देहरादून में भी रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण बढ़ रहा है। यहां मद्रासी कॉलोनी में रेल की पटरी के किनारे झुग्गी-झोपड़ियों की तादाद बढ़ती जा रही है। इससे इतर रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) समेत रेलवे के अन्य तंत्र हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। अगर समय रहते इस पर अंकुश नहीं लगाया गया तो एक दिन दून में भी दिल्ली की तरह रेल ट्रैक के किनारे से अतिक्रमण हटाने के लिए न्यायालय को आदेश देना पड़ेगा।

देहरादून की मद्रासी कॉलोनी में कुछ व्यक्तियों ने रेलवे के नाले के पास की जमीन पर झुग्गी-झोपड़ियां बना ली हैं। यहां रेलवे की जमीन पर कब्जे का यह प्रक्रम पिछले एक साल से चल रहा है। अब तक करीब 50 मीटर जमीन पर झोपड़ियां बन चुकी हैं। शुरुआत में यहां बांस के डंडों पर एक झोपड़ी बनी थी, लेकिन इसके बाद अवैध कब्जों का लगातार विस्तार होता गया और रेलवे हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा। मौजूद समय में यहां पांच परिवार झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। रेलवे प्रशासन की नींद नहीं टूटी तो आगे भी यह क्रम बढ़ने की उम्मीद है।
आरपीएफ की भूमिका पर सवाल
आरपीएफ ऐसा बल है, जो देशभर में रेल यात्रियों की सुरक्षा के साथ ही भारतीय रेलवे की संपत्तियों की रक्षा और रेलवे सुविधाओं के इस्तेमाल की निगरानी करता है। लेकिन, देहरादून में रेलवे की भूमि पर किया गया अतिक्रमण आरपीएफ की सतर्कता पर सवाल खड़े करता है। दून में अगर आरपीएफ लगातार पेट्रोलिंग करती और रेलवे की भूमि का निरंतर सत्यापन करती तो अतिक्रमणकारी रेलवे की भूमि पर बसने का साहस नहीं कर पाते।
रेलवे के ‘लुटेरों’ से सत्ता का समीकरण
हल्द्वानी में बीच शहर बेशकीमती रेलवे की भूमि पर कब्जे का खेल एक-दो दिन का नहीं, बल्कि 41 वर्षो का है। लगातार होते अवैध कब्जे को सत्तासीन संरक्षण देते रहे। वोट बैंक बढ़ाने के लिए कब्जेधारियों को सड़क, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध करा दीं।
तो इसलिए दिखाई दरियादिली
हल्द्वानी रेलवे स्टेशन की भूमि पर अतिक्रमण मामले में नेताओं ने दरियादिली यूं ही नहीं दिखाई, इसके पीछे सत्तासुख की लालसा थी। यही कारण है कि 41 वर्षो में यहां आबादी बढ़कर 50 हजार हो गई।
प्रताप सिंह नेगी (इंस्पेक्टर आरपीएफ, देहरादून) का कहना है कि रेलवे की भूमि पर मद्रासी कॉलोनी के पास कुछ अतिक्रमण हैं। रेलवे अधिकारियों ने उन्हें नोटिस दिया है। रेलवे की ओर से निर्देश मिलने पर स्थानीय प्रशासन के सहयोग से अतिक्रमण हटाया जाएगा।