महज 20 रुपये के लिए मौत को लांघते थे बागपत के ये गरीब

बागपतरीता सिंह

बागपत। बागपत के काठा गांव में यमुना में डूबकर हुई मौतों में अधिकांश मजदूर थे। वह काठा गांव के रहने वाले थे। गांव में मजदूरी करने पर उन्हें 130 रुपये मिलते थे। इसमें उनका परिवार चल पाना संभव नहीं था। मनरेगा भी इन्हें रोजगार नहीं दे रही थी। उधर हरियाणा में इन्हें उप्र से बीस रुपये अधिक डेढ़ सौ रुपये मजदूरी मिल रही थी। इन गरीबों ने ईमानदारी के बीस रुपये अधिक कमाने के लिए यमुना को पार करने का खतरा उठा रखा था। लेकिन ,बेचारे उन्हें क्या पता था कि गुरुवार को उनका यही खतरा हकीकत में उनकी जान ले लेगा। नाव में अधिक लोग सवार हो गए और नाव डूब गई। दर्जनों मजदूरों की मौत हो गई।

इस घटना से जिला प्रशासन कें उस दावे की भी कलई खुल गई कि बागपत के मजदूर मनरेगा की 175 रुपये की मजदूरी में रुचि नहीं लेते। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार बागपत के कुल 245 गांवों में से काठा सरीखे 200 गांवों में मनरेगा बंद पड़ी है। हकीकत यह है कि यहां के मजदूर डेढ़ सौ रुपये में हरियाणा में मजदूरी कर रहे हैं। जिले में मनरेगा के लिए चयनित कुल 40 हजार मजदूरों में से 12,598 मजदूरों को ही रोजगार दिया जा रहा है। कुल चार करोड़ के बजट में से एक करोड़ रुपये भी खर्च नहीं किए गए हैं।

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गांव वाले बताते हैं, बागपत में यमुना पार करने के लिए लोगों के पास गौरीपुर-सोनीपत हाईवे पर बने पुल के अलावा और कोई जरिया नहीं है। जिले के तमाम घाटों पर अवैध रूप से नाव चलाई जा रही है और अफसर देखकर भी अनजान हैं। गुरुवार को हुए हादसे के बाद सरकारी तंत्र की नींद टूट गई और कार्रवाई का राग अलापती नजर आई। गांव के ही इस्लाम बताते हैं,बागपत के अलावा सांकरौद, काठा, कोताना, छपरौली, टांडा आदि कई जगह यमुना पर घाट हैं, जहां उप्र और हरियाणा के बीच दोनों ओर के किसान, मजदूर व अन्य यात्री इधर-उधर सफर करते हैं। इन घाटों का नगर पालिका और नगर पंचायतें ठेका भी छोड़ती हैं, लेकिन वर्तमान की बात करें तो इनमें से ज्यादातर घाटों पर हरियाणा के ठेकेदार अवैध रूप से नाव चला रहे हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि अवैध संचालन के खेल में निचले स्तर के अधिकारियों का अधिक हस्तक्षेप होता है। नाव चलाने के पीछे भी बड़ा खेल चलता है। यही वजह है, इन घाटों पर नावों चलाने के लिए कभी कोई अंकुश नहीं लगाया जाता है। यदि नाव न चलाई जाए तो प्रतिदिन सैकड़ों लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने कई-कई किमी. घूमकर अपने गंतव्यों तक पहुंचना पड़ता है।

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वैसे,यमुना की धार ने पहले भी कई घरों के चिराग बुझाए हैं। मसलन,करीब नौ साल पहले छपरौली यमुना खादर में नाव डूबने से दो युवकों की मौत हो गई थी। इसके अलावा बागपत और सांकरौद में भी अनहोनी हुई है। इन घटनाओं के बाद भी सरकारी तंत्र ने कभी कोई ध्यान नहीं दिया। नावों में ढोए जाते हैं वाहन और पशु। इन सभी घाटों पर चलने वाली नावों में वाहनों और पशुओं को भी ढोया जाता है। इसके अलावा शराब तस्करी का भी नाव सबसे अहम जरिया है। रातों-रात हरियाणा की ओर से शराब तस्करी कर यूपी की ओर लाई जाती है।‘मनरेगा में काम करने के लिए सभी ग्रामीणों को अवसर दिया गया है। कोई भी कार्य करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन ग्रामीणों का मनरेगा में रुझान कम है।

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