी बनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु व शिव की पूजा करने का विधान है।

पुराणों में इस व्रत से जुड़ी कथा इस प्रकार है:-

एक बार भगवान विष्णु और शिवजी का पूजन व अभिषेक करने के लिए काशी आये। यहां मणिकार्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने एक हजार स्वर्ण कमल फूलों से भगवान शिव की पूजा का संकल्प लिया। अभिषेक करने के बाद जब भगवान विष्णु पूजन करने लगे तो भोलेनाथ जी ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए कमल का एक फूल छुपा लिया।

राहुकाल… दिन का वो हिस्सा जो बिगाड़ देता है बना बनाया खेल

यह देखकर भगवान विष्णु आश्चर्य में पड़ गए कि एक पुष्प कम कैसे हो गया। तभी उन्हें विचार आया कि मेरी आंखें ही कमल के समान हैं इसलिए मुझे कमलनयन और पुण्डरीकाक्ष कहा जाता है। एक कमल के फूल के स्थान पर मैं अपनी आँख ही चढ़ा देता हूं। ऐसा सोचकर भगवान विष्णु जैसे ही अपनी आँख भगवान शिव को चढ़ाने के लिए तैयार हुए, वैसे ही शिवजी प्रकट होकर बोले- हे! विष्णु रुक जाईये कमल पुष्प मैंने ही कम किया था आप की परीक्षा लेने के लिए। लेकिन अब सिद्ध हो गया है कि तुम्हारे समान संसार में कोई दूसरा मेरा भक्त नहीं है।

इस मंत्र में है इतनी ताकत, एक बार बोलने से ही दूर होती है बड़ी से बड़ी बाधा

आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब से बैंकुठ चतुर्दशी के नाम से जानी जाएगी। इस दिन व्रत पूर्वक जो पहले आपका और बाद में मेरा पूजन करेगा और बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। तब प्रसन्न होकर शिवजी ने भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र भी प्रदान किया और कहा कि यह चक्र राक्षसों का विनाश करने वाला होगा। तीनों लोकों में इसकी बराबरी करने वाला कोई अस्त्र नहीं होगा।

LIVE TV