जो विनम्र हैं वे अपनी सज्जनता का सुफल पाकर रहते हैं

नदी के किनारे एक विशाल शमी का वृक्ष था, एक बेंत का पेड़ भी था जिसकी लताएँ फैली हुयी थीं। एक दिन नदी में भयंकर बाढ़ आई। प्रवाह प्रचंड था, शमी सोचता था कि उसकी जड़ें तो गहरी और मजबूत हैं ,मेरा क्या नुकसान होगा।

प्रेरक प्रसंग

इसी बीच लहरों ने जड़ों के नीचे की मिट्टी काटनी शुरू कर दी। हर लहर मिट्टी खिसका देती और बहा ले जाती। देखते- देखते वृक्ष उखड़ गया।

देखने वालों ने अगले दिन पाया की वृक्ष उखड़ा पड़ा है। उसकी जड़ों ने हाथ खड़े कर दिए और वह अब शांत हो चुकी नदी के किनारे असहाय पड़ा था।

बेंत का पेड़ भी उसी वक्त बाढ़ से जूझा। जब बाढ़ का प्रवाह तेज हुआ तो वह झुक गया और मिट्टी की सतह पर लेट गया।

गरजता पानी उसके ऊपर से गुजर गया। बाढ़ उतरने पर उसने पाया कि वह तो सुरक्षित है पर उसका पड़ोसी उखड़ा पड़ा है।

देखने वाले चर्चा कर रहे थे कि अहंकारी, अक्खड़ और अदूरदर्शी जो समय की गति को नहीं पहचान पाते, इसी तरह समय के प्रवाह से उखड़ जाते हैं।

जो विनम्र हैं, झुकते हैं, अनावश्यक टकराते नहीं, तालमेल बिठा लेते हैं वे अपनी सज्जनता का सुफल पाकर रहते हैं।

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