रिपोर्ट में खुलासा: मोदी राज में बढ़ रहा आत्महत्या करने वाले किसानों का आंकड़ा

किसानों की मौतनई दिल्ली। देश में मोदी सरकार के कार्यकाल में किसानों की मौत के आंकड़ें में लगातार वृद्धि हुई है। 30 दिसंबर को जारी की गई एक्सिडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2015 में साल 2014 के मुकाबले किसानों और कृषि मजदूरों की कुल आत्महत्या में दो प्रतिशत की वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों बताते हैं कि साल 2015 में कर्ज और सूखे से परेशान कुल 12602 किसानों और कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की थी।  साल 2014 में यह आंकड़ा 12360 का था।

किसानों की मौत

2014 और 2015 दोनों साल में देश का बड़ा हिस्सा सूखे से प्रभावित रहा था। इन मौतों में करीब 87.5 प्रतिशत केवल देश के सात राज्यों में हुई हैं। आत्महत्या के मामले में सबसे ज्यादा खराब स्थिति महाराष्ट्र की रही थी। साल 2015 में 4291 किसानों ने राज्य में आत्महत्या की थी। महाराष्ट्र के बाद किसानों की आत्महत्या के सबसे अधिक मामले कर्नाटक (1569), तेलंगाना (1400), मध्य प्रदेश (1290), छत्तीसगढ़ (954), आंध्र प्रदेश (916) और तमिलनाडु (606) में सामने आए।

साल 2015 में कृषि क्षेत्र से जुड़ी 12602 आत्महत्याओं में 8007 किसान थे वहीं 4595 कृषि मजदूर शामिल थे और साल 2014 में इन मौतों का आंकड़ा 5650 और 6710 था। इनके अनुसार किसानों की आत्महत्या के मामले में एक साल में 42 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वहीं कृषि मजदूरों की आत्महत्या की दर में 31.5 प्रतिशत का ह्रास हुआ है।

रिपोर्ट में उनको किसान माना गया है जिनके पास अपना खेत हो या वे लीज पर खेत लेकर खेती करते हों। वहीं कृषि मजदूर उनको माना गया है जिनकी जीविका का आधार दूसरे खेतों पर मजदूर के रूप में काम करना है। इसमें कृषि मजदूरों और किसानों की आत्महत्या के पीछे कारणों का विश्लेषण भी किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक किसानों और कृषि मजदूरों की आत्महत्या का मुख्य कारण कंगाली, कर्ज और खेती से जुड़ी दिक्कतें थीं। इन्ही कारणों से करीब 38.7 फीसदी किसानों ने आत्महत्या की थी

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