आपका हर बिगड़ा काम बना सकता है ये 355 साल का शहंशाह

कानपुर। अक्सर लोग घरों में सबकी खुशहाली के लिए मछली व कछुआ पालते है क्योंकि ऐसा मानना है कि सुबह-सुबह इनको देखने पर पूरा दिन शुभ रहता है। लेकिन शहर के 364 साल पुराने तालाब में 355 साल के शहंशाह कछुआ को इसलिए देखने के लिए बेताब रहते है कि बिगड़ा हुआ काम कम बन जाता है। हालांकि यह कछुआ बड़ी मिन्नत के बाद ही दिखाई देता है।

शहर के पनकी में श्री एवं कछुआ तालाब है। जिस पर 355 साल से लेकर 100 साल तक के कछुओं का आशियाना है।
कछुआ तालाब को 364 साल पहले ब्रितानी हुकूमत के दौरान देवी दयाल पाठक के पूवँजों ने बनवाया था। तालाब की लंबाई और चौड़ाई करीब 70 फुट है और वह पूरा कच्चा है। इसी तालाब में 355 साल पुराना कछुआ रहता है। जिसे शहंशाह का नाम दिया गया है। इस शहंशाह के दर्शन में भी लोगों को जल्दी नहीं मिलते। लेकिन काफी बुलाने या भूख लगने पर ही यह ऊपरी सतह पर नजर आता है। अपनी उम्र के चलते यह अब लोगों की आस्था से जुड़ चुका है। इसीलिए इसे देखने के लिए लोग घंटों इन्तजार भी करते हैं।

शहंशाह को शहर के अलावा आस-पास जनपद के लोग भी अपनी मुराद पूरी होने के लिए देखने आते है और इन कछुओं को खाना खिलाते हैं। मन्दिर के पुजारी देवी दयाल ने बताया कि आसपास के जिलों के लोग भी कछुओं को आओ-आओ….. की आवाज लगाते हैं तो कछुए पानी के बाहर सीढि़यों में आ जाते हैं। बताते हैं कि दो-तीन बार कुछ लोगों ने तालाब से कछुओं को पकड़ने की कोशिश की थी, लेकिन मोहल्ले वालों ने उन्हें पकड़ कर पीट दिया।

सिंध से आए व्यक्ति ने बनवाया था तालाब

मौजूदा दौर में जब तालाब और पानी में रहने वाले जीव समाप्त होते जा रहे हैं, शहर में एक घनी आबादी के बीच कछुए जैसे दुर्लभ प्राणी फल फूल रहें हैं, वह भी बिना किसी सरकारी मदद के। नागेश्वर मंदिर के पुजारी का कहना है कि इस तालाब और मंदिर की स्थापना उनके पूर्वजों ने की थी, हालांकि ये कब बना इसके बारे में ठीक-ठीक जानकारी नहीं है।

बताते है कि ये तालाब 364 साल से अधिक पुराना है। देवी दयाल पाठक ने बताया कि उनके पूर्वज पाकिस्तान के सिंध से आकर कानपुर में बस गए थे। देवी दयाल कहते हैं कि तालाब में सैकड़ों की तादात में कछुए हैं और उनमें से कुछ की उम्र 355 साल से अधिक हो चुकी है। हलांकि अब बहुत से कछुए विलुप्त हो चुके हैं।

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