प्रेरक-प्रसंग : नेताजी सुभाष चंद्र बोस

प्रेरक-प्रसंगभारत की आज़ादी के लिए ‘आज़ाद हिन्द फौज’ का संगठन बहुत अच्छा बन गया था और वह बड़े हौसले से काम कर रही थी। अकस्मात एक दिन साम्प्रदायिक विद्वेष भड़क उठा। हिन्दुओं का कहना था कि रसोई में गाय का मांस नहीं बनेगा। दूसरी ओर मुसलमानों का आग्रह था कि सूअर का मांस नहीं बनेगा।

दोनों की अपनी-अपनी भावना थी, अपने-अपने तर्क थे। कोई भी पक्ष झुकने को तैयार नहीं था।
विवाद ने उग्र रुप धारण कर लिया। समझौता असंभव हो गया तो बात नेताजी तक पहुंची।

नेताजी ने दोनों पक्षों की बात बड़े ध्यान से सुनी। उनकी भावना को गहराई से समझा और अगले दिन निर्णय देने को कहा। चूंकि वह आज़ाद हिन्द फौज के शीर्ष स्थान पर थे, अत: उनका निर्णय अंतिम था।

अगला दिन आया। नेताजी का निर्णय जानने के लिए लोगों की उत्सुकता चरम सीमा पर थी।
नेताजी ने जो निर्णय दिया, उसकी स्वप्न में भी किसी ने कल्पना नहीं की थी। उन्होंने कहा, “आगे से हमारे मैस में न गाय का मांस पकेगा, न सूअर का।”

नेताजी की दूरदर्शिता से एक बहुत बड़ा संकट टल गया और दोनों पक्ष संतुष्ट हो गये।

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