प्रेरक-प्रसंग : रविन्द्रनाथ टैगोर
रविन्द्रनाथ टैगोर विचारक ही नही, बल्कि शांत साधक थे। वे भयमुक्त थे। उनका स्वभाव शांत थे। वह काफी कम बात किया करते थे। कुछ लोग रविन्द्रनाथ टैगोर जी की निंदा करते थे।
एक बार शरत् बाबू ने टैगोर से कहा, ‘मुझे आपकी निंदा सुनी नहीं जाती। आप अपनी आधारहीन आलोचना का प्रतिकार करें। टैगोर ने शांत भाव से इस बात को सुना और कहा, तुम जानते हो मैं निंदक और आलोचकों के स्तर तक नहीं जा सकता। मेरा अपना स्तर है। उसको छोड़कर मैं आलोचकों के स्तर तक जाऊं तभी उसका प्रतिकार हो सकता है। में ऐसा कभी नहीं चाहूंगा।’
अर्थात : निंदकों और आलोचकों से बचने का सबसे आसान तरीका यही है कि उनकी निरर्थक बातों का कोई जबाव नहीं दिया जाए।