जानिए यहां डॉक्टरों का ही हाल हैं बेहाल, कैसे सुधरेगा देश का स्वास्थ्य

नई दिल्ली : हाल में ही जारी हुई अमेरिका के ‘सेंटर फॉर डिजीज डायनामिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी’ की रिपोर्ट ने भारत की स्वास्थ्य सेवाओं की कलई खोलकर रख दी है। देश में चल रहे लोकसभा चुनाव में स्वास्थ्य का मुद्दा चुनावी पार्टियों के घोषणापत्र तक ही सिमटकर रह गया है। लगभग सभी पार्टियां अभी तक के चुनावी प्रचार के दौरान स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करने से बच रही हैं।

 

 

अस्पताल

 

 

 

खबरों के मुताबिक भारत में लगभग छह लाख डॉक्टरों और 20 लाख नर्सों की कमी है। भारत में स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता और उपलब्धता में भी बड़ा अंतर दिखाई देता है। भारत में लगभग 10 लाख 41 हजार 395 डॉक्टर अलग-अलग मेडिकल काउंसिल में रजिस्टर्ड हैं। हालांकि इनमें प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों की संख्या केवल 8.33 लाख ही है।

 

 

मलिंगा से श्रीलंका की कप्तानी छिनी , लेकिन वर्ल्ड कप टीम में शामिल

वहीं, विदेशों में कार्यरत भारतीय डॉक्टरों की संख्या साल 2000 में 56 हजार थी, जो 2010 में बढ़कर 86680 हो गई। इनमें से 60 फीसद से ज्यादा भारतीय डॉक्टर अकेले अमेरिका में ही कार्यरत हैं। इंटरनेशनल माइग्रेशन आऊटलुक के अनुसार करीब 28 फीसदी भारतीय डॉक्टर विदेशों में काम कर रहे हैं।

 

देखा जाये तो मेडिकल कॉलेज के मामले में कर्नाटक देश में पहले स्थान पर है, जबकि दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र काबिज है। वहीं, डॉक्टरों की तैनाती के हिसाब से देखें तो महाराष्ट्र पहले स्थान पर है, जबकि कर्नाटक देश में तीसरे स्थान पर है। एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 460 मेडिकल कॉलेज हैं। इनमें से 45 फीसदी सरकारी क्षेत्र में और 55 फीसदी निजी क्षेत्र में हैं।

 

दरअसल केंद्र सरकार के अंतरिम बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 61,398 करोड़ रुपए के आवंटन की घोषणा की गई। इसमें 6400 करोड़ रुपये आयुष्मान योजना के लिए आवंटित हैं।आबादी के हिसाब से एमबीबीएस की सीटों के वितरण में भी भारी अनियमितता दिखाई देती है। देश की 31 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले देश के 6 राज्यों को एमबीबीएस की 58 फीसदी सीटें दे दी गई हैं।

 

लेकिन स्वास्थ्य मानकों के हिसाब से भारत कई गरीब देशों से भी पीछे है। इसका बड़ा कारण स्वास्थ्य पर सरकार द्वारा किया जाने वाला कम खर्च है। ब्रिक्स में शामिल देशों में भी स्वास्थ्य के मामलों में हम सबसे निचले पायदान पर हैं।विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के 57 फीसदी एलोपैथिक डॉक्टरों के पास मेडिकल योग्यता नहीं है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक सर्वे के अनुसार ग्रामीण इलाकों में इलाज कर रहे हर पांच डॉक्टर में से एक ही प्रशिक्षित है।

LIVE TV