राबर्ट वाड्रा की विदेश में संपत्ति को लेकर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के तेवर सख्त , इन सभी नेताओं पर भी ईडी की निगाहें

राबर्ट वाड्रा की विदेश में संपत्ति को लेकर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के तेवर लगातार सख्त हो रहे हैं। यह तेवर वाड्रा की परेशानी काफी बढ़ा चुके हैं और वह कुछ और लोगों का नाम लेने लगे हैं। मिल रहे संकेतों से साफ लग रहा है कि राबर्ट वाड्रा पर शिकंजा कसने की तैयारी चल रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का चौकीदार चोर कहना भी खल गया है। इसलिए राहुल गांधी के विदेश दौरे से लेकर अन्य जानकारियों को लेकर भी एजेंसियों के संजीदा हो जाने की सूचना है।
प्रवर्तन निदेशालय

राहुल के अलावा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम के तेवर भी ढीले करने की तैयारी है। बताते हैं कि आंध्र प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बुरी तरह से धराशायी हुए चंद्रबाबू नायडू को लेकर भाजपा के पास एक्शन प्लान है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी का लगातार बढ़ रहा कद और केंद्र सरकार में उनका आदर भी कुछ ऐसा ही संकेत कर रहा है। इसी तरह का खतरा बसपा मुखिया मायावती पर भी मंडरा रहा है। वैसे भी उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2022 में होने हैं। तब तक सरकार के पास मायावती के खिलाफ आर्थिक मामलों में जांच के लिए पर्याप्त समय है।

अब तो मोदी-शाह इमारत बनाएंगे

राजनीतिक गलियारे में विपक्षी दल का हर नेता सावधान है। राजद के एक बड़े नेता भी काफी सशंकित दिखाई दिए। बसपा में ठीक-ठाक हैसियत रखने वाले एक नेता जी अब बहुत संभल गए हैं। कांग्रेस पार्टी के एक पूर्व महासचिव का कहना है कि 2021 तक प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष तथा गृहमंत्री काफी कुछ कर सकते हैं। उनके पास बहुत सुरक्षित समय है। उन्होंने राजनीतिक दलों के तमाम नेताओं की छवि को खराब कर रखा है। तमाम नेताओं को ईडी, सीबीआई के प्रकोप से डरा रखा है।

देश के तमाम कथित बड़े रसूख वाले भी बहुत संभल कर चल रहे हैं। बताते हैं नरेंद्र मोदी के पास नया भारत बनाने का यही समय है। वह नीव रख चुके हैं और अब इमारत बना सकते हैं। भाजपा में उन्होंने पुराने चेहरों को शरणागत कर रखा है। विपक्षी दलों की एकता पर गिद्ध दृष्टि लगाए बैठे हैं। ऐसे में सरकार के खिलाफ जनता की कोई नाराजगी बनने में दो साल तक का समय लग सकता है। केंद्र सरकार और भाजपा इसका भरपूर लाभ उठा सकती है।

मुलायम के पास चुनौती बड़ी और समय कम

राजनीति के अखाड़े के पहलवान मुलायम सिंह यादव की दिमागी चिंता उन्हें चैन से बैठने नहीं दे रही  है। चिकित्सक उनके खराब स्वास्थ्य की इसे एक बड़ी वजह मान रहे हैं। मुलायम चाहते हैं कि उन्होंने बड़ी शिद्दत से समाजवादी पार्टी परिवार बनाया। यही उनके जीवन भर की अमूल्य पूंजी है। इसे अखिलेश चिड़िया उड़ाने में न गवाएं। अखिलेश केवल मुलायम सिंह की बात सुनकर थोड़ा पीछे लौट आते हैं। भाई शिवपाल थोड़ी उम्मीद पालते हैं और फिर टकटकी लगाकर देखने लगते हैं।

मुलायम की चिंता यह है कि ऐसी चुनौती तब आई है, जब शरीर साथ नहीं दे रहा है। वह उम्र के अवसान पर हैं और बहुत कुछ याद भी नहीं रहता। बात शिवपाल की ही नहीं है, पत्नी साधना गुप्ता, बेटे प्रतीक यादव और बहू अपर्णा की भी है। वह परिवार के साथ बैठकें भी कर रहे हैं, लेकिन सैफई परिवार किसी नतीजे पर नहीं पहुंच रहा है। शिवपाल भी जानते हैं कि कदाचित नेता जी यात्रा पर निकल गए तो कुछ भी हाथ आने की संभावना नहीं है।

कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर क्या चाहते हैं राहुल

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कैसे मानेंगे? पार्टी में अध्यक्ष पद के लिए अभी भी सवाल उठ रहे हैं। सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव रहे और अब पार्टी के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल की भी हर जुगत फेल नजर आ रही है। प्रियंका गांधी वाड्रा ने इस सवाल को अभी समय पर छोड़ दिया है। यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी खामोश हैं। राहुल गांधी को मनाने के सभी प्रयासों के बीच में एक कोशिश केसी वेणु गोपाल और एके एंटनी का कद बढ़ाने की भी कोशिश हुई।

यह कोशिश कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा पार्टी में दो राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद अस्वीकार करने के प्रस्ताव के बाद हुई। लेकिन केसी वेणुगोपाल को भी यह हजम नहीं हुआ। फिलहाल राहुल गांधी लंदन में हैं। पार्टी वेंटिलेटर पर है। अध्यक्ष पद का मामला जस का तस है। 98 फीसदी कांग्रेसियों का कहना है कि बिना नेहरू-गांधी परिवार के कांग्रेस का भविष्य नहीं है और राहुल गांधी हैं कि मान ही नहीं रहे हैं।

नीतीश कुमार कर रहे पूरे बिहार में चुनाव की तैयारी

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नई तैयारी में जुट गए हैं। वह बिहार की सभी विधानसभा सीटों पर जद (यू) को खड़ा करने में जुट गए हैं। नीतीश कुमार की इस पहल से उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी हैरान हैं, लेकिन नीतीश इस समय भाजपा में सुशील की हैसियत जानते हैं। नीतीश को पता है कि विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक आने पर भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह क्या कर सकते हैं।

नीतीश को यह अंदाजा लोकसभा चुनाव के दौरान  सीटों के बंटवारे के समय अमित शाह की ब्रेन मैपिंग करने के बाद ही लग गया था। हालांकि कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार यह सब भाजपा पर अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने, अपना दबदबा बनाए रखने के लिए कर रहे हैं, लेकिन अमित शाह को जानने वालों का मानना है कि इस बार परिस्थिति अलग है। शाह को चौसर के खेल में बिना चाल चले भी बाजी जीतनी आती है।

वैसे भी लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद से वह (अमित शाह) काफी उत्साहित हैं। जाहिर है, हर राज्य में अमित शाह अपने बूते भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार देखने का सपना पाल रहे हों तो इसमें कोई बुराई नहीं है। वैसे भी बिहार में लालू प्रसाद यादव की पार्टी चुनाव में अपनी ताकत नहीं दिखा पाई। यह भी जद (यू) के लिए एक जोरदार अवसर है। अब देखिए आगे ऊंट किस करवट बैठता है।

आंध्र में रेड्डी की जीत से बढ़ी पीके की फीस

आंध्र प्रदेश में टीडीपी की विदाई, जगनमोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस पार्टी का प्रचंड बहुमत पाना और मुख्यमंत्री बन जाना क्या खूब रहा। प्रशांत किशोर उर्फ पीके चैंपियन होकर निकले हैं। जगन ने इसकी बधाई भी पीके को दी है। दूसरी तरफ पीके की तरफ देखने वाले राजनीतिक दलों की संख्या बढ़ गई है। पीके ने भी अपनी फीस काफी बढ़ा दी है।

नीतीश कुमार पहले से ही पीके पर बहुत भरोसा करते हैं। हाल में उन्होंने (नीतीश) अपने एक प्रवक्ता की जुबान ज्यादा चलने पर उसे खरी-खोटी सुना दी है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के पास से है, बल्कि चंद्रबाबू नायडू भी उनकी सलाहों में अपनी पार्टी का हित देख रहे हैं।

खबर तो यह भी कांग्रेस पार्टी ने यह जिम्मा प्रियंका गांधी वाड्रा को सौंप दिया है। कांग्रेस चाहती है कि प्रियंका पीके को मनाएं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए पीके की मदद फिर ली जाए। बताते हैं प्रियंका और पीके की मुलाकात भी हो चुकी है, लेकिन पीके की फीस ने कांग्रेस को गर्मी के महीने में गीजर के गर्म उबलते पानी से नहला रखा है।

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