ऐसा सर्वे जो बता रहा कितने लोग हुए नोटबंदी के बाद बेरोजगार! क्या सही है ये आंकड़ा ?

बेरोजगारी पर एक और रिपोर्ट सामने आई है. वैसे तो इसे जारी करने वाली एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी है, लेकिन सिर्फ प्राइवेट यूनिवर्सिटी की होने की वजह से रिपोर्ट की अहमियत कम नहीं हो जाती. इस रिपोर्ट को 16 अप्रैल के दिन बेंगलुरू की अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी ने जारी किया है.

इसके मुताबिक बीते दो साल के दौरान करीब 50 लाख लोगों ने अपनी नौकरियां गंवा दी हैं. ये दावा द स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया यानी SWI-2019 नाम की इस रिपोर्ट में किया गया है.

 

और क्या कहा गया है रिपोर्ट में?

 

रिपोर्ट की अहम बातें जान लीजिए-

1-साल 2016 से 2018 के बीच करीब 50 लाख लोग बेरोजगार हुए.

2-बेरोजगारी बढ़ने की शुरुआत नवंबर 2016 में नोटबंदी के साथ हुई.

3-नोटबंदी और नौकरी कम होने के बीच कोई सीधा संबंध स्थापित नहीं हो पाया.

4-बेरोजगारी के शिकार ज्याद पढ़े और कम पढ़े-लिखे लोग दोनों हैं.

5-ये सर्वे सेंटर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकॉनमी यानी CMIE-CPDX ने कराया है.

इस रिपोर्ट पर राजनीति भी शुरू हो गई है. आल इंडिया महिला कांग्रेस नाम के एक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया-

नोटबंदी के बाद से 50 लाख लोग बेरोजगार हुए हैं. पिछले दशक से देश में बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है. साल 2016 से तो ये और भी बुरी हालत में पहुंच गई है.

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कंज्यूमर पिरामिड क्या होता है, जिसे सर्वे का आधार बनाया गया?

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकॉनमी यानी CMIE हर 4 महीने में एक सर्वे कराता है. इसमें CMIE मुंबई की एक बिजनेस इन्फॉर्मेशन कंपनी और स्वतंत्र थिंक टैंक है. ये कंपनी ऐसा सर्वे हर 4 महीने में कराती है. इसमें 1.6 लाख परिवारों और 5.22 लाख लोगों को शामिल किया जाता है. साल 2015-16 में 1,58,624 घरों में सर्वे किया गया था. इसके बाद से इसे बढ़ाया गया है. सर्वे में घरों में पानी, बिजली, खर्च, आमदनी, संपत्ति और कर्ज आदि का ब्योरा जुटाया जाता है. साथ ही बेरोजगारी, उपभोक्ता की दिलचस्पी वगैरह का पता लगाया जाता है.

इसी सर्वे के आधार पर अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी ने ये रिपोर्ट तैयार की है. अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सहायक प्रोफेसर अमित भोसले के मुताबिक- ‘हमारे पास पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे के आधिकारिक आंकड़े नहीं थे, इसलिए ऐसा करना पड़ा.’

 

क्या कहता है सर्वे?

सर्वे के आधार पर जारी की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि बेरोजगारी 2011 के बाद से ही तेजी से बढ़ रही है. साल 2016 के बाद से ऊंची शिक्षा पा चुके लोगों के साथ-साथ कम पढ़े-लिखे लोगों की नौकरियां भी जाने लगीं. उनके लिए काम के मौके कम हो गए. शहरी महिलाओं में भी बेरोजगारी बढ़ी है.

ग्रेजुएट महिलाओं में से 10 फीसदी ही काम कर रही हैं. और करीब 34 फीसदी बेरोजगार हैं. रिपोर्ट के मुताबिक 20 से 24 साल के शहरी युवाओं में बेरोजगारी ज्यादा है. अभी ऐसे करीब 60 फीसदी युवा बेरोजगार हैं. 2018 में कुल बेरोजगारी दर करीब 6 फीसदी रही. ये साल 2000 से  2011  के दशक से दोगुनी है. सितंबर-दिसंबर 2016 में शुरू हुआ गिरावट का दौर अब तक ठीक नहीं हुआ है.

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