
रिपोर्ट- कपिल सिंह
बुलन्दशहर: आज मोहर्रम की 10 तारीख है, और मोहर्रम की 10 तारीख को मुस्लिम शिया और सुन्नी दोनों ही जुलूस निकालकर मोहर्रम मानते हैं। बुलन्दशहर में शिया समुदाय के लोग मोहर्रम की 6 तारीख से ही जुलूस निकालकार मातम मनाते हैं।

आज मोहर्रम की 10 तारीख है, आपको बता दें मोहर्रम की 1 तारीख़ से ही शिया समुदाय के परिवारों में गमगीन माहौल बन जाता है, और शिया समुदाय के लोग मातम, मजलिस कर हजरत हुसैन और उनके 71 साथियों की शहादत को याद करते हैं।
आज यनि मोहर्रम की 10 तारीख को जनाब-ए-हुर्र की शहादत की याद मातमी जुलूस निकालते हैं जिनका मातमी जुलूस पूरे नगर के मुख्यरास्तों से गुजरता है।
ये तस्वीरें बुलन्दशहर के अलग-अलग शहरों की हैं। तस्वीरों में देखा जा सकता है कि सड़कों पर जुलूस निकाल कर मातम मनाया जा रहा है।
मातम करते लोग मुस्लिम शिया समुदाय के लोग हैं, ये लोग रसूल-ए-खुदा के नवासे इमाम हुसैन और उनके 71 साथियों की शहादत की याद में मातमी जुलूस शहरभर से मातम करते हुए निकलते हैं, जबकि ईमाम हुसैन का जुल्जना बरामद कर के ईमाम हुसैन व उनके पुरे परिवार को याद किया जाता है आपको बता दें बुलन्दशहर में ये जुलूस करीब सैकड़ों साल से निकाला जाता है।
इस जुलूस में, शिया समुदाय के अलावा सुन्नी जमात और हिन्दू धर्म के भी लाखो लोग शामिल होते है, आपको बता दें ये जुलूस जिले का इतिहासिक जुलूस है इस जुलूस में मातम कर हजरत हुसैन और उनके 71 साथियों की कर्बला की उस हक़ की जंग को याद किया जाता है, तमाम साथियों ने अपने बच्चों सहित तीन दिन भूखा प्यासा रहकर लड़ा था।
शिया समुदाय के लोग मानते हैं, कि ईमाम हुसैन सहित उनके 71 साथियों को तत्कालीन ज़ालिम बादशाह यजीद की फौज ने धोखे से बुलाकर शहीद कर दिया था।
ईमाम हुसैन ने इतनी बड़ी कुर्बानी इस्लाम की साख को बचाए रखने के लिए दी थी, जबकि इस्लाम अगर आज दुनिया में ज़िन्दा है तो इसमें भी कहीं ना कहीं इमाम हुसैन की बड़ी भूमिका है।
इसलिए शिया समुदाय के लोग हर साल 1 से दस तारीख तक मातम, कर इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं, गौरतलब है कि शिया समुदाय के लोग आज देशभर में अलग- अलग शहरों में मातम कर इस कुर्बानी को ऐसे ही याद कर रहे हैं।





