जानिए वो ‘नन्हा बच्चा’ जो ख़राब कर रहा है हमारा मानसून

नई दिल्ली : मानसून के कमजोर रहने की संभावना है। वही अमेरिकी एजेंसियों के मुताबिक इस बार यह 60 फीसदी ही रहेगा। जहां अमेरिकी एजेंसियों ने यह भी बताया है कि प्रशांत महासागर में इस बार देर से ही सही लेकिन अल नीनो बनना शुरू हो गया है।

मानसून

लेकिन एजेंसियों ने यह भी बताया है कि इसके बाद से यह स्थिति सुधरेगी। देखा जाये तो वैज्ञानिकों में अभी इस पर अनिश्चितता है कि यह आखिरी तक कैसा रहेगा? एजेंसियों ने कहा है कि अभी इस पर कुछ कहना जल्दी होगी क्योंकि आगे के मौसम में हालात तेजी से बदल सकते हैं।

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क्या है अलनीनो –

बता दें की अलनीनो एक स्पैनिश शब्द है, जिसका अर्थ है ‘लिटिल बॉय’ (नन्हा बच्चा) है. इसे आसान भाषा में गर्म जलधारा कहा जा सकता है. प्रशांत महासागर में पेरू के पास समुद्री तट के गर्म होने वाली घटना को अलनीनो कहा जाता है।

जहां पिछले कुछ सालों से प्रशांत महासागर की सतह का तापमान बढ़ रहा है। इसकी वजह से समुद्री हवाओं का रुख बदल जाता हैअलनीनो की वजह से असामान्य वाष्पीकरण (असामान्य इवापोरेशन) और कंडेंस्ड (गाढ़े) होकर बने बादल साउथ अमेरिका में भारी वर्षा करते हैं, लेकिन प्रशांत महासागर का दूसरा उष्ण कटिबंधीय छोर (ट्रॉपिकल एंड) इस स्थिति से अछूता रहता है और यहां सूखे की स्थिति पैदा हो जाती है।

वहीं कहीं न कहीं इसका असर दक्षिण पश्चिमी मानसून को भी प्रभावित करती है. ( दक्षिण पश्चिमी मानसून यानी हिंद महासागर, अरब सागर की ओर से भारत के दक्षिण-पश्चिम तट पर आने वाली हवाएं जो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि में भारी वर्षा करातीं गर्मी में खलनायक बनता है अलनीनो 2015 में भारत में बारिश बेहद कम हुई थी और अलनीनो के बुरे प्रभाव की वजह से ही मानसून सामान्य से करीब 15 फीसदी कम रहा था। ये अल नीनो का भारत के मानसून पर गहरा असर पड़ता है इसकी वजह से भारत में सामान्य मानसून नहीं होता, जिसका खामियाजा सूखा झेल रहे किसानों को उठाना पड़ता है।

क्या है सामान्य बारिश का पैमाना –

96 से 104 फीसदी के बीच दीर्घावधि बारिश को ‘सामान्य’ माना जाता है। जबकि 96 फीसदी से कम को ‘सामान्य से कम’ और 104 से 110 फीसदी दीर्घावधि बारिश को ‘सामान्य से ज्यादा’ माना जाता है।

अलनीनो का मछलियों के उत्पादन पर असर –

भारत में बड़े स्तर पर मछलियों का उत्पादन होता है और अलनीनो का मछलियों के उत्पादन पर गहरा असर पड़ता है। अलनीनो की वजह से पूर्वी प्रशांत समुद्र में गर्म जल की मोटी परत बन जाती है, जो ठंडे पानी के ऊपर एक दीवार की तरह काम करती है।

वही गर्म पानी की इस दीवार के कारण प्लांकटन या शैवाल की सही मात्रा विकसित नहीं हो पाती है। जिस कारण मछलियों को खाने की तलाश में घर छोड़कर जाना पड़ता है, वहीं मछलियों के गायब होने से मछुआरों की रोजी-रोटी पर भी असर पड़ता है।

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