पहली बार इस भारतीय महिला साइंटिस्ट ने रच दिया इतिहास ,रॉयल सोसाइटी की बनी “फेलो”!

न्यूटन रहे एक. सिर पे सेब गिरा था तो गुरुत्वाकर्षण खोज लिए थे. बहुत नाम हुआ. एक हुए आइंस्टाइन. उनका नाम तो सुना ही होगा. एकदम ज़बरदस्त साइंटिस्ट. लोगों के बीच स्टोरी चलती कि उनका दिमाग आम लोगों से डिफरेंट था. एक हुए चार्ल्स डार्विन. ये वही साइंटिस्ट हुए जिन्होंने बताया कि बन्दर हमारे पूर्वज हैं. स्कूल में इनके बारे में पढ़ने को मिलता है.

इन सबमें एक चीज़ कॉमन है, सब बहुत कमाल के साइंटिस्ट थे. दुनिया को बहुत कुछ दिया. एक और चीज़ कॉमन है.ये सभी रॉयल सोसाइटी लंदन के ‘फेलो’ (fellow) बनाए जा चुके हैं.और अब इसी की पहली भारतीय महिला साइंटिस्ट फेलो बनी हैं गगनदीप कांग.

ब्रिटेन की रॉयल सोसाइटी साइंटिस्ट्स का एक इंस्टीट्यूशन है. लगभग 360 साल पुराना. जिन साइंटिस्ट्स के नाम लिए गए, ये सब अपने आप में आइकन हैं. और रॉयल सोसाइटी के सबसे पुराने फेलोज में से एक. इस सोसाइटी के मेंबर नहीं होते. फेलो होते हैं.

प्रतिबन्ध के 3 दिन बाद आज़म खान ने निकाली चुनाव प्रचार के दौरान भड़ास !

28 नवम्बर 1660 को इस की शुरुआत हुई थी. ये ब्रिटेन और कॉमनवेल्थ (वो देश जो पहले ब्रिटेन के ग़ुलाम थे, उनका ग्रुप कॉमनवेल्थ कहलाता है. अभी भी चलता आ रहा है. इस नाम के खेल भी होते हैं) के देशों में साइंस के प्रोमोशन के लिए काम करते हैं. खुद को एक अकादमी बताते हैं. काफी नाम है. इज्जत है. फेलोशिप देते हैं हर साल. लगभग 60 लोग चुने जाते हैं. इसमें चुने जाने का मतलब आपने साइंस की दुनिया में कुछ बहुत भौकाल वाला किया है.

जरूरी नहीं है कि लैब में बैठकर आप एक्सपेरिमेंट करने से ही साइंटिस्ट कहलाएंगे. तकनीक, फिलॉसफी वगैरह में भी आपने अगर कुछ बहुत अच्छा किया है तो आपको नॉमिनेट होने का चांस मिल सकता है. ऑनरेरी फेलोशिप भी होती इसमें. दो लोग आपको नॉमिनेट करने के लिए चाहिए. पहले पांच चाहिए होते थे. अब दो भी हों तो चल जाएगा. लेकिन वो दोनों सोसाइटी के फेलो होने चाहिए.

 

गगनदीप कांग क्यों महत्वपूर्ण हैं?

1660 में फेलोशिप शुरू हुई. लेकिन पहली महिला 1945 तक नहीं चुनी गई थी. तब से लेकर अब तक भी महिलाओं का रेशियो बहुत कम रहा है इस सोसाइटी में. नोबेल जीतने वाली एलिज़ाबेथ ब्लैकबर्न सोसाइटी का हिस्सा बनी थीं 1992 में. अभी तकरीबन 1600 फेलोज में 130 के करीब ही महिलाएं रही हैं. तिसपर पहली बार कोई भारतीय महिला रॉयल सोसाइटी की फेलो बनी हैं. ये बात प्रिंसिपल साइंटिफिक अडवाइजर के अकाउंट ने ट्वीट करके बताई. ये पद इस वक़्त प्रोफ़ेसर के विजयराघवन सम्भाल रहे हैं.

 

लेकिन गगनदीप ने ऐसा क्या किया जो उनको चुन लिया गया?

गगनदीप कांग 90 के दशक से ही बच्चों की हेल्थ और उनकी बीमारियों पर रीसर्च कर रही हैं. डायरिया और पब्लिक हेल्थ पर उनका काम बहुत विस्तृत है. वैसे तो वो वेल्लोर क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में प्रोफ़ेसर हैं. लेकिन इस वक़्त फरीदाबाद के ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टिट्यूट की एग्जीक्यूटिव डिरेक्टर हैं. ये मिनिस्ट्री ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, भारत सरकार से जुड़ा इंस्टिट्यूट है, लेकिन स्वायत्त है. ऑटोनॉमस है.

गगनदीप बच्चों में वायरल इन्फेक्शन, रोटावायरस की वैक्सीन जैसे हेल्थ के नाज़ुक मसलों पर रीसर्च करती हैं. इनको 2016 का इंफोसिस प्राइज भी मिला है. गगनदीप ने इंटेस्टाइंस में होने वाले इंफेक्शन, उनका बढ़ना, फैलन और उनको रोकने की पद्धतियों पर गहरी रीसर्च की है. वैक्सीनेशन से पहले वैक्सीन के ट्रायल्स करवाने होते हैं. उसके लिए भी गगनदीप ने लैब्स बनवाने में मदद की. ऐसा नेटवर्क तैयार किया जो टाइफाइड और रोटा वायरस बीमारियों की रोकथाम के लिए उन पर नज़र रखे. वैक्सीन्स का क्लिनिक में उन्होंने ट्रायल भी करवाया.

कई दूसरे साइंटिस्ट भी चुने गए हैं रॉयल सोसाइटी में. लेकिन पुरुषों के लिए ये कोई नया नहीं है. रामानुजन, जो भारत के बेहद मशहूर मैथमटीशियन माने जाते रहे हैं, वो भी रॉयल सोसाइटी के फेलो चुने गए थे. सिप्ला के चेयरमैन डॉक्टर यूसुफ़ हमीद को भी ऑनरेरी फेलो चुना गया है इस साल. ये इस वजह से क्योंकि सिप्ला ने ज़रूरी दवाइयों को अफोर्डेबल बनाया. कन्सर, डायबिटीज़ जैसी बीमारियों से लड़ने में आम लोगों की मदद की.

पहली बार कोई भारतीय महिला साइंटिस्ट इस लिस्ट में जगह बना पाई हैं. सेलिब्रेट करना तो बनता है न !

LIVE TV