जानिए आखिर क्या हैं ये मामला हरेन पंड्या मर्डर की सच्चाई , जिसका इल्ज़ाम अमित शाह, नरेंद्र मोदी पर आया…

ताकि वक्त पड़ने पर उन्हें उखाड़ा जा सके. और कभी-कभी वे खुद कब्र खोदकर बाहर निकल आएं. 2016 के जून की बात है. तब गुजरात पर नजरें जमाए अरविंद केजरीवाल ने हरेन पंड्या का भूत आजाद कर दिया था. क्यों? क्योंकि ये नाम (हरेन पंड्या) आज भी मोदी और शाह की जोड़ी के लिए अप्रिय है.

जानिए आखिर क्या हैं ये मामला हरेन पंड्या मर्डर की सच्चाई , जिसका इल्ज़ाम अमित शाह, नरेंद्र मोदी पर आया...

 

बतादें की 2003 के गुजरात में लौटना होगा. 2002 दंगों के बाद बीजेपी को बड़ी जीत मिली थी और नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बने दो साल हो गए थे. केशुभाई पटेल से लेकर गुजरात बीजेपी के बाकी बुजुर्ग साइडलाइन थे. तय हो चुका था कि गुजरात में भाजपाई झंडा चलेगा तो उस पर नरेंद्रभाई का ही नाम होगा.

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जहां  केशुभाई का एक सिपहसालार और था. एंटी नरेंद्रभाई लॉबी का सबसे बड़ा चेहरा. लंबा-चिट्टा, ब्राह्मण परिवार का हरेन पंड्या, जिसकी ब्राह्मणों से भरी ‘बीजेपी आलाकमान’ तक पहुंच थी. सिर पर RSS का हाथ था.  प्रदेश का पूर्व गृहमंत्री. गुजरात में राजनीति का पुराना अनुभव. मीडिया में अच्छे कनेक्शन.  वहीं इस वारदात के छींटे अमित शाह पर आए और इसलिए नरेंद्र मोदी तक भी गए. कागजों पर सीधे नहीं, जुबानी इलजाम के तौर पर ही. कई थ्योरीज प्रकट हुईं और आगे फर्जी एनकाउंटर की सीरीज को इससे जोड़ा गया.

जहां नरेंद्र मोदी से पहले गुजरात बीजेपी में केशुभाई पटेल की चलती थी. हरेन पांड्या उनके खास थे. 1998 की केशुभाई सरकार में वो गृह मंत्री भी थे. लेकिन 2001 में जब नरेंद्रभाई ने केशुभाई से CM की कुर्सी ली तो हरेन पंड्या का भौकाल खत्म होने लगा था. नई सरकार में उन्हें राजस्व मंत्री जरूर बनाया गया था, लेकिन 2003 में उन्होंने ये पद छोड़ दिया था. बाद में डैमेज कंट्रोल के लिए उन्हें बीजेपी की नेशनल एग्जीक्यूटिव में ले लिया गया. लेकिन  वह केशुभाई पटेल खेमे के थे, इसलिए नरेंद्र मोदी के विरोधी माने जाते थे.

केशुभाई तब तक बीमार रहने लगे थे और उनकी तरफ हरेन पंड्या ही बड़े नाम थे. यहीं से दोनों की अदावत शुरू हुई, जिसे RSS और सीनियर बीजेपी नेताओं ने ठंडा करने की कोशिश भी की. 2002 दिसंबर में ही विधानसभा चुनाव थे. दोनों की लड़ाई से पार्टी को नुकसान हो सकता था.

नवंबर के आखिर में RSS की ओर से मदनदास देवी मोदी से मिलने पहुंचे. वह सर संघचालक केसी सुदर्शन, उनके डिप्टी मोहन भागवत, आडवाणी और अटल का संदेसा लेकर गए थे. जो था, ‘बवाल खत्म करो.

देखा जाये तो चुनाव से पहले आपस में मत लड़ो और पंड्या को उनकी सीट दे दो.’ लेकिन बताते हैं कि मोदी ने देवी से मुलाकात ही नहीं की. वह जानते थे कि कुछ ही देर में दिल्ली और नागपुर से फोन बजने लगेंगे. इसलिए तड़के 3 बजे वह गांधीनगर सिविल अस्पताल में ‘थकान’ की शिकायत के साथ एडमिट हो गए.

कैरेवन मैगजीन ने एक बीजेपी नेता के हवाले से छापा था कि हरेन पंड्या को जब ये पता चला तो वो मोदी से भिड़ने सीधे अस्पताल पहुंच गए और कहा, ‘कायरों की तरह सोओ मत. हिम्मत है तो मुझसे ना कहो.’ लेकिन मोदी हरेन पंड्या को सीट न देने पर अड़े रहे. RSS और बीजेपी नेताओं ने हार मान ली. दो दिन बाद मोदी अस्पताल से छुट्टी लेकर आए और पंड्या की सीट एक नए नेता को दे दी. दिसंबर में चुनाव हुए. 2002 दंगों के बाद भारी ध्रुवीकरण हुआ और नरेंद्र मोदी भारी बहुमत से चुनाव जीते.

दरअसल हरेन पंड्या का केस सीबीआई को दिया गया. सालों तक उन्होंने छानबीन की और 12 लोगों को आरोपी बनाया. 2011 में हाईकोर्ट ने सीबीआई की जांच को ‘गड़बड़ियों से भरा’ बताकर खारिज कर दिया. सारे आरोपियों को मर्डर के आरोप से बरी कर दिया, हालांकि दूसरे छोटे आरोप (आपराधिक साजिश और हत्या की कोशिश) बने रहे.

 

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