पूर्व गवर्नर राजन ने कहा- संरक्षणवाद से वास्तव में नौकरियां बचाने में नहीं मिलती मदद

दुनियाभर के देश जहां अपने-अपने व्यापार को बचाने के लिए संरक्षणवाद की नीति पर काम कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का कहना है कि इस नीति से वास्तव में नौकरियां बचाने में मदद नहीं मिलती है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि संरक्षणवाद नौकरियों पर पड़ने वाले ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) के नकारात्मक प्रभाव से थोड़ा बचाव करता है क्योंकि इन दोनों के आन के बाद से नौकरियों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।


राजन का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब अमेरिका समेत दुनियाभर के देश आयात शुल्क बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। अमेरिका ने हाल ही में संरक्षणवादी नीति का बचाव और भारत के आयात शुल्क का विरोध करते हुए भारत से व्यापारिक सुविधाएं छीन ली है। वहीं, चीन और अमेरिका के बीच भी व्यापार के मोर्चे पर तनाव की वजह संरक्षणवादी नीति ही रही है।

राजन ने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में ‘2019 ईसीओएसओसी फोरम ऑन फाइनेंसिंग फॉर डेवलपमेंट’ को संबोधित करते हुए कहा कि औद्योगिक एवं विकासशील देश वैश्वीकरण और प्रौद्योगिकी से वंचित लोगों की लोकतांत्रिक प्रतिक्रिया को नजरअंदाज करने का जोखिम मोल नहीं ले सकते हैं। खुली दुनिया को संरक्षित करते हुए इन लोगों की चिंताओं पर ध्यान देना जरूरी है। उन्होंने कहा कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद 6 दशक तक दुनिया में बहुत अधिक समृद्धि का जरिया रही खुली उदार लोकतांत्रिक बाजार प्रणाली अभी दबाव में है। हमें यह मानकर चलना चाहिए कि व्यापार और निवेश प्रवाह के वैश्वीकरण ने लोगों एवं उनके समुदायों को कमजोर कर दिया है।

आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा कि दिलचस्प है कि इस बार इसकी आलोचना करने वाले कुछ अतिवादी शिक्षाविद एवं वामपंथी नेता नहीं हैं, बल्कि वे दुनिया के सबसे समृद्ध देशों के नेता हैं। ये वैसे देश हैं, जिन्हें खुले विश्व बाजार से बहुत अधिक लाभ हुआ है। उन्होंने कहा, हम जानते हैं कि संरक्षणवाद वास्तव में नौकरियों को संरक्षित करने में मदद नहीं करता है। इस प्रतिस्पर्धी दुनिया में एक देश द्वारा संरक्षित क्षेत्र में प्राप्त नौकरियां अक्सर अन्य क्षेत्रों में खो जाती है।

संरक्षणवाद वह आर्थिक नीति है, जिसके जरिए हर देश दूसरे देशों के लिए व्यापार निरोधक बनते हैं। इसके लिए दूसरे देशों से आयातित वस्तुओं पर अधिक शुल्क लगाया जाता है। अन्य तरीकों से आयात को हतोत्साहित किया जाता है। सरकारें यह नीति अपने देश के कारोबार को बढ़ावा देने के लिए अपनाती हैं।

जानिए यहां डॉक्टरों का ही हाल हैं बेहाल, कैसे सुधरेगा देश का स्वास्थ्य

बंगलूरू की अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी द्वारा जारी ‘द स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया-2019’ रिपोर्ट में कहा गया है कि 2011 के बाद से देश में बेरोजगारी दर में भारी उछाल आया है। 2018 में बेरोजगारी दर 6 फीसदी थी, जो 2000-2011 के मुकाबले दोगुनी है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2016 से 2018 के बीच यानी दो साल में करीब 50 लाख लोग बेरोजगार हुए। बेरोजगारी बढ़ने की शुरुआत नवंबर, 2016 में की गई नोटबंदी के साथ हुई। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि नौकरी कम होने और नोटबंदी के बीच कोई सीधा संबंध स्थापित नहीं हो पाया है।

LIVE TV