मणिपुर में नोट बंदी से जीना हुआ मुहाल, अभी राहत नहीं

इंफाल। नोटबंदी के फैसले के 30 दिन गुजर जाने के बाद भी मणिपुर में जन जीवन पूरी तरह ठप पड़ा हुआ है। नकदी की कमी से जूझ रहे लोगों का संघर्ष अब भी जारी है। महिलाओं के प्रसिद्ध बाजार में हरी सब्जियां बेचने वाली पचास वर्षीय एन. सानाहांबी अपना घर और बच्चे भी संभालती है। उसने बताया कि आठ नवंबर के बाद से वह कुछ भी नहीं बेच पाई है, क्योंकि खरीदारों के पास छोटे नोट नहीं हैं और उसके पास 2,000 रुपये के नए नोट के खुल्ले करने लायक पैसे नहीं होते।

नोटबंदी के फैसले

मणिपुर में फल और सब्जियां बेचने वाली हजारों महिलाओं का कमोबेश यही हाल है। यहां सभी बाजार विशेष रूप से महिलाएं ही चलाती हैं।

सब्जियां बेचने वाली इबेमहाल के पति की कुछ दिन पहले मौत हो गई थी और उसके पति की अंतिम इच्छा के अनुसार, उसने वृंदावन में उनके अंतिम क्रियाकर्म की योजना बनाई थी। उसने पैसे निकालने के लिए कई दिनों तक बैंक की कतार में लगी, लेकिन लंबी कतार और नकदी न होने की वजह से कई बार खाली हाथ ही लौटी।

उसने बातचीत में कहा कि वह सोच में पड़ी है कि वह अपने पति का श्राद्ध वृंदावन जाकर कैसे करे।

एक महिला सत्यवती अपने तीन बच्चों की मासिक व परीक्षा फीस चुकाने और परिवार का खर्च पूरा करने के लिए बैंक से नकद निकालने में अब तक असमर्थ रही है।

बहुत से खाताधारक बुजुर्गो और महिलाओं की शिकायत है कि बैंकों और एटीएम बूथों पर पीने के पानी और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं रहने से उन्हें भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

वहीं, मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह ने कहा, “सभी वर्ग घरों और विदेशों में जमा कालेधन का पता लगाने के प्रयासों की सराहना करते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नोटबंदी सवालों के घेरे में है, क्योंकि इससे आम लोग पीड़ित हो रहे हैं।”

वहीं, हालिया घटना में 5 दिसंबर को पैसे निकालने के लिए कतार में खड़े एक 70 वर्षीय पेंशनभोगी की मौत हो गई। अधिकांश एटीएम में पैसे नहीं हैं और बैंक सीमित संख्या में ही खाताधारकों को अंदर आने की अनुमति दे रहे हैं।

नोटबंदी से देश की सीमा पर होने वाला व्यापार भी ठप पड़ गया है।

लोक निर्माण विभाग के एक अधिकारी ने बताया, “निर्माण सामग्री न होने के कारण राज्य और राष्ट्रीय स्तर की सभी परियोजनाओं को रोक दिया गया है। कालाबाजार में एक बोरी सीमेंट 900 रुपये में बेचे जाने के बाद से निजी घरों के निर्माण कार्य भी नहीं हो पा रहे हैं।”

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