सुप्रीम कोर्ट की भी नहीं सुनी, सिर्फ एक नदी के लिए दो राज्य आ गए आमने-सामने

कावेरी जल विवादनई दिल्ली| कावेरी जल विवाद पर उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद  कर्नाटक में जबरदस्त आंदोलन हो रहा है| इसके चलते किसानों और कन्नड समर्थक संगठनों ने आज बेंगलूरू-मैसूरू राजमार्ग को बंद कर दिया| प्रदर्शनकारी कावेरी नदी से तमिलनाडु को पानी नहीं देने की मांग कर रहे थे|

आलम ये रहा कि कोर्ट के फैसले पर बातचीत के लिए कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को सर्वदलीय बैठक तक बुलानी पड़ी है|

कावेरी जल विवाद

कर्नाटक के मांड्या जिले में प्रदर्शनकारियों ने सड़कें जाम करके धरने दिए| हालात यहाँ तक आ पहुंचे हैं कि कानून-व्यवस्था दुरुस्त रखने के लिए कावेरी क्षेत्र में केन्द्रीय बल सहित सैकड़ों सुरक्षाकर्मियों को तैनात करना पड़ा है|

पुलिस की मानें तो प्रदर्शनकारियों ने कई सरकारी दफ्तरों में तोड़फोड़ की और उन्हें जबरन बंद कराया, जिसके चलते लोकल मार्केट बंद रहे| स्कूलों और कालेजों में छुट्टी घोषित करनी पड़ी| जिले में कई सरकारी और निजी बसें सड़कों से गायब हैं|

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार को निर्देश दिया था कि तमिलनाडु के किसानों की दिक्कतें दूर करने के लिए वह अगले 10 दिन तमिलनाडु को 15000 क्यूसेक पानी छोड़े|

इस निर्देश के बाद कावेरी जल विवाद गरमा गया| इसके चलते नौ सितंबर तक कृष्णराजसागर बांध के आस-पास निषेधाग्या किसी के भी आने-जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया|

ये है ताजा विवाद

कावेरी, कर्नाटक तथा उत्तरी तमिलनाडु की प्रमुख नदी है| इसका उद्गम स्थल पश्चिमी घाट का ब्रह्मगिरी पर्वत है| इसके पानी को लेकर दोनो राज्यों में विवाद है| इस विवाद को लोग कावेरी जल विवाद कहते हैं|

तमिलनाडु ने हाल ही में सुप्रीमकोर्ट में याचिका दायर कर कर्नाटक को 50.52 टीएमसी फुट कावेरी जल छोड़ने का निर्देश देने की मांग की थी| तमिलनाडु सरकार ने  यह मांग अपनी 40,000 एकड़ में फैली सांबा की फसल को बचाने के मद्देनज़र की थी|

इसका जवाब देते हुए कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने था कि हम तमिलनाडु को पानी की एक भी बूंद नहीं दे पाएंगे क्योंकि हमारे पास इतना पानी ही नहीं है| कर्नाटक के जलाशयों में भी करीब 80 टीएमसी फुट पानी की कमी है|

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने दो सितंबर को कर्नाटक से ‘जीयो और जीने दो’ के रास्ते पर चलते हुए पानी देने की भावनात्मक अपील की थी| इस मसले पर अगली सुनवाई 16 सितंबर को होगी|

बहुत पुराना है विवाद

  1. 1924 में अंग्रेजों के समय में कावेरी जल विवाद की नींव पड़ी थी| तब इन दोनों राज्यों के बीच समझौता हुआ था| लेकिन बाद में केरल और पांडिचेरी के इसमें शामिल हो जाने से यह विवाद मुश्किल हो गया|
  2. 1972 में बनी एक कमेटी के तर्कों के आधार पर 1976 में कावेरी जल विवाद के सभी चार दावेदारों के बीच एक समझौता हुआ लेकिन विवाद जारी रहा|
  3. 1986 में तमिलनाडु ने अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम (1956) के तहत केंद्र सरकार से एक ट्रिब्यूनल बनाने की मांग की| 1990 में इसका भी गठन हो गया| फैसला हुआ कि कर्नाटक कावेरी जल का तय हिस्सा तमिलनाडु को देगा लेकिन विवाद अब भी ख़त्म नहीं हुआ|
  4. कर्नाटक ब्रिटिश शासन के दौरान 1924 में हुआ समझौता न्यायसंगत नहीं मानता| कर्नाटक का कहना है कि वह नदी के बहाव के रास्ते में पहले है, इसलिए उसका नदी पर पूर्ण अधिकार है| जबकि तमिलनाडु पुराने समझौतों को तर्कसंगत बताता है|
  5. तमाम असफल प्रयासों की बाद भी अब तक इस विवाद को सुलझाने की कोशिश ही चल रही है|
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