न्याय का मंदिर: ऐसा मंदिर जहाँ देवी माँ सिर्फ एक अर्जी पर करती हैं लोगो का न्याय!

रिपोर्ट – प्रदीप मेहरा

उत्तराखंड: बेरीनाग विकास खंड के पांखू में स्थित मां कोकिला,कोटगाड़ीद्ध के मंदिर को न्याय के मंदिर के रूप में जाना जाता है। लोग आपसी विवाद लड़ाई-झगड़े के मामलों में न्यायालय में जाने के बजाय मां के दरबार में ले जाना पसंद करते हैं।

मंदिर में सादे कागज में चिट्ठी लिखकर न्याय की गुहार लगाई जाती है। मंदिर में टंगी असंख्य अर्जियां इस बात की गवाही देती हैं। जंगलों की रक्षा के लिए लोग 5-10 वर्ष के लिए जंगल मां कोकिला को चढ़ा देते हैं।

बेहद रमणीक स्थान पर स्थित मां कोकिला के दरबार के चाहने वाले देश-दुनिया में बहुत हैं। उत्तराखंड की पावन धरती में भगवान शंकर सहित 33 कोटि देवताओं के दर्शन होते हैं।

आदि जगदगुरु शंकराचार्य ने स्वयं को इसी भूमि पर ही पधारकर धन्य मानते हुए कहा कि इस ब्रह्मांड में उत्तराखंड के तीर्थों जैसी अलौकिकता और दिव्यता कहीं नहीं है। इस क्षेत्र मेंशक्तिपीठों की भरमार है।

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सभी पावन दिव्य स्थलों में से तत्कालिक फल की सिद्धि देने वाली माता कोकिला देवी मंदिर का अपना दिव्य महात्म्य है।इन्हें कोटगाड़ी देवी भी कहा जाता हैए कहा जाता है कि यहां पर सच्चे मन से निष्ठा पूर्वक की गई पूजा-आराधना का फल तुरंत मिलता है और अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है।

किवदंतियों के अनुसारए जब उत्तराखंड के सभी देवता विधि के विधान के अनुसार खुद को न्याय देने और फल प्रदान करने में अक्षम व असमर्थ मानते हैं ।

मान्यता है कि संकल्प पूर्ण होने के बाद देवी माता कोटगाड़ी के दर्शन की महत्वता अनिवार्य है। इस मंदिर में फरियादों के असंख्य पत्र न्याय की गुहार के लिए लगे रहते हैं। दूर-दराज से श्रद्धालुजन डाक द्वारा भी मंदिर के नाम पर पत्र भेज कर मनौतियां मांगते हैं। मनौती पूर्ण होने पर भी माता को पत्र लिखते हैं और समय व मैया के आदेश पर माता के दर्शन के लिए पधारते हैं।

स्थानीय लोगों के अनुसार कोटगाड़ी मूलतरू जोशी जाति के ब्राह्मणों का गांव था। एक दौर में माता कोटगाड़ी यहां स्वयं प्रकट हुई थीं और यहीं रहती थीं तथा न्याय भी देती थीं।

देवत्व के लिए प्रसिद्ध इस देवभूमि के कोटगाड़ी ग्राम में कोकिला देवी एक ऐसी देवी हैंए जिनके दरबार में न्यायालय से मायूस हो चुके लोग आकर न्याय की गुहार लगाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो फैसला कोर्ट में भी नहीं हो पाताए वह माता के दरबार में बिना वकील के हो जाता है। विरोधी दोषी हुआ तो उसे बेहद कड़ी सजा दी जाती है। यहां पर नवरात्रियों में अष्ठमी के दिन भव्य मेला लगता है।

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