चीन और नेपाल की बढ़ने लगी नजदीकी, क्या इस जुगलबंदी से भारत को होगी परेशानी?

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री मोदी की मामल्लपुरम में हुई मुलाकात काफी सुर्खियों में रही थी, कई अहम मसलों पर बात भी हुई थी. लेकिन इसके बाद ही चीन के राष्ट्रपति और नेपाल में हुई वार्ता का भारत में असर साफ तौर पर तो नहीं लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर नजर आने लगा है.

चीन और नेपाल

पीएम मोदी से मुलाकात के तुरंत बाद शी जिनपिंग ने नेपाल का दौरा किया. शी का नेपाल दौरा कई मायनों में ऐतिहासिक था. क्योंकि 1996 के बाद से किसी भी चीनी राष्ट्रपति ने नेपाल का दौरा नहीं किया था. शी जिनपिंग के स्वागत के लिए जिस स्तर पर नेपाल में तैयारियां की गई थीं, उससे नेपाल की सरकार के लिए इस दौरे की अहमियत का अंदाजा लग जाता है.

वर्तमान में नेपाल में चीन ने पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव्स की तुलना में बहुत कम निवेश है लेकिन जल्दी ही यह स्थिति बदलने वाली है. नेपाल की सत्तारूढ़ पार्टी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) ने चीन के सहयोग में 11 इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स का ड्राफ्ट रिलीज किया था. इसमें से ज्यादातर सड़कें और बिजली से जुड़ीं ही परियोजनाएं थीं.

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इसकी सबसे अहम योजना काठमांडू को चीनी सीमा से जुड़ने वाली रेलरोड का निर्माण है. नेपाल आधिकारिक तौर पर चीन की महत्वाकांक्षी योजना बेल्ट ऐंड रोड में शामिल होने की घोषणा बहुत पहले कर चुका है लेकिन फंडिंग को लेकर मतभेद की वजह से परियोजनाएं शुरू होने में देरी हो रही थी. नेपाल जहां ज्यादा अनुदान राशि चाहता था तो चीन ज्यादातर कर्ज के जरिए निवेश करने का इच्छुक था.

बेल्ट ऐंड रोड की दुनिया भर में हो रही आलोचना के बावजूद नेपाल की सरकार इसमें शामिल होने के लिए बेसब्र है. चीन की बीआरआई के बारे में आलोचकों का कहना है कि इसके तहत चीन ने कई देशों को विकास के नाम पर कर्ज के जाल में फंसा दिया. हालांकि, नेपाल में लोग रेल रोड व अन्य परियोजनाओं को देश की पिछड़ती अर्थव्यवस्था में प्राण फूंकने में मददगार मान रहे हैं. दूसरी तरफ, इस दांव से नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी अपनी गिरती लोकप्रियता बढ़ाने का सपना भी संजो रही है.

नेपाल की भारत के साथ दक्षिणी सीमा के उलट नेपाल-चीन की सीमा पहाड़ों से घिरी है जिससे दोनों देशों के लोगों के बीच संपर्क सीमित है. भारत के प्रभाव क्षेत्र में रहे नेपाल में अब चीन ने अपनी पकड़ मजबूत करने का दांव खेल दिया है.

चीन भले ही नेपाल में सांस्कृतिक तौर पर पूरी तरह से विदेशी हो लेकिन नेपाल के बाजार चीनी वस्तुओं से भरे पड़े हैं. काठमांडू के व्यापारी देव राउत कहते हैं, चीन सब कुछ बनाता है, केवल पेट्रोल भारत से आता है. अधिकतर नेपालियों की तरह सरकार भी यह मानने लगी है कि चीन वहां विकास कार्यों में अहम भूमिका निभा सकता है.

नेपाल चीन को अब पड़ोसी देश के विकल्प के तौर पर देखने लगा है. नेपाल के एक कॉलमनिस्ट ने एक लेख में लिखा था, नेपाल के चारों तरफ जमीन से घिरे होने की वजह से और व्यापार पर पूरी तरह से भारत पर निर्भर होने की बेचैनी को नेपाल की ओली सरकार ने राष्ट्रवाद में खूब भुनाया गया है.

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नेपाल 1947 के बाद से भारत पर अपनी घरेलू राजनीति व विदेश नीति में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाता रहा है. 1962, 1989 में ब्लॉकेड और 2015 के मवेशियों के मुद्दे को लेकर चले विवाद से दोनों देशों के बीच दूरियां पैदा हो गईं. 2015 में अनाधिकारिक तौर पर हुए ब्लॉकेड से नेपाल में चीन के साथ संबंध मजबूत करने की पुरजोर मांग उठी. काठमांडू से चीन तक की ट्रेन के विकल्प को नेपाली भारत से ब्लॉकेड की स्थिति में मजबूती के तौर पर देखने लगे. जल्द ही यह पूरे नेपाल में भावनात्मक मुद्दा बन गया और एनसीपी को 2017 में बड़ी जीत हासिल हुई.

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