जानिए भारत में 72 साल पहले ऐसे शामिल हुआ था कश्मीर…

देश के आजादी से पहले कश्मीर की एक अलग रियासत हुआ करती थी. वहीं देखा जाये तो कश्मीर पर डोगरा राजपूत वंश के राजा हरी सिंह का शासन था. बतादें की 1947 में आज़ादी के बाद तब पाकिस्तान नया- नया बना था. लेकिन वहीं एक तरफ हिन्दुस्तान तो दूसरी तरफ पाकिस्तान और बीच में जमीन का छोटा सा टुकड़ा कश्मीर.

 

 

खबरों के मुताबिक 70 साल पहले. एक क़बायली हमला. जो खत्म हुआ एक साल दो महीने एक हफ्ता और तीन दिन बाद. जिसने बदल दी जन्नत की सूरत. जिसने जन्नत को जहन्नम बनने की बुनियाद रखी. जिसने पहली बार मुजाहिदीन को पैदा किया. जिसने कश्मीर की एक नई कहानी लिख डाली.

बनबसा शारदा बैराज पर रेड अलर्ट घोषित. लगातार बढ़ रहा ये खतरा

वहीं करीब 700 साल पहले जिस गुलिस्तां को शम्सुद्दीन शाह मीर ने सींचा था. उनके बाद तमाम नवाबों और राजाओं ने जिसको सजाया-संवारा. जिसकी आस्तानों और फिजाओं में चिनार और गुलदार की खुशबू तैरती थी. जिसे आगे चलकर जमीन की जन्नत का खिताब मिला. उसी कश्मीर में आज से ठीक सत्तर साल पहले एक राजा की नादानी और एक हुकमरान की मनमानी ने फिजाओं में बारूद का ऐसा जहर घोला जिसकी गंध आज भी कश्मीर में महसूस की जा सकती है.

जहां जंगी सामान की कमजोर सप्लाई और नक्शों की कमी के बावजूद जांबाज भारतीय सैनिकों ने एक के बाद एक तमाम ठिकानों से पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ना शुरू कर दिया. भारतीय सेना के बढ़ते कदमों की धमक ने तब तक कबायलियों के दिलों में दहशत पैदा कर दी थी. उनमें भगदड़ मच चुकी थी. लिहाजा देखते ही देखते सेना ने बारामूला, उरी और उसके आसपास के इलाकों को वापस कबायलियों से अपने कब्जे में ले लिया. मोर्चा संभालते ही भारतीय सेना ने पाकिस्तान को अहसास करा दिया कि भारत सिर्फ आकार में ही नहीं बल्कि दिलेरी में भी पाकिस्तानी से बहुत बड़ा है. मोर्चा संभालने के अगले कुछ महीनों में ही दो तिहाई कश्मीर पर भारतीय सेना का कब्जा हो चुका था. भारतीय फौज जीत का परचम लहरा चुकी थी.

लेकिन इस जंग के बाद कश्मीर का मसला संयुक्त राष्ट्र में पहुंचा. जिसके बाद 5 जनवरी 1949 को सीजफायर का ऐलान कर दिया गया. तय हुआ कि सीजफायर के वक्त जो सेनाएं जिस हिस्से में थीं उसे ही युद्ध विराम रेखा माना जाए. जिसे एलओसी कहते हैं. इस तरह कश्मीर का कुछ हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया जिसे आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) कहा जाता है. जिसमें गिलगित, मीरपुर, मुजफ्फराबाद, बाल्टिस्तान शामिल हैं.

दरअसल आजादी के बाद एक तरफ हिंदुस्तान तरक्की की नई ऊंचाइयां छू रहा था तो वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान ने अपनी सारी ताकत दुनियाभर से हथियारों को बटोरने में जुटा रखी थी. भारत से करारी शिकस्त के बाद भी पाकिस्तान बाज नहीं आया और उसने कश्मीरी जेहादियों के भेस में अपनी सेना के जवानों को चोरी छिपे करगिल की पहाड़ियों पर घुसा दिया. लेकिन ऑपरेशन विजय चलाकर भारतीय जांबाजों ने दुश्मन के नापाक मंसूबों पर पानी फेर दिया. हालांकि पहाड़ियों की ऊंचाई की वजह से पाकिस्तानी आतंकियों का सामना करने में भारतीय फौज के सामने कई मुश्किलें आ रही थीं. लेकिन भारत ने तोपों की गरज ने दुश्मन के हौसले पस्त कर दिए. भारतीय फौज ने 26 जुलाई 1999 को कारगिल से पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार भगाया था.

 

LIVE TV