कही बागी न बिगाड़ दे ‘बहनजी’ का खेल! , 2022 में परेशानी का सबब होगी यह बगावत

बसपा में बगावत या टूट कोई नई बात नहीं है। पार्टी के गठन से लेकर अब तक कई बार टूट हो चुकी है। बसपा में एक बार फिर मिशन-2022 से पहले टूट जारी है। यह टूट परेशानी का सबब न बन जाए इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है। इसका कारण है कि बसपा से कई नेता एक-एक करके अलग हो रहे हैं। यह चिंता की बात है।

आपको बता दें कि वर्ष 2017 के चुनाव में बसपा 19 सीटें जीती थी। इसमें में 18 विधायकों में 5 विधायक असलम अली, मुख्तार अंसारी, मो. मुजतबा सिद्दीकी, मो. असीम रायनी और शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली अल्पसंख्यक थे। अगले चुनाव से पहले इन विधायकों को अपने पाले में लाने के लिए सपा की होड़ लाजमी है। दरअसल लोकसभा चुनाव 2019 में गठबंधन के बाद सवाल उठा था कि मुस्लिम मतदाता किसके साथ गया? इसके बाद एक साथ बसपा के तीन विधायकों असलम राइनी, असलम अली व मुजतबा सिद्दीकी का सपा खेमे की ओर जाना कई और सवाल खड़े करता है।

कई बड़े नाम होते गए अलग

बात बीते दिनों की हो तो एक समय ऐसा भी था जब बसपा में हर जाति के बड़े चेहरे थे। सोनेलाल पटेल, आरके चौधरी, इंद्रजीत सरोज, आरके चौधरी, स्वामी प्रसाद, मौर्य, बाबू सिंह कुशवाहा, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, धर्मसिंह सैनी। यह सभी वह नाम हैं जिन्हें बसपा के नाम से पहचाना जाता था। समय बदला, परिस्थितियां बदली, कोई इधर गया तो कोई उधर गया। बड़े कुर्मी नेता लालजी वर्मा और राजभरों के बड़े नेता रामअचल राजभर भी आजकल बसपा से निष्कासित चल रहे हैं।

LIVE TV