पापों का नाश करके सभी कष्‍ट दूर करने वाला है भगवान जगदीश्‍वर का यह व्रत

परिवर्तिनी एकादशीआज परिवर्तिनी एकादशी है यानी भगवान विष्‍णु के करवट बदलने का समय। यही वो दिन होता है जब जगत के पालक जगदीशवर श्रीरसागर में चार मास के श्रवण के पश्‍चात पहली बार करवट बदलते हैं। इसे पार्शव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

शास्‍त्रों में कहा गया है जो भी मानव या ईश्‍वर भक्‍त एकादशी का व्रत व पूजन करता है, वह सभी पापों से मुक्‍त होकर परमधाम को प्राप्‍त होता है। वह मनुष्‍य परम यशस्‍वी और धनवान होता है। यह व्रत भगवान जगदीशवर को अति प्रिय है।

परिवर्तिनी एकादशी का व्रत

इस व्रत को करने के लिए पहले दिन हाथ में जल का पात्र भरकर व्रत का सच्चे मन से संकल्प करना होता है। प्रातः सूर्य निकलने से पूर्व उठकर स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करने का विधान है। धूप, दीप, नेवैद्य, पुष्प मिष्ठान एवं फलों से विष्णु भगवान का पूजन करने के पश्चात अपना अधिक समय हरिनाम संकीर्तन एवं प्रभु भक्ति में बिताना चाहिए। कमलनयन भगवान का कमल पुष्‍पों से पूजन करें, एक समय फलाहार करें और रात्रि को भगवान का जागरण करें। मंदिर में जाकर दीपदान करने से भगवान अति प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्‍तों पर अत्यधिक कृपा करते है।

आपको एक तथ्‍य और बता दें कि इस मास में भगवान वामन जी का अवतार हुआ था इसी कारण व्रत में भगवान विष्णु के बौने रूप की पूजा करने से भक्त को तीनों लोको की पूजा करने के समान फल मिलता है। यह एकादशी भक्त को वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य फलदायिनी होती है। मनुष्य के सभी पापों का नाश करने वाली इस एकादशी व्रत के प्रभाव से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा अंत में उसे प्रभु के परमपद की प्राप्ति होती है। विधिपूर्वक व्रत करने वालों का चंद्रमा के समान यश संसार में फैलता है।

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