मंगल, चंद्रमा की चट्टानों से कंक्रीट बनाना संभव

चट्टानों से कंक्रीटसैन फ्रांसिस्को। अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी नासा में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के सिविल इंजिनीयर अन्य शोधकर्ताओं के साथ मंगल ग्रह या चंद्रमा की सतह पर मौजूद चट्टानों से कंक्रीट या सीमेंट बनाने की संभावना तलाश रहे हैं। नासा 2030 तक मंगल पर मनुष्य को ले जाने और वहां रुकने की व्यवस्था बनाने की योजना पर काम कर रही है।

नासा अगर अपनी इस योजना में कामयाब रहती है तो वहां सुरक्षित तरीके से रहने के लिए हजारों टन कंक्रीट की जरूरत पड़ेगी, क्योंकि मंगल और चंद्रमा की सतह पर लगातार खतरनाक विकिरण या उल्कापिंडों की बमबारी होती रहती है।

चूंकि पृथ्वी से टनों सीमेंट मंगल तक ले जाना संभव नहीं है, तो सबसे कारगर उपाय यही है कि मंगल की सतह पर ही उन्हें बनाया जाए।

इसमें हालांकि सबसे बड़ी समस्या यह है कि पृथ्वी पर सीमेंट बनाने की मौजूदा तकनीक में अथाह ताप और ऊर्जा की जरूरत होती है, लेकिन मंगल ग्रह पर ऊर्जा की आपूर्ति बेहद कम है।

इस समस्या से निपटने के लिए नासा के एम्स रिसर्च सेंटर में शोधरत डेविड लोफ्टस और उनके सहयोगी तथा स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में सिविल एंड इनवायर्नमेंटल इंजिनीयरिंग के प्रोफेसर माइकल लेपेक ने जैविक क्रिया के जरिए कंक्रीट निर्माण की विधि इजाद की है।

कुछ जीव प्रोटीन की मदद से चीजों को हड्डी या दांत की तरह के कठोर पदार्थ में बदल देते हैं। इसीलिए शोधकर्ता ऐसा कंक्रीट बनाने पर काम कर रहे हैं, जो पशुओं के रक्त में पाए जाने वाले प्रोटीन की मदद से एकदूसरे से मजबूती से बंधा रहे।

बूचड़खाने से काफी कम कीमत पर पशु रक्त मिल सकता है, जो मिट्टी में मिलाने पर काफी चिपचिपा हो जाता है।

मंगल और चंद्रमा की सतह की परिस्थितियों को पैदा करने के लिए लेपेक ने कृत्रिम रूप से मंगल ग्रह या चंद्रमा की सतह पर पाई जाने वाली चट्टान जैसी मिट्टी तैयार कर उसमें प्रोटीन मिश्रित की।

मंगल ग्रह पर चूंकि पृथ्वी की अपेक्षा गुरुत्व बल बेहद कम है, जो सीमेंट मिश्रण के लिए अच्छी नहीं मानी जाती है, इसलिए अनुसंधानकर्ताओं ने निर्वात में यह मिश्रण तैयार किया।

शोधकर्ताओं ने इस विधि से पहली बार जो कंक्रीट तैयार किया, वह पगडंडी पर बिछाई जाने वाली कंक्रीट जितनी मजबूत रही। यह कंक्रीट उल्कापिंडों की बमबारी झेलने में भी सक्षम पाई गई।

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