नगर निगम कार्यकारिणी बैठक, ईकोग्रीन एजेंसी, लेखा अधिकारी, बजट और तमाम मुद्दों पर हुई जमकर नोकझोंक
रिपोर्ट- आशीष सिंह/LUCKNOW
लखनऊ नगर निगम की पुनरीक्षित बजट कार्यकारिणी बैठक हंगामेदार रही। बैठक में फेल हुई ईकोग्रीन एजेंसी, लेखा अधिकारी, बजट और तमाम मुद्दों पर जमकर नोकझोंक हुई। हालांकि कार्यकारिणी ने सर्वसम्मति से 22 अरब 26 करोड़ पांच लाख रुपये का बजट पास कर दिया। साथ ही कोई नया कर भी नही लगाया गया है।
आपको बता दें कि निगम का मूल बजट 19 अरब 92 करोड़ 88 लाख था, जिसमें 223 करोड़ 17 लाख रुपये की बढोत्तरी की गयी है। बैठक की अध्यक्षता महापौर संयुक्ता भाटिया ने की तो वहीं प्रशासनिक पक्ष से नगर आयुक्त डॉ इंद्रमणि त्रिपाठी मौजूद रहे।
बजट पास होते ही पार्षदों ने वॉर्डों में कूड़ा उठान के लिए लगाई गई ईकोग्रीन एजेंसी पर सवाल किए। पार्षदों ने आरोप लगाया कि ईकोग्रीन कई वार्डों में पूरी तरह से फेल हो चुकी है। वह सही से काम तक नही कर पा रही। मामले पर चिंता व्यक्त करते हुए कार्यकारिणी ने ऐसे क्षेत्रों में कूड़ा उठान की जिम्मेदार स्थानीय पार्षद को सौंपी है।
अब अब पार्षद के निर्देश पर ठेले-ई रिक्शा घर-घर जाएंगी और नगर निगम के कर्मचारी इसे नजदीकी कॉम्पैक्टर या पड़ावघर तक पहुंचाएंगे। मामले पर शासन को भी पत्र भेजकर ईको ग्रीन की शिकायत दर्ज करवाने का निर्णय लिया गया।
महापौर की अध्यक्षता में कार्यकारिणी सदस्यों ने आंतरिक लेखा परीक्षक द्वारा कैश बुक और वाउचर्स समेत अन्य प्रपत्र उपलब्ध न करवाए जाने पर सवाल उठाया। लेखा विभाग 2017 से आज तक का लेखा जोखा देने में आना कानी कर रहा है।
अनियमितताओं की शिकायत पर इसे लेकर कई बार सवाल जवाब भी हो चुका है। इसके बावजूद जांच के लिए प्रपत्र नहीं दिए गए। नाराजगी के बाद नगर आयुक्त ने 15 जनवरी तक का समय मांगा।
नगर निगम को राज्य वित्त आयोग से मिले 68 करोड़ रुपये की धनराशि तो मिली लेकिन इसकी जानकारी न महापौर को दी गयी और न ही कार्यकारिणी सदस्यों कुछ बताया गया।
जबकि राज्य वित्त आयोग की अध्यक्ष महापौर हैं, ऐसे में उन्हें इस बजट की जानकारी न देना नियम विरुद्ध है। महापौर ने मामले पर नाराजगी जताते हुए कहा कि अगर बजट की जानकारी होती तो इससे विकास के कई काम करवाए जा सकते थे।
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कार्यकारिणी की बैठक में पार्षदों ने सवाल उठाया कि नगर निगम अधिकारियों ने कई मदों में बजट से ज्यादा खर्च कर दिया। इसके लिए कार्यकारिणी से अनुमति भी नहीं मांगी गई। इसपर कार्यकारिणी सदस्यों ने एकमत होकर विरोध प्रस्ताव पारित किया और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।
मामले पर महापौर ने लेखाधिकारी से रिपोर्ट मांगी है। इसके साथ ही वध शालाओं से एक लाख 45 हजार रुपये का राजस्व जुटाने का दावा करते हुए अधिकारियों ने अगले वित्तीय वर्ष में इसे बढ़ाकर पांच लाख करने का दावा किया गया।
इसपर कार्यकारिणी सदस्यों ने सवाल उठाया कि जिन वधशालाओं से वसूली का दावा किया जा रहा है, उनमें से ज्यादातर बंद हो चुके हैं। ऐसे में आमदनी के आंकड़े फर्जी हैं। इस पर भी महापौर ने जांच के आदेश दिए हैं।