काशी के वह मंदिर जहां होती है हर भक्तों की मनोकामना पूरी, जानना नहीं चाहेंगे आप?

बनारस, वाराणसी और काशी जैसे नामों से विख्यात मंदिरों और घाटों की यह धरती न सिर्फ भारत की पहचान है बल्कि इसे भगवान शिव की धरती माना जाता है। तुलसीदास जी को काशी से बहुत लगाव था। बताया जाता है कि जिसकी मृत्युत इस धरती पर होती है वह शिवलोक वासी हो जाता है अर्थात उसे स्वतर्ग ही मिलता है। यही नहीं कहा जाता है कि इस धरती पर अपनी मनोकामनाएं लेकर आने वाला कोई भी श्रद्धालु खाली हाथ नहीं लौटता क्योंसकि यहां तो हर देवता निवास करता है। यही वह धरती है जहां महाकवि गोस्वांमी तुलसी दास को ज्ञान प्राप्तु हुआ। यहां भगवान शंकर भी हैं और शंकर सुमन हनुमान भी। जेष्ठद माह के तीसरे मंगलवार पर हम आपको काशी के दो प्रसिद्ध हनुमान मंदिरों के बारे में बता रहे हैं। बताया जाता है कि यहां आते ही भक्त  के सारे कष्टी दूर हो जाते हैं।

तुलसीदास के स्थापित मंदिर

काशी प्रवास के दौरान रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने आराध्य हनुमान जी के कई मंदिरों की स्थापना की। उनके द्वारा स्थापित हनुमान मंदिरों में से एक है बनकटी हनुमान जी का मन्दिर। यह मंदिर दुर्गाकुण्ड में B 27/58 में स्थित है। काफी पहले इस स्थान पर घना वन था जिसमें चारों तरफ बड़े-बड़े वृक्ष थे मान्यता के अनुसार जंगल के बीच से ही हनुमान जी की मूर्ति मिली थी। इसलिए इस मूर्ति को बनकटी हनुमान जी कहा जाता है। धीरे-धीरे लोग बनकटी हनुमान जी की पूजा-अर्चना करने लगे। काशी प्रवास के दौरान रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी नियमित बनकटी हनुमान जी के दर्शन-पूजन करने मंदिर आते थे। तुलसीदास जी की बनकटी हनुमान जी में बड़ी आस्था थी। कहा जाता है कि एक बार बनकटी हनुमान जी कोढ़ी के रूप में तुलसीदास जी से मिले थे और अपना दर्शन दिया था। बनकटी हनुमान जी के बारे में कहा जाता है कि लगातार 41 दिनों तक इनका दर्शन करने से सारी मनोकामनाएँ पूरी हो जाती है।

मंदिर के प्रधान पुजारी पंडित गया प्रसाद मिश्र के अनुसार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के दौरान पंडित मदन मोहन मालवीय ने लगातार 41 दिनों तक बनकटी हनुमान जी का दर्शन किया था। बनकटी हनुमान जी के दर्शन से सभी प्रकार के दुःख दूर हो जाते हैं। इस प्राचीन बनकटी जी के हनुमान मंदिर का जीर्णोद्धार 1972 में कराया गया था। वही वर्ष 2008-09 में भी मंदिर के कुछ हिस्से का निर्माण हुआ है। मंदिर में हनुमान जी की उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मूर्ति स्थापित है। हनुमान जी की मूर्ति के ठीक सामने राम-जानकी का छोटा सा मंदिर मुख्य मंदिर परिसर में ही स्थित है। साथ ही मंदिर परिसर में विशाल पीपल का वृक्ष है। जिसके चारो ओर बने चबूतरे पर लोग दीये जलाते हैं। मंदिर में बड़ा कार्यक्रम नवम्बर महीने में आयोजित होता है। इस दौरान रामचरित मानस का नवाह पाठ होता है वहीं सायंकाल व्यास सम्मेलन का आयोजन होता है। इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए काफी संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं।

मंदिर में दूसरा बड़ा कार्यक्रम दीपावली वाले दिन होता है। इस दिन को हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर बनकटी हनुमान जी का भव्य श्रृंगार किया जाता है। साथ ही महाआरती होती है। मंदिर में नियमित रूप से देशी घी, तिल तेल, सरसो तेल और चमेली के तेल के दीप श्रद्धालु अपनी मनोकमना पूरी होने के लिए जलाते हैं। मंगलवार एवं शनिवार को मंदिर में दर्शनार्थियों की संख्या काफी अधिक होती है। मंदिर सुबह 4 से दोपहर 12 बजे तक खुला रहता है। वहीं शाम को साढ़े 3 बजे से रात 10 बजे तक मंदिर खुला रहता है। बनकटी हनुमान जी की आरती सुबह साढ़े 4 बजे एवं 6 महीना शाम 7 बजे एवं 6 महीना शाम-साढ़े सात बजे होती है। दूसरा मंदिर महावीर मंदिर है। दोनों मंदिर श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमान जी के हैं। वाराणसी में वरूणा पार अर्दली बाजार टकटकपुर में स्थित महावीर मंदिर भी स्थानीय लोगों के साथ दूर-दूर के भक्तों के आस्था का केन्द्र है।

इस मंदिर में नियमित आस-पास के अलावा काफी दूर से भक्त मत्था टेकने आते हैं। मान्यता के अनुसार महावीर स्वामी के दर्शन से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं और भक्त का स्वास्थ्य बेहतर एवं धन सम्पदा से परिपूर्ण रहता है। महावीर स्वामी का यह मंदिर काफी बड़े परिसर में स्थित है। मंदिर परिसर के मध्य में महावीर स्वामी की प्रतिमा स्थापित है। कहा जाता है कि यह प्रतिमा काफी प्राचीन है। जिसे राजा अर्जुन ने यह मंदिर बनवा कर स्थापित किया था। इस मंदिर परिसर में ही राम-जानकी, लक्ष्मी नारायण, शीतला माता सहित शंकर जी की प्रतिमा है। परिसर में एक विशाल पीपल का वृक्ष पूरे मंदिर को आच्छादित किये हुए है।

अक्सर लोग किसी मनौती के पूरा होने पर महावीर स्वामी को प्रसाद चढ़ाते हैं। इस मंदिर में बड़ा कार्यक्रम हनुमान जयंती के अवसर पर होता है। जयंती पर हनुमान जी की प्रतिमा का भव्य श्रृंगार किया जाता है। सिन्दूर और तिल के तेल को मिलाकर उनकी प्रतिमा पर लगाया जाता है। साथ ही सुगन्धित फूलों से पूरे मंदिर को सजाया जाता है। मंदिर में रामचरित मानस का संगीतमय पाठ भी आयोजित होता है। साथ ही भण्डारे का आयोजन भी होता है। वहीं, नवरात्र में भी मंदिर में उत्सवपूर्ण माहौल हो जाता है। इस पर्व पर मंदिर को बेहतरीन ढंग से सजाया जाता है। पूरे नवरात्र में दर्शनार्थियों का मंदिर में तांता लगा रहता है।

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