इस रहस्मयी नदी में हाथ डालते ही निकलता है सोना, लेकिन आदिवासियों ने…

नई दिल्ली। रांची से लगभग 15 किमी की दूरी पर स्थित आदिवासी इलाके में ‘रत्नगर्भा’ नदी बहती है। इसे ‘स्वर्णरेखा’ नदी के नाम से भी जाना जाता है। ये नदी सोना उगलती है। जी हां, ये बात आपको हैरान कर सकती है।

लेकिन सच तो यही है इस नदी में सोने के कण पाए जाते हैं।

‘स्वर्णरेखा’ के साथ मिलने वाली सहायक नदी ‘करकरी’ के बालू में भी सोने के कण की काफी मात्रा पाई जाती है। यही नदी जब स्वर्ण रेखा नदी से जाकर मिलती है तो ‘करकरी’ नदी के कण ‘स्वर्णरेखा’ नदी में जाकर बह जाते हैं। ‘करकरी’ नदी की लंबाई केवल 37 किमी है। जिसका रहस्य आज तक सुलझ नहीं पाया कि इन दोनों नदियों में सोने के कण आखिर आते कहां से हैं।

भूवैज्ञानिकों के द्वारा किये शोधों से पता चला है कि यह नदी कई बड़ी चट्टानों से होकर गुजरती है। इसी दौरान होने वाले घर्षण की वजह से सोने के कण इसमें घुल जाते हैं। इस शोधो के बावजूद इस नदी में सोने का कितना भंडार है, इसका बिल्कुल सटीक अंदाजा आज तक कोई नहीं लगा सका है। यह नदी कई परिवार का भरण-पोषण कर आगे बढ़ती है।

झारखंड में रहने वाले स्थानीय आदिवासी इस नदी के पानी में बहने वाले बालू को छानकर सोने के छोटे छोटे कणों को एकत्रित करने का काम करते हैं। इस काम को करने के लिये कई सालों से इनके परिवारों की पीढ़ियां लगी हुई हैं।

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नदियों से निकाली जाने वाली बालू को लकड़ी के बर्तन में रखकर धोया जाता है, जिससे बालू पानी से छन कर बह जाती है और उसके अंदर के बारीक कण उसमें बचे रह जाते हैं। इन कणों को इकट्ठा करने के बाद उसे पिघलाया जाता है। कण को अच्छी तरह से पिघला कर इसे सोने का रूप दिया जाता है। जिसे क्वारी सोना के नाम से जाना जाता है, जो काफी शुद्ध होता है।

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