जानिए 10 लाख से ज्यादा लोग चीन में किस कानून का विरोध कर रहे हैं…

9 जून, 2018. रविवार का दिन. हॉन्ग कॉन्ग की कुल आबादी है लगभग 70 लाख. इनमें से तकरीबन 10 लाख लोग 9 जून को सड़कों पर उतर आए. इनकी अदावत है एक प्रस्तावित कानून से. जो अगर बन गया, तो चीन जिसे चाहे हॉन्ग कॉन्ग से उठाकर अपने यहां ले जा सकेगा.

 

चीन

 

उस पर मुकदमा चला सकेगा. इस Extradition Bill के सहारे चीन के लिए हॉन्ग कॉन्ग में अपनी आलोचना, अपना विरोध या खुद के फैसलों पर उठने वाले सवालों को दबाना बहुत आसान हो जाएगा. हॉन्ग कॉन्ग के इतिहास में हुए सबसे बड़े जन विरोधों में था ये.

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बता दें की शुरुआत इससे कि इट्स कॉम्प्लिकेटेड. पहले ये अंग्रेजों का उपनिवेश हुआ करता था. ब्रिटेन के पास लीज़ था इसका. 1997 में ये लीज़ खत्म हो गया. इसी साल ब्रिटेन और चीन के बीच ‘सिनो-ब्रिटिश डेक्लरेशन’ हुआ.

 

जहां इसके तहत, हॉन्ग कॉन्ग चीन के अधिकारक्षेत्र में आ गया. उसे चीन के स्पेशल अडमिनिस्ट्रेटिव रिजन का दर्ज़ा मिला. इस स्पेशल स्टेटस के तहत हॉन्ग कॉन्ग है तो चीन का ही हिस्सा, मगर उसका सिस्टम अलग है. उसे ये आज़ादी मिलती है एक संवैधानिक सिस्टम से, जिसका नाम है- बेसिक लॉ.

 

 

यही चीज हॉन्ग कॉन्ग और चीन के बीच की चीजें तय करती है. ‘सिनो-ब्रिटिश डेक्लरेशन’ के समय ब्रिटेन की PM थीं मारगरेट थ्रेचर. उन्होंने हॉन्ग कॉन्ग चीन को हैंडओवर करते समय जो बातचीत की थी, उसमें निष्पक्ष चुनाव और लोकतांत्रिक सिस्टम का वादा किया था.

लेकिन दोनों के रिलेशनशिप की पॉलिसी है- वन कंट्री, टू सिस्टम्स. यानी, एक देश दो सिस्टम. इसके तहत हॉन्ग कॉन्ग के पास काफी ऑटोनमी (स्वायत्तता) है. यहां का कानूनी सिस्टम अलग है, निष्पक्ष और पारदर्शी है. प्रेस स्वतंत्र है. नागरिकों के पास मज़बूत अधिकार हैं. उन्हें अभिव्यक्ति की आज़ादी है.

बेसिक लॉ की मियाद 50 सालों के लिए ही है. 2047 में इसे खत्म होना है. इसके बाद उसके अधिकारों का क्या होगा? उससे भी बड़ा चिंता ये है कि चीन लगातार हॉन्ग कॉन्ग की स्वायत्तता खत्म करने की कोशिश कर रहा है.

दरअसल दो शब्दों में इसका जवाब है- शी चिनफिंग. चीन के राष्ट्रपति. 2012 में उनके प्रेजिडेंट बनने के बाद पहले से ही बेहद आक्रामक चीन और आक्रामक हो गया. बाहर ही नहीं, अपने यहां भी. चिनफिंग आलोचनाओं के लिए रत्तीभर भी सहनशीलता नहीं रखते.

देखा जाये तो ऐसे में हॉन्ग कॉन्ग की आज़ादी, उसकी लोकतांत्रिक भावनाएं चीन की सत्ता के लिए बर्दाश्त से बाहर की चीजें हैं. 2014 में भी हॉन्ग कॉन्ग के अंदर बहुत बड़ा जन प्रतिरोध हुआ. लोग निष्पक्ष चुनाव की मांग में सड़कों पर उतर आए. चीन चाहकर भी जोर-जबरदस्ती से इसे दबा नहीं सकता था. क्योंकि बेसिक लॉ का सिस्टम उसे ऐसा करने का अधिकार नहीं देता.

 

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