जीएसटी पर मोदी को लगा तगड़ा झटका, फैसले के खिलाफ देश की टॉप 3 कम्पनियों ने भरी हुंकार
नई दिल्ली। ई-कॉमर्स कंपनियों को वस्तु व सेवा कर (जीएसटी) कानून का ड्राफ्ट मॉडल रास नहीं आ रहा है। जीएसटी मॉडल का विरोध करने के लिए आपस में एक दूसरे से जबरदस्त प्रतियोगिता रखने वाली तीन सबसे बड़ी ई-कंपनियां अमेजॉन, स्नैपडील व फ्लिपकार्ट बृहस्पतिवार को एक मंच पर नजर आईं। जीएसटी के ड्राफ्ट मॉडल में टैक्स कलेक्शन एट सोर्स यानी बिक्री के वक्त टैक्स लेने का प्रावधान किया गया है, जो ई-कॉमर्स कंपनियां नहीं चहती हैं। उनका कहना है कि इस प्रावधान के लागू होने पर ई-कॉमर्स कंपनियों का कारोबार प्रभावित होगा।
अमर उजाला के अनुसार, स्नैपडील के सह-संस्थापक व सीईओ कुणाल बहल ने कहा कि जीएसटी देश के लिए भी अच्छा है और ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए भी, लेकिन टैक्स एट सोर्स प्रावधान को अनिवार्य करने पर हमारी दिक्कतें बढ़ जाएंगी। इससे हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाएंगी और हमारे कारोबार पर नकारात्मक असर होगा।
फ्लिपकार्ट के सह-सस्थापक व कार्यकारी चेयरमैन सचिन बंसल ने बताया कि ई-कॉमर्स के तहत होने वाले कारोबार पूरी तरह से डिजिटल हैं, जहां पूरी पारदर्शिता है। ऐसे में सरकार उन आंकड़ों के सहारे आसानी से विक्रेताओं से टैक्स वसूल सकती है। ई-कॉमर्स कंपनियां सरकार से बिक्री के सभी आंकड़ों को साझा करने के लिए तैयार हैं और तीन राज्यों में तो ऐसा शुरू भी हो गया है। ऐसे में सरकार को टैक्स वसूली करने में कोई दिक्कत नहीं आएगी।
औद्योगिक संगठन फिक्की के साथ इस मामले में ई-कॉमर्स कंपनियों ने सरकार को अपनी चिंता से वाकिफ करा दिया है।
क्या है टैक्स एट सोर्स
टैक्स एट सोर्स प्रावधान के मुताबिक जीएसटी के लागू होने पर ई-कॉमर्स कंपनियों को उनके प्लेटफॉर्म पर आने वाली विक्रेता कंपनियों से दो फीसदी का टैक्स लेना होगा और विक्रेता कंपनियों को भुगतान उस दो फीसदी टैक्स को काटकर देना होगा। ई-कॉमर्स कंपनियों का मानना है कि पूरी प्रक्रिया से उनका काम बढ़ेगा और टैक्स की गणना करने पर ज्यादा खर्च करने से उनकी लागत बढ़ जाएगी।
फंस जाएंगे विक्रेताओं के 400 करोड़ रुपये
फ्लिपकार्ट के सह-संस्थापक व कार्यकारी चेयरमैन सचिन बंसल ने बताया कि टैक्स एट सोर्स के तहत दो फीसदी की टैक्स कटौती करने पर एक अनुमान के मुताबिक विक्रेता कंपनियों के 400 करोड़ रुपये की कार्यशील पूंजी फंस जाएगी जिसका असर उनके कारोबार पर पड़ेगा। टैक्स के प्रावधान होने पर विक्रेता कंपनियां ई-कॉमर्स कंपनियों के प्लेटफॉर्म पर आने के कतराने लगेंगी।