
पित्रपक्ष में हम अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए पिंडदान करते हैं. लेकिन पिंडदान करते वक्त कई बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. अगर इन बातों का ध्यान न रखा जाए तो सुख-शांति की जगह नरक भोगना पड़ सकता है.
जैसा कि शास्त्रों में बताया गया है कि दिवंगत पितरों के परिवार में या तो ज्येष्ठ (बड़ा) पुत्र या कनिष्ठ (छोटा) पुत्र और अगर पुत्र न हो तो धेवता (नाती), भतीजा, भांजा या शिष्य ही तिलांजलि और पिंडदान दे सकते हैं.
कई ऐसे पितर भी होते है, जिनके पुत्र संतान नहीं होती है या फिर जो संतान हीन होते हैं. ऐसे पितरों के प्रति आदर पूर्वक अगर उनके भाई भतीजे, भांजे या अन्य चाचा ताउ के परिवार के पुरूष सदस्य पितृपक्ष में श्रद्धापूर्वक व्रत रखकर पिंडदान, अन्नदान और वस्त्रदान करके ब्राह्मणों से विधिपूर्वक श्राद्ध कराते है तो पितर की आत्मा को मोक्ष मिलता है.
पित्रपक्ष में न करें ये गलतियां
पितरों के निमित्त सारी क्रियाएं गले में दाये कंधे मे जनेउ डाल कर और दक्षिण की ओर मुख करके की जाती है.
श्राद्ध के दिन लहसुन, प्याज रहित सात्विक भोजन ही घर की रसोई में बनना चाहिए, जिसमें उड़द की दाल, बड़े, चावल, दूध, घी से बने पकवान, खीर, मौसमी सब्जी जैसे तोरई, लौकी, सीतफल, भिण्डी कच्चे केले की सब्जी ही भोजन में मान्य है. आलू, मूली, बैंगन, अरबी तथा जमीन के नीचे पैदा होने वाली सब्जियां पितरों को नहीं चढ़ती है.
सूर्य के रहते दिन के समय में कभी न सोएं.
पितृपक्ष में प्रणय प्रसंग से बचें.
तंबाकू युक्त किसी भी पदार्थ का सेवन न करें.
शुभ कार्य जैसे की विवाह, गृहप्रवेश से बचें.
पुरुष वर्ग दाड़ी तथा बाल न कटवाएं.
पान का सेवन कदापि न करें.
कांच के बर्तनों का इस्तेमाल न करें.
मांस और मदिरापान पितृपक्ष में वर्जित है.