जानें क्यों इतना खास हैं नरक चतुर्दशी का दिन, पढ़े पूरा इतिहास

हिंदू पंचांग के मुताबिक हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। नरक चतुर्दशी पर्व का हिंदू धर्म में खास महत्व है। कहते हैं कि इस दिन उपासना करने से घोर नरक से भी मुक्ति पाई जा सकती है।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन सच्चे मन से की गई आराधना सभी जीवात्माओं की सद्गति करवा सकती हैं। नरक चतुर्दशी को रूप चौदस और काली चौदस भी कहा जाता है। दिवाली से एक दिन पहले नरक चतुर्दशी होने की वजह से इसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है।

नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठने का विशेष महत्व है। इस दिन तीर्थ स्थल पर स्नान किया जाता है। कहते हैं कि इस दिन तीर्थ में स्नान करने से अनेकों गुना अधिक फल प्राप्त होता है। नरक चतुर्दशी के दिन स्नान करने से पहले तिल या सीसम तेल का उबटन लगाया जाता है। स्नान के बाद लोग नए कपड़े पहनते हैं, पूजा करते हैं और उसके बाद ही भोजन करते हैं।

नरक चतुर्दशी की शाम की पूजा का महत्व बहुत अधिक है। नरक चतुर्दशी की शाम को यम दीपक जलाया जाता है। कहते हैं कि जो व्यक्ति सच्चे मन से यम को प्रणाम कर घर के बाहर पानी के स्थान पर उनके नाम का दीपक जलाता है उसे नरक से मुक्ति मिलती है। ऐसी मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के दिन पानी या नाली के पास दीपक जलाने वाले को मरने के बाद नरक नहीं जाना पड़ता है। बताया जाता है कि ऐसे व्यक्ति की सद्गति होती है। इसलिए इस दिन को नरक चतुर्दशी कहा जाता है क्योंकि यह नरक से बचाने वाली तिथि है।

पौराणिक कथाओं में ऐसा बताया जाता है कि भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने धरती पर रहते हुए नरकासुर नाम के राक्षस का वध किया था। उन्होंने यह वध कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन किया था इसलिए इस दिन को नरक चतुर्दशी कहा जाता है।

शास्त्रों के अनुसार बताया जाता है कि नरकासुर नाम के राक्षस ने 16 हजार कन्याओं को अपना बंधक बना लिया था जिन कन्याओं को छुड़ाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध किया। जब वह 16 हजार कन्याएं यह कह कर रोने लगी कि अब उन्हें इस पृथ्वी पर कोई नहीं अपना आएगा और वह आत्महत्या करना चाहती हैं तो इस पर श्री कृष्ण ने उन सभी 16 हजार कन्याओं को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।

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