बरसाना : भगवान कृष्‍ण की ससुराल है येे

राधारानी के गांव बरसाना से कृष्ण का काफी लगाव रहा है। चूंकि राधारानी इसी गांव की हैं इसलिए इसे ब्रजमंडल में प्रमुख स्थान प्राप्त है। बरसाना का पुराना नाम बृहत्सानु, ब्रहसानु या वृषभानुपुर था। यह नगर पहाड़ी पर बसा है जिसे साक्षात ब्रह्मा का स्वरूप माना जाता है। इसके चार शिखर ब्रह्मा के चार मुख माने जाते हैं।

बरसाना

बरसाना के बीचो-बीच एक पहाड़ी है जो कि बरसाने के मस्तिष्‍क पर आभूषण के समान है। उसी के ऊपर राधा रानी मंदिर है और इस मंदिर को बरसाने की लाड़ली जी का मंदिर भी कहा जाता है। राधा का प्राचीन मंदिर मध्यकालीन है जो लाल और पीले पत्थर का बना है। राधा-कृष्ण को समर्पित इस भव्य और सुन्दर मंदिर का निर्माण राजा वीर सिंह 1675 में करवाया था।

बरसाना असल ससुराल हमारो न्यारो नातो

मतलब बरसाना तो हमारी असली ससुराल है! आज तक नन्दगाँव और बरसाने का सम्बन्ध चल रहा है जो होली के दिन दिखाई पड़ता है। सुसराल में होली खेलने आते हैं नन्दलाल और गोपियाँ लट्ठ मारती हैं। वो लट्ठ की मार को ढाल से रोकते हैं और बरसाने की गाली खाते हैं।  यहाँ मंदिर में हर साल नन्दगाँव के गोसाईं आते हैं और बरसाने की नारियाँ सब को गाली देती हैं।  इस पर नन्दगाँव के सब कहते हैं “वाह वाह वाह!”

इसका मतलब कि और गाली दो। ऐसी यहाँ की प्रेम की लीला है। बरसाने की लाठी बड़ी खुशी से खाते हैं , उछल – उछल के और बोलते हैं कि जो इस पिटने में स्वाद आता है वो किसी में भी नहीं आता है। बरसाने की गाली और बरसाने की पिटाई से नन्दगाँव वाले बड़े प्रसन्न होते हैं। ऐसा सम्बन्ध है बरसाना और नन्दगाँव में।

साँकरी खोर में दान लीला भी सुना देते हैं। साँकरी खोर की लीला सुना रहे हैं। इसे मन से व भाव से सुनो। ध्यान लगाकर सुनोगे तो लीला दिखाई देगी। साँकरी खोर में गोपियाँ जा रही हैं। दही की मटकी है सर पर। वहाँ श्री कृष्ण मिले। कृष्ण के मिलने के बाद वो कृष्ण के रूप से मोहित हो जाती हैं और लौट के कहती हैं कि वो नील कमल सा नील चाँद सा मुख वाला कहाँ गया ? अपनी सखी से कहती हैं कि मैं साँकरी खोर गयी थी।

राधा जी को प्यार से बरसाना के लोग ललि जी और वृषभानु दुलारी भी कहते हैं। राधाजी के पिता का नाम वृषभानु और उनकी माताजी का नाम कीर्ति था। राधा रानी का मंदिर बहुत ही सुन्दर और मनमोहक है। राधा रानी मंदिर क़रीब ढाई सौ मीटर ऊंची पहाड़ी पर बना है और इस मंदिर में जाने के लिए सैकड़ों सीढ़ियां चढ़नी पढ़ती है।

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बरसाना-नंदगांव मार्ग पर संकेत नामक स्थान है। जहाँ किंवदंती के अनुसार कृष्ण और राधा का प्रथम मिलन हुआ था। इसी प्रकार फाल्गुन शुक्ल अष्टमी, नवमी एवं दशमी को आकर्षक लीला होती है। लाड़ली जी के मंदिर में राधाष्टमी का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार भद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है।

बरसाने में राधाष्टमी का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। राधाष्टमी के दिन राधा रानी मंदिर को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। राधाष्टमी का पर्व जन्माष्टमी के 15 दिन बाद भद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। राधाष्टमी पर्व बरसाना वासियों के लिए अति महत्त्वपूर्ण है। राधाष्टमी के दिन राधा जी के मंदिर को फूलों और फलों से सजाया जाता है।

पूरे बरसाने में इस दिन उत्सव का महौल होता है। राधाष्टमी के उत्सव में राधाजी को लड्डुओं का भोग लगाया जाता है और उस भोग को मोर को खिला दिया जाता है। राधा रानी को छप्पन प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है और इसे बाद में मोर को खिला दिया जाता है। मोर को राधा-कृष्ण का स्वरूप माना जाता है। बाकी प्रसाद को श्रद्धालुओं में बांट दिया जाता है। राधा रानी मंदिर में श्रद्धालु बधाई गान गाते है और नाच गाकर राधाष्टमी का त्योहार मनाते हैं। राधाष्टमी के उत्सव के लिए राधाजी के महल को काफ़ी दिन पहले से सजाया जाता है। राधाष्टमी के पर्व पर श्रद्धालु गहवरवन की परिक्रमा भी लगाते हैं। राधाष्टमी के अवसर पर राधा रानी मंदिर के सामने मेला लगाता है।

बरसाना की लट्ठमार होली

बरसाने में होली का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। बरसाना में लट्ठमार होली की शुरुआत सोलहवीं शताब्दी में हुई थी। तब से बरसाना में यह परंपरा यूं ही निभाई जा रही है, जिसके अनुसार बसंत पंचमी के दिन मंदिर में होली का डांढ़ा गड़ जाने के बाद हर शाम गोस्वामी समाज के लोग धमार गायन करते हैं। प्रसाद में दर्शनार्थियों पर गुलाल बरसाया जाता है।

इस दिन राधा जी के मंदिर से पहली चौपाई निकाली जाती है जिसके पीछे-पीछे गोस्वामी समाज के पुरुष झांडा-मंजीरे बजाते हुए होली के पद गाते चलते हैं। बरसाना की रंगीली गली से होकर बाज़ारों से रंग उड़ाती हुई यह चौपाई सभी को होली के आगमन का एहसास करा देती है। मंदिर में पंडे की अच्छी ख़ासी खातिर की जाती है।

यहाँ तक कि उस पर क्विंटल के हिसाब से लड्डू बरसाए जाते हैं जिसे पांडे लीला कहा जाता है। श्रद्धालु राधा जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मंदिर में होती हैं तो उन पर वहाँ के सेवायत चारों तरफ से केसर और इत्र पडे टेसू के रंग और गुलाल की बौछार करते हैं। मंदिर का लंबा चौड़ा प्रांगण रंग-गुलाल से सराबोर हो जाता है।

कैसे पहुंचें

मथुरा उत्तर प्रदेश और देश के प्रमुख शहरों मसलन दिल्ली, आगरा, मुंबई, जयपुर, ग्वालियर, हैदराबाद, चेन्नै, लखनऊ से जुड़ा हुआ है। प्रमुख रेलवे स्टेशन: मथुरा जंक्शन (उत्तर-मध्य रेलवे) और मथुरा कैंट (उत्तर-पूर्व रेलवे) सड़क मार्ग से मथुरा नेशनल हाईवे के जरिये सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।

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