प्रेरक-प्रसंग : जब रो पड़े महात्मा बुद्ध

प्रेरक-प्रसंग महात्मा बुद्ध भ्रमण पर थे। काफी थक गए थे। रास्ते में एक आम का बगीचा दिखाई दिया। वे वहां रुक गए। नीचे गिरे हुए मीठे आम खाए और आराम करने लगे। तभी वहां कुछ युवकों का झुंड आया। युवक पत्थर मारकर पेड़ पर लगे हुए आम गिराने लगे। पेड़ के दूसरी तरफ महात्मा बुद्ध आराम कर रहे थे।

एक युवक ने पत्थर फेंका तो वह आम को न लगकर बुद्ध के माथे पर जा लगा। उनके माथे से खून बहने लगा। यह देखकर युवक भयभीत हो गए और अपराधबोध से ग्रस्त होकर बुद्ध के पास आकर उनसे माफी मांगने लगे।

बुद्ध की आंखों में आंसू आ गए। युवकों ने सोचा कि माथे में पीड़ा की वजह से उनके आंसू आए हैं। वे उनके चरणों पर गिरकर उनसे क्षमा करने का अनुरोध करने लगे। उनमें से एक ने कहा, ‘हमसे भारी भूल हो गई है।

हमने आपको पत्थर मारकर रुला दिया।’ इस पर बुद्ध ने कहा, ‘मित्रों, मैं इसलिए दुखी हूं, क्योंकि जब तुमने आम के पेड़ पर पत्थर मारा तो पेड़ ने बदले में तुम्हें मीठे फल दिए, लेकिन जब तुमने मुझे पत्थर मारा, तो मैं तुम्हें कुछ अच्छा देने के बजाय केवल भय और अपराध बोध ही दे सका।’

अर्थात 

भलाई करना हमारे स्वभाव में होना चाहिए, भले ही हमें वह बुराई के बदले में करनी पड़े।

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