दलाई लामा का पद रहे या न रहे, जनता निर्धारित करे : दलाई लामा

दलाई लामानई दिल्ली। भारत में कई दशकों से आत्म निर्वासन पर रह रहे तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने शनिवार को बड़ी घोषणा की है। उन्होंने कहा कि इसका निर्धारण उनकी जनता ही करेगी की उनका दलाई लामा का पद आगे जारी रहे या नहीं।

एक तिब्बती मठ के अधिकारी ने बताया कि तवांग प्रवास के दौरान मौजूदा दलाई लामा वरिष्ठ लामाओं के साथ बैठक कर नए लामा की नियुक्ति के मुद्दे पर चर्चा करेंगे।

तिब्बती धर्मगुरु ने छठे दलाई लामा सांगयांग ग्यात्सो के जन्म स्थल तवांग में कहा कि, “मैंने इसका फैसला लोगों पर छोड़ दिया है कि दलाई लामा का पद बना रहे या नहीं। यह पूरी तरह तिब्बती लोगों की इच्छा पर निर्भर करता है।”

दलाई लामा शुक्रवार की शाम यहां आए और शनिवार को अपनी धार्मिक चर्चा शुरू की।

वह तवांग मठ में ठहरे हुए हैं, जो बौद्ध धर्म की महायान शाखा के गेलुग्पा स्कूल से संबद्ध है और ब्रिटिशों के समय से ही ल्हासा के ड्रेपुंग मठ से भी धार्मिक तौर पर संबद्ध रहा है।

बीजिंग इसी संबंध का हवाले देते हुए तवांग के चीन का हिस्सा होने का दावा करता रहा है।

तिब्बतियों के 15वें दलाई लामा का चयन तवांग से होने के अनुमान लगाए जा रहे हैं, हालांकि इस बीच चीन ने तिब्बत में एक छह वर्षीय बालक को पंचेन लामा घोषित कर दिया है। पंचेन लामा को तिब्बतियों का दूसरे सर्वोच्च धर्मगुरु का दर्जा प्राप्त है।

दलाई लामा से जब पूछा गया कि क्या अगली दलाई लामा कोई महिला हो सकती हैं, तिब्बती धर्मगुरु ने कहा, “ऐसा भी हो सकता है। पहले चीन को अगले दलाई लामा के पुनर्जन्म के सिद्धांत पर स्पष्ट होने का इंतजार कीजिए।”

शांति के लिए नोबेल पुरस्कार पा चुके 81 वर्षीय दलाई लामा ने कहा, “मैं 2011 में राजनीति से संन्यास ले चुका हूं और सारे राजनीतिक मामलों की देख-रेख हमारी निर्वासित सरकार करती है। लेकिन मैं तिब्बती संस्कृति और पारिस्थितिकी को संरक्षित करने और उसके प्रचार-प्रसार के लिए प्रतिबद्ध हूं।”

चीन ने दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा पर बुधवार को भारत से विरोध दर्ज कराया और बीजिंग में भारतीय राजदूत विजय गोखले से जवाब तलब किया।

अरुणाचल प्रदेश की सीमा मैकमोहन रेखा के जरिए चीन और भारत को विभाजित करती है, हालांकि यह एक काल्पनिक अंतर्राष्ट्रीय सीमा है, जिसे अब वास्तविक नियंत्रण रेखा मान लिया गया है।

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