‘नोटबंदी से किसानों को 50 हजार रुपये प्रति एकड़ तक का नुकसान’

नोटबंदी के कारण बुरे दौरनई दिल्ली। मुख्य रूप से नकद लेनदेन पर आधारित देश का कृषि क्षेत्र नोटबंदी के कारण बुरे दौर से गुजर रहा है और बड़े किसानों का कहना है कि फल एवं सब्जी उत्पादकों को सर्वाधिक नुकसान हुआ है।

नोटबंदी की मार झेल रहे देश के किसान चाहते हैं कि केंद्र सरकार आगामी बजट में उनके लिए कुछ राहत की घोषणाएं करे।

इस बीच ऐसी खबरें भी आती रहीं कि किसानों ने दाम गिर जाने के कारण टमाटर और मटर सहित अन्य फसलें नष्ट कर दीं या फेंक दीं। फलों और सब्जियों की कीमतों में अचानक आई तेज गिरावट थोक कारोबारियों के पास उन्हें खरीदने के लिए नकद राशि का न होना रहा।

किसान नेता अजय वीर जाखड़ का कहना है, “जल्द खराब हो जाने वाली फसलें, जैसे फल और सब्जियां उगाने वाले किसानों को प्रति एकड़ 20,000 रुपये से 50,000 रुपये तक का नुकसान झेलना पड़ा है।”

किसान जागृति मंच के अध्यक्ष सुधीर पंवार बताते हैं, “जब थोक व्यापारी ही कह दे कि फसल खरीदने के लिए रुपये नहीं है तो किसानों के पास क्या उपाय बचता है? या तो रद्दी के भाव पर अपनी फसल बेच दे या पूरी फसल ही नष्ट कर दे।”

पंवार का कहना है कि फल और सब्जियों की खरीद नकद में होती है और नोटबंदी की घोषणा के ढाई महीने बाद भी किसान इसका नुकसान झेल रहे हैं।

उत्तर प्रदेश योजना आयोग के सदस्य पंवार ने बताया, “चेक का उपयोग नहीं होता, किसान नकदी रहित (कैशलेस) अर्थव्यवस्था नहीं अपनाते। परिणामस्वरूप फसलों की कीमतों में तेज गिरावट हुई है।”

कृषि पत्रिका ‘फार्मर्स फोरम’ और ‘कृषक समाचार’ के संपादक जाखड़ का कहना है, “अगर तैयार हो चुकी फसल की कीमत उतनी ही रहती है, जितनी लागत से बोई गई थी, तो किसान उस फसल को काटेगा ही नहीं। अगर कोई किसान अपने कृषि उत्पाद लेकर मंडी जाता है और वह नहीं बिकता तो या तो कीमतें बेहद गिर जाएंगी या तो उसे फसल फेंकनी पड़ेगी।”

पेशे से किसान पंजाब वासी जाखड़ कहते हैं, “नोटबंदी ने सहकारी बैंकों का भविष्य भी खतरे में डाल दिया है। किसानों को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी आने वाले केंद्रीय बजट में किसी न किसी तरह इस घाटे की भरपाई करेंगे।”

रबी की बुआई को लेकर नोटबंदी की आलोचना पर सरकार का कहना है कि उल्टे इस वर्ष रबी की बुआई में वृद्धि हुई है।

इस पर जाखड़ का कहना है कि सरकार ने जो आंकड़े दिए हैं वह सूखे की मार झेल रहे वर्ष की तुलना में दिए हैं। उन्होंने बताया कि रबी की बुआई की लागत में वृद्धि हुई है, जबकि गुणवत्ता में कमी आई है।

वहीं पंवार का कहना है, “सरकार इस आंकड़े को पेश कर अप्रत्यक्ष तरीके से क्या यह कहना चाह रही है कि रबी की बुआई में रुपयों की जरूरत नहीं होती।”

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद और किसान मोर्चा के अध्यक्ष विरेंद्र सिंह के बयान का संदर्भ देते हुए पंवार ने कहा, “नहीं तो भाजपा सांसद क्यों कहते कि नोटबंदी ने किसानों को अपना बजट संतुलित करने में मदद की है या किसान शराब पर अपना पैसा खर्च करते हैं।”

उल्लेखनीय है कि विरेंद्र सिंह ने इसी महीने बयान दिया था कि नोटबंदी से किसानों को सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि उन्होंने फिजूलखर्ची बंद कर दी।

पंवार ने कटाक्ष करते हुए कहा, “इसका मतलब है कि किसान बिना रुपयों के बेहतर कर सकते हैं।”

वह किसानों की समस्या विस्तार से बताते हैं, “फसल की बुआई के लिए किसान बीज खरीदते हैं और जब उनके पास पैसा ही नहीं होगा तो वे घर पर बचा कर रखे गए बीजों का उपयोग करेंगे। इस वर्ष अच्छी गुणवत्ता के बीज नहीं बोए गए और न ही पर्याप्त खाद पड़े। नोटबंदी के कारण मान्यता प्राप्त उच्च गुणवत्ता के बीजों और खादों की बिक्री में गिरावट आई है।”

उन्होंने बताया, “किसानों ने बचाकर रखे पुराने या खराब उत्पादकता वाले बीज बोए और खेत में जरूरी चीजें भी नहीं डाल पाए। इस तरह गुणवत्ता में गिरावट आई है।”

नोटबंदी का असर सिर्फ कृषि क्षेत्र पर ही नहीं बल्कि देश के बड़े अनौपचारिक क्षेत्रों- कारीगरों, अर्धकुशल कामगारों, राजगीरों और निर्माण श्रमिकों- पर भी पड़ा है। यह अनौपचारिक क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पाद का 45 फीसदी योगदान देता है और इन क्षेत्रों से देश के कुल रोजगार का 80 फीसदी रोजगार सृजित होता है।

पंवार का कहना है कि अब नकदी की समस्या से थोड़ी राहत मिलनी शुरू हुई है, लेकिन नौकरियां अभी भी नहीं हैं और नोटबंदी का वास्तविक प्रभाव कुछ समय के बाद ही समझ में आएगा।

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