बच्‍चों पर एक और जानलेवा बीमारी का मंडराया खतरा सामने आए मामले…

पूरी दुनिया जहां अभी तक जानलेवा कोरोना वायरस से निजात नहीं पा सकी है कि वहीं कुछ देशों में एक और जानलेवा वायरस के बच्‍चों पर हो रहे हमले ने डॉक्‍टरों को परेशान कर दिया है। अमेरिका समेत ब्रिटेन में ऐसे करीब 200 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं जिनमें बच्‍चों के अंदर इस तरह की जानलेवा बीमारी का पता लगा है। अमेरिका में इसकी वजह से अब तक पांच बच्‍चों की जान तक चली गई है। वहीं ब्रिटेन में भी एक 14 वर्षीय किशोर की जान इसकी वजह से चली गई है। केले अमेरिका में ही ऐसे करीब 102 मामले सामने आ चुके हैं।

आपको बता दें कि अमेरिका दुनिया में कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित देश है। इसके मरीज ही नहीं बल्कि इससे होने वाली मौतों के मामले में भी अमेरिका पहले नंबर पर है। यहां पर कोरोना की दवा बनाने को लेकर डॉक्‍टर रात-दिन एक किए हुए हैं। इसके अलावा कुछ दवाइयों का क्‍लीनिकल ट्रायल भी शुरू कर दिया गया है लेकिन इनका रिजल्‍ट आने और इन्‍हें आम लोगों तक पहुंचने में डेढ़ वर्ष तक का समय लग सकता है। ऐसे में डॉक्‍टरों के सामने बच्‍चों को ही रही जानलेवा बीमारी से हर कोई परेशान है।

सावधान रहें पेरेंट्स

यॉर्क के गवर्नर कुओमो के मुताबिक देश के 14 राज्‍यों में डॉक्‍टर बच्‍चों में हो रही ऐसी बीमारी की जांच करने में जुटे हैं जिसका संबंध कोरोना वायरस से हो सकता है। उन्‍होंने पेरेंट्स को भी इस बीमारी के प्रति सजग रहने और कोई भी लक्षण दिखाई देने पर तुरंत डॉक्‍टर से संपर्क करने की अपील भी की है।

कावासाकी डिजीज के लक्षण

आपको बता दें कि इस तरह के मामले की शुरुआत कुछ समय पहले कनाडा से हुई थी। वहां पर कोरोना से पीड़ित बच्‍चों में इस तरह के लक्षण सामने आए थे जो इंफ्लेमेटरी डिजीज या कावासाकी डिजीज शॉक सिंड्रोम (Kawasaki disease shock syndrome) से मिलते जुलते हैं। डॉक्‍टरों के मुताबिक ये काफी गंभीर बीमारी होती है। इसमें बच्‍चों के शरीर पर लाल रंग के चकत्‍ते उभर आते हैं और आंखें लाल हो जाती हैं। इसके अलावा पेट में तेज दर्द के साथ बुखार, गले की ग्‍लैंड्स में सूजन और होंठों के सूखकर फट जाने जैसे लक्षण भी इसमें शामिल हैं।

16 वर्ष तक के बच्‍चों में लक्षण

यूं तो ये बीमारी 5 वर्ष या इससे कम बच्‍चों को अपनी चपेट मे लेती है। लेकिन वर्तमान में इस तरह के लक्षण 16 वर्ष के किशोरों में सामने आ रहे हैं। सीबीएस न्‍यूज ने डॉक्‍टरों के हवाले से लिखा है कि वायरल इंफेक्‍शन होने पर भी ये बीमारी बच्‍चों को घेर सकती है। कुओमो के मुताबिक उनके मुताबिक अमेरिका के दूसरे राज्‍यों में भी इसको लेकर कवायद शुरू हो गई है ताकि इससे लड़ने के लिए एक राष्ट्रीय मानदंड तैयार किए जा सकें।

अमेरिका में अब तक सामने आ चुके ऐसे मरीजों में से करीब 71 फीसद को आइसीयू, 19 फीसद को इंटुबैशन में रखा गया है। इस प्रक्रिया में मरीज के शरीर में एक नली डाली जाती है। इसका मकसद मरीज को दवाई देने के लिए शरीर के अंदर हवा का मार्ग साफ करना होता है। इस नली को डालने से पहले मरीज को एनेसथीसिया दिया जाता है जिससे मरीज को इस दौरान होने वाली पीड़ा महसूस नहीं होती। ये प्रक्रिया अकसर गंभीर रोगियों को बचाने के लिए अपनाई जाती है।

यूरोप के दूसरे देशों में भी सामने आए मामले

बीबीसी की मानें तो इस तरह के दुलर्भ मामले यूरोप के दूसरे देशों में भी सामने आए हैं। इस बीमारी का प्रभाव बच्‍चे के इम्‍यून सिस्‍टम पर पड़ता है और इसकी वजह शरीर वायरस के खिलाफ काफी देर से प्रतिक्रिया कर पाता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल में ऐसे मामलों की शुरुआत हुई थी और इसकी वजह से एक 14 साल के एक किशोर की जान भी चली गई है। इसमें कहा गया है कि जिन बच्‍चों को इस बीमारी के चलते अस्‍पतालों में भर्ती कराया गया है उनमें पहले सांस लेने की तकलीफ जैसी परेशानी पहले नहीं रही है। अब तक अस्‍पताल में भर्ती हुए करीब सात बच्‍चों को वेंटिलेटर पर भी रखा जा चुका है। कोरोना महामारी के बीच इस दुलर्भ बीमारी ने ब्रिटेन के डॉक्‍टरों को भी परेशान कर दिया है।

कोरोना और दुर्लभ बीमारी में संबंध

लंदन के इंपीरियल कॉलेज क्‍लीनिकल लेक्‍चरर डॉक्‍टर लिज व्‍हीटेकर के मुताबिक ये दुलर्भ बीमारी कोरोना महामारी के दौरान सामने आई है। उनका मानना है कि इन दोनों का आपस में कोई न कोई संबंध जरूर हो सकता है। उनका ये भी कहना है कि इस दौर में जब कोरोना महामारी अपने चरम पर है तो आने वाले कुछ सप्‍ताह के बाद ये दुर्लभ बीमारी का प्रकोप भी बढ़ सकता है। उनका कहना है कि अभी ये पोस्‍ट इंफेक्शियस फिनोमिनन हो सकता है।

 

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