पृथ्वी को बर्बाद करते-करते अंतरिक्ष में भी अमेरिका और चीन ने फैलाया कचरा

पहली बार अंतरिक्ष में मानव निर्मित सैटेलाइट स्पूतनिक 4 अक्टूबर 1957 को रूस ने भेजा था। विज्ञान द्वारा अंतरिक्ष में पहुँचने के 62 सालों बाद अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने बताया कि अंतरिक्ष में बढ़ते कचरे की वजह से भविष्य में मानव मिशन भेजना मुश्किल हो जाएगा।

नासा ने भारत के एंटी-सैटेलाइट (ए-सैट) मिसाइल के परीक्षण से निकले मलबे से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन, आईएसएस (इंटरनेशनल स्पेस सेंटर) को पैदा हुए खतरे को खतरनाक बताया है। नासा प्रमुख जिम ब्रिडेनस्टाइन ने कहा कि परीक्षण में नष्ट किए गए भारतीय उपग्रह के 400 से भी अधिक टुकड़े हुए जो अंतरिक्ष में चक्कर लगा रहे हैं।

नासा प्रमुख का कहना है कि भविष्य के अंतरिक्ष मिशन के लिए इस तरह की गतिविधियां सही साबित नहीं होंगी। उन्होंने कहा, “जब एक देश ऐसा करता है तो दूसरे देशों को भी लगता है कि उन्हें भी ऐसा करना चाहिए, यह अस्वीकार्य है। नासा को इस बारे में स्पष्ट रुख अपनाने की जरूरत है कि इसका हम पर क्या असर पड़ता है।”

हालांकि नासा के खुद के आंकड़ों के मुताबिक अंतरिक्ष में बाकी देशों के मुकाबले अमेरिका ने सबसे ज्यादा कचरा पैदा किया है। वहीं भारत ने कहा है कि ए-सैट के परीक्षण से जो टुकड़े अंतरिक्ष में मौजूद हैं, वे कुछ समय बाद गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी की ओर गिरेंगे, और हवा के घर्षण के कारण जलकर नष्ट हो जाएंगे।

भारतीय वैज्ञानिकों ने यह भी कहा कि ये परीक्षण अंतरिक्ष में पैदा होने वाले कचरे को ध्यान में रखते हुए किया गया था। जबकि इससे पहले चीन द्वारा ऐसे ही दो परीक्षण किए गए थे, जिनका मलबा अभी भी अंतरिक्ष में मौजूद है। अंतरिक्ष में सैटेलाइट आदि के लॉन्च से भी कचरा पैदा होता है, जिसमें अमेरिका और चीन सबसे आगे हैं।

वैज्ञानिकों की जानकारी के मुताबिक धरती पर इस वक्त 8400 टन से ज्यादा अनावश्यक हार्डवेयर मौजूद है, जो कि कचरे के तौर पर इधर से उधर सर्कुलेट हो रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार धरती पर कचरे के बाद अगली सबसे बड़ी समस्या अंतरिक्ष पर कचरे की है और यह समस्या तेजी से बढ़ रही है। यह उपग्रह अंतरिक्ष के कचरे का पता लगाएगा। इनमें पुराने रॉकेट और अंतरिक्ष में टूटकर बिखर चुके अंतरिक्ष यान शामिल होंगे।

नासा की विशिष्ट एजेंसियां सभी महत्वपूर्ण बड़े टुकड़ों को ट्रैक करती हैं, और आईएसएस व दूसरी सैटेलाइट से टकराने के खतरे की भविष्यवाणी करती है। नासा ने 10 सेंटीमीटर से ज्यादा बड़े 23,000 टुकड़ों को ट्रैक किया है, जिसमें से 10,000 टुकड़ों को अंतरिक्ष कचरा बताया गया है।

अंतरिक्ष में अमेरिका के टुकड़े 6,401 घूम रहे हैं, जबकि भारत के सिर्फ 206 हैं। नासा के मुताबिक अंतरिक्ष में भारत के 89 टुकड़े पेलोड और 117 टुकड़े रॉकेट के हैं।

भारत से करीब 20 गुना ज्यादा कचरा चीन का है। उसके 3,987 टुकड़े अंतरिक्ष में हैं।

इस दौरान अंतरिक्ष में अमेरिका की गतिविधियों से जहां 2,142 टुकड़े बढ़े, वहीं भारत से सिर्फ 62 टुकड़े बढ़े। सितंबर 2008 तक अंतरिक्ष में अमेरिका के 4,259 और भारत के 144 टुकड़े थे।

अंतरिक्ष में मौजूद मलबे के खतरनाक होने का सबसे बड़ा कारण इनकी रफ्तार है। ये टुकड़े बहुत तेज रफ्तार से चक्कर लगा रहे हैं। पृथ्वी की निचली कक्षा में जहां भारतीय उपग्रह पर परीक्षण किया गया, वहां वस्तुएं अपनी कक्षाओं में रहने के लिए आमतौर पर लगभग 8 मीटर प्रति सेकंड या 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती हैं।

इतनी रफ्तार में करीब 100 ग्राम की एक छोटी वस्तु भी टकराने पर उतना ही प्रभाव पैदा करेगी जितना कि लगभग 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाला 30 किलो का पत्थर टकराने पर करता है। नष्ट किए गए भारतीय उपग्रह से निकलने वाला मलबा आमतौर पर इतनी ही रफ्तार से आगे बढ़ेगा। अगर इसे नष्ट नहीं किया गया तो, अंतरिक्ष में किसी भी अन्य उपग्रह से टकराने पर वह उस उपग्रह को बेकार बना सकता है।
ऐसे बर्बाद हो सकते हैं उपग्रह

ऐसे किसी कचरे की उपग्रह या अंतरिक्ष यान से टक्कर की आशंका हमेशा बनी रहती है। असल में एक मिलीमीटर के 10वें हिस्से के बराबर का भी कोई ठोस कचरा या पेंट की परत स्पेसक्राफ्ट की विंडस्क्रीन या अंतरिक्ष में स्थापित टेलीस्कोप के कांच पर रगड़ के निशान बना सकती है। कई बार ये सोलर सेल्स की क्षमता भी कम कर देते हैं।

इन बेहद छोटे कणों से होने वाले नुकसान का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि साल 2008 से अब तक करीब 100 स्पेस शटल की विंडस्क्रीन बदलनी पड़ी हैं। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन के अनुसार अंतरिक्ष में मौजदू कचरा आपस में टकरा कर एक आणविक रिएक्शन कर रहा है, जो पृथ्वी की संचार व्यवस्था को खराब कर सकते हैं।

उपग्रह जिनका समय पूरा हो चुका है या अंतरिक्ष यान जो नाकाम हो चुके हैं।
‘रॉकेट स्टेज’ जो अंतरिक्ष में पहुंचकर उपग्रह लॉन्च करने के बाद वहीं रह गए।
रॉकेट के आगे के कोन, उपग्रह या अन्य सामग्री सुरक्षित रखने वाले पेलोड के कवर, बोल्ट्स, कुछ हद तक भरे हुए फ्यूल टैंक, बैटरीज और लॉन्च से जुड़े अन्य हार्डवेयर।
टक्कर से पैदा हुए टुकड़े।
मनुष्यों द्वारा जानबूझकर छोड़ दिए गए या घटना स्वरूप रह गए औजार या अपशिष्ट।
अंतरिक्ष यान या उपग्रह की सतह से पपड़ी बनकर उखड़ा रंग।

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कचरा आकार में एक सेंटीमीटर से बड़ा हुआ तो उपग्रह या अंतरिक्ष यान की दीवार में छेद कर सकता है।
एक किलोग्राम के टुकड़े की टक्कर का असर एक किलोग्राम टीएनटी विस्फोटक के बराबर हो सकता है।
कहां-कितने इस्तेमाल हो रहे उपग्रह
व्यावसायिक कार्य- 848 सैटेलाइट्स
दुनियाभर के कुछ निजी व राष्ट्रीय संस्थान इन सैटेलाइट्स से हासिल होने वाली जानकारी और डेटा का व्यावसायिक इस्तेमाल करते हैं। इनमें से शामिल सैटेलाइट्स- कम्यूनिकेशन या ग्लोबल पोजिशनिंग और अर्थ ऑब्जर्वेशन हैं।

सरकारी कार्य- 540 सैटेलाइट
इनमें मुख्य रूप से राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी या अंतरराष्ट्रीय संगठनों के अधिकार वाले सैटेलाइट होते हैं। ऐसे ऑब्जेक्ट्स में से 40 प्रतिशत का काम कम्यूनिकेशन तथा ग्लोबल पोजिशनिंग से जुड़ा है। वहीं 38 फीसदी अर्थ ऑब्जर्वेशन का काम करते हैं। इसके बाद 12 फीसदी स्पेस साइंस और 10 फीसदी टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट के लिए हैं।
सामान्य कार्य- 147 सैटेलाइट
इन सैटेलाइट्स को नागरिक सेवा वाले सैटेलाइट्स की सूची में रखा गया है। इसमें से कुछ विभिन्न शैक्षणिक संस्थान तो कुछ अन्य तरह के राष्ट्रीय संस्थानों के हैं। इनमें से 46 फीसदी का काम टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट में मदद करना है। वहीं 43 प्रतिशत ऐसे हैं जो धरती या अंतरिक्ष से जुड़े विज्ञान और अवलोकन के काम से जुड़े हैं।
सैन्य कार्य- 422 सैटेलाइट
सैटेलाइट ऐसे भी हैं जिन्हें किसी न किसी देश में सेना से जुड़ी गतिविधियों में इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि इनमें से भी ज्यादातर सैटेलाइट्स का काम कम्यूनिकेशन, अर्थ ऑब्जर्वेशन और ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (जीपीएस) से जुड़ा ही है। यहां इन तीनों में से कोई न कोई काम करने वाले 89 फीसदी सैटेलाइट हैं।
40 फीसदी सैटेलाइट ही काम के
1957 एक्टिव
3030 कचरे में तब्दील
किस काम के लिए कितने सैटेलाइट
कम्यूनिकेशन – 777
अर्थ ऑब्जर्वेशन – 710
टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट – 223
नेविगेशन-पोजिशनिंग – 137
स्पेस साइंस/ऑब्जर्वेशन – 85
अर्थ साइंस – 25

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