प्रेरक प्रसंग : आचार्य विनोबा भावे
आचार्य विनोबा भावे ने एक बार योजना आयोग की बैठक में पक्षपात किये जाने का भी आह्वाहन किया था। नई दिल्ली में योजना आयोग की एक बैठक थी और विनोबा जी ने अपने विचार स्पष्ठता से रखे कि:-
कोई भी राष्ट्रीय योजना तब तक राष्ट्रीय कहलाने की हकदार नहीं हो सकती जब तक वह अपने देश के सभी लोगों को पूरा काम न दे सके। ‘राष्ट्रीय योजना’ अर्थात’ नेशनल प्लानिंग’ का यह बुनियादी उसूल होना चाहिये कि सबको काम देने की जिम्मेदारी हमारी है। ‘सबको काम और सबको रोटी’ यह सिद्धांत होना चाहिये।
विनोबा जी के इन विचारों को सुनकर योजना आयोग के किसी सदस्य ने तत्कालिक टिप्पणी की कि:-
‘नेशनल प्लानिंग’ का अर्थ यह नहीं है कि समूचे देश में मात्र यही प्लानिंग लागू होगी अपितु अन्य योजनाऐं भी साथ साथ लागू होंगी इसलिये इसे कह सकते हैं कि यह ‘पार्शियल प्लानिंग’ अर्थात (आंशिक नियोजन) है। अब इसमें किसी न किसी वर्ग की कुछ अनदेखी तो होगी ही।
विनोबा जी के इस विनोदपूर्ण उत्तर को सुनकर योजना आयोग के सभी सदस्य अवाक् से रह गये परन्तु मुस्कुराये बगैर नहीं रह सके।