जानिए चेन्नई में “जय और वीरू” की तरह रहने वाले दो पक्के दोस्तो के इरादे…

जीवन उस नदी की तरह है जो बहती है, तो चलती है और थमती है तो मरती है. अक्सर हमने देखा है कि एक थोड़ी सी चोट, ज़रा सी बीमारी या कोई छोटी सी उठापटक हमें अंदर से ऐसा तोड़ देती है कि हम उठ ही नहीं पाते. ऐसे में किसी के शारीरिक रूप से अक्षम हो जाने से मनोदशा ही बदल जाती है. कैसा हो जब आपको हर कदम पर किसी के सहारे की ज़रूरत पड़ने लगे. कैसा हो जब आपको दुनिया एक लाचार की तरह देखे. कैसा हो अगर आप जब किसी सड़क के किनारे खड़े हो, किसी ट्रेन का इंतजार कर रहे हो या किसी बाजार में कुछ खरीददारी करने के लिए निकले और कई स्तर पर उसे मदद की ज़रूरत पड़े.
जानिए चेन्नई में "जय और वीरू" की तरह रहने वाले दो पक्के दोस्तो के इरादे...
ऐसे में कुछ लोग होते हैं जो इस मदद को स्वीकार तो करते हैं लेकिन उसके भरोसे नहीं रह जाते हैं. बल्कि कई बार वह कुछ ऐसा कर जाते हैं कि लोगों का सहारा बनने के काबिल हो जाते हैं. चेन्नई के रहने वाले मोहम्मद गद्दाफी औऱ उनके दोस्त बालाजी उन्ही लोगों में से हैं जिन्होंने जिंदगी को चलने का नाम न सिर्फ माना है बल्कि साबित करके दिखाया और कुछ ऐसा किया कि वह अब लोगों का सहारा बन रहे हैं.

मोहम्मद गद्दाफी और बालाजी, चेन्नई में रहने वाले दो पक्के दोस्त. इनकी दोस्ती जितनी पक्की है, उतने ही पक्के इनके इरादे जिसका नतीजा है एक अनोखी बाइक टैक्सी सर्विस.
जीवन उस नदी की तरह है जो बहती है, तो चलती है और थमती है तो मरती है. अक्सर हमने देखा है कि एक थोड़ी सी चोट, ज़रा सी बीमारी या कोई छोटी सी उठापटक हमें अंदर से ऐसा तोड़ देती है कि हम उठ ही नहीं पाते. ऐसे में किसी के शारीरिक रूप से अक्षम हो जाने से मनोदशा ही बदल जाती है. कैसा हो जब आपको हर कदम पर किसी के सहारे की ज़रूरत पड़ने लगे. कैसा हो जब आपको दुनिया एक लाचार की तरह देखे. कैसा हो अगर आप जब किसी सड़क के किनारे खड़े हो, किसी ट्रेन का इंतजार कर रहे हो या किसी बाजार में कुछ खरीददारी करने के लिए निकले और कई स्तर पर उसे मदद की ज़रूरत पड़े.

ऐसे में कुछ लोग होते हैं जो इस मदद को स्वीकार तो करते हैं लेकिन उसके भरोसे नहीं रह जाते हैं. बल्कि कई बार वह कुछ ऐसा कर जाते हैं कि लोगों का सहारा बनने के काबिल हो जाते हैं. चेन्नई के रहने वाले मोहम्मद गद्दाफी औऱ उनके दोस्त बालाजी उन्ही लोगों में से हैं जिन्होंने जिंदगी को चलने का नाम न सिर्फ माना है बल्कि साबित करके दिखाया और कुछ ऐसा किया कि वह अब लोगों का सहारा बन रहे हैं.

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मोहम्मद गद्दाफी और बालाजी जैसे लोग कम होते हैं लेकिन इनका होना जिंदगी को वो आयाम दे जाता है जिससे कई हारे हुए लोगों को जीतने की प्रेरणा मिलती है.

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मेरा नाम मोहम्मद ग़द्दाफी है, मुझे लोकोमोटिव डिसऐबिलिटी है जिसमें मेरे दोनों पैर पोलियों से प्रभावित हैं. मेरा एक दोस्त भी है, उसका नाम बालाजी है. बालाजी की रीढ़ की हड्डी में चोट है. ज़िंदगी चल रही थी, वैसे ही जैसे सबकी चलती है. वैसे भी हम सब अपने अपने सच को स्वीकार करके आगे बढ़ ही जाते हैं. लेकिन हमने इस सच्चाई को स्वीकार ही नहीं किया, बल्कि इसी के साथ ठीक से आगे बढ़ने के बारे में भी सोचा. कुछ साल पहले मेरे दोस्त बालाजी ने एक बाइक टैक्सी सर्विस शुरू करने का फैसला लिया. सर्विस का नाम है माँ उला बाइक टैक्सी सर्विस. मुझे बालाजी का आयडिया पसंद आया और मैं भी उसके साथ हो लिया.

तो सर्विस की क्या ख़ास बात है. यही कि इसे दिव्यांगजन ही चलाते हैं. तमिलनाडु सरकार दिव्यांग को बाइक देती है. हमारे पास ट्रांसपोर्ट का यही ज़रिया है. जहां तक बस या ट्रेन की बात है तो उसमें चढ़ना और उतरना ही हमारे लिए इतना संघर्ष भरा होता जाता है. ऐसे में हमने सरकार की दी गई इस बाइक को किराए पर चलाने का फैसला लिया. चेन्नई में हमारे कुल 30 राइडर्स हैं, इन सभी के पास अपनी अपनी बाइक्स हैं, वह माँ उला सर्विस से जुड़े और अब इन बाइक्स पर आम सवारी को उसकी मंज़िल तक पहुंचाते हैं और पैसा भी कमाते हैं. हमने इसे स्वरोज़गार के लिए इस्तेमाल किया. यह ठीक वैसे ही काम करती है जैसे कि आपकी बाकी की टैक्सी सर्विस काम करती है. बस फर्क़ इतना है कि इसे दिव्यांग ही चलाते हैं.

लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि ये सेवा सिर्फ दिव्यांगों के लिए है. यह पब्लिक सर्विस है, हम सब लोगों को सेवाएं देते हैं. हां अगर सवारी दिव्यांग होती है तो उसे पांच किलोमीटर के दायरे में हम मुफ्त में सेवा देते हैं. वैसे भी दिव्यांग के लिए नौकरी ढूंढना बहुत ही चुनौतीपूर्ण है. ऐसे में हमने अपना और अपने साथियों की रोज़ी रोटी के लिए यह तरीका निकाला. यह दिव्यांग के जीवन को बदल रहा है. वो इस सेवा से पैसा कमाते हैं, वो भी बिना कोई रक़म खर्च किए.

जहां तक परिवार की बात है तो मेरा बेटा और पत्नी है. परिवार को हम पर गर्व है, वो हमें एक विश्वास देते हैं. उनके भरोसे को देखकर ही लगता है कि हम कुछ भी कर सकते हैं. जब मैं घर आता हूँ और मेरा बेटा मुझसे गले लगता है तो दिन की सारी थकान, सारी असुविधाएं दूर हो जाती हैं. उनका चेहरा ही मुझे बहुत बल देता है.

इस टैक्सी सर्विस को हम पूरे तमिलनाडु में फैलाना चाहते हैं. हमारा मक़सद एक ही है, दिव्यांग आत्मनिर्भर बने. उसे अपनी आमदनी के लिए किसी पर निर्भर न होना पड़े और उससे भी ज़्यादा इस समाज में उसकी उतनी ही भागेदारी हो जितनी की उनकी है जिन पर समाज ने ‘नॉर्मल’ का ठप्पा लगा रखा है.

 

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