हो गई विश्व के आठवें अजूबे की खोज, वैज्ञानिकों ने किया नाम और लोकेशन का खुलासा

आठवां महाद्वीपनई दिल्ली। धरती पर जल्द ही आठवां महाद्वीप अस्तित्व में आ सकता है। भूवैज्ञानिकों की राय अगर मानी गई तो जीलैंडिया नया महाद्वीप होगा। उन्होने इसकी शिनाख्त आस्ट्रेलिया के पूर्व में दक्षिण पश्चिम प्रशांत महासागर के 40.9 लाख वर्ग किलोमीटर लंबे पानी में डूबे हुए क्षेत्र के रूप में की है। उसके तटीय क्षेत्रों में अरबों-खरबों डॉलर के जीवाश्म ईंधन मिलने की संभावना जताई गई है। इसे भारतीय उपमहाद्वीप के बराबर बताया जा रहा है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, भारत के गोंडवाना क्षेत्र का पांच फीसद हिस्सा भी कभी इस संभावित महाद्वीप का हिस्सा रह चुका है। अगर इसे मान्यता मिलती है तो यह एशिया, यूरोप, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, आस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका के बाद आठवां महाद्वीप होगा। 94 प्रतिशत समुद्र में डूबे जीलैंडिया में न्यूजीलैंड और फ्रांस नियंत्रित क्षेत्र न्यू कैलेडोनिया को भी शामिल बताया जा रहा है।

दैनिक जागरण की खबर के मुताबिक न्यूजीलैंड की विक्टोरिया यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के शोधकर्ताओं सहित 11 भूवैज्ञनिकों ने ‘जीलैंडिया : अर्थ हिडेन कॉन्टीनेंट’ शीर्षक से जारी अपने शोधपत्र में उपरोक्त दावा किया है। उनका कहना है कि जीलैंडिया में महाद्वीप होने की सभी चार महत्वपूर्ण खूबियां मौजूद हैं। महाद्वीपीय परत से बना यह क्षेत्र समीपवर्ती महासागरीय पटल से अपेक्षाकृत ऊंचा है। साथ ही इसमें ज्वालामुखी, रूपांतरित और तलछटी सभी तरह की चट्टानें हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार, यह कोई अचानक की गई खोज नहीं है बल्कि लगातार चिंतन का नतीजा है। जीलैंडिया महाद्वीप बनने के निर्धारित मानदंडों पर करा उतरता है। जीलैंडिया नाम सबसे पहले भूभौतिकी वैज्ञानिक ब्रूस ल्यूनेडाइक ने 1995 में इस्तेमाल किया था।

जीलैंडिया को एकीकृत क्षेत्र साबित करने के लिए हाल में उपग्रह तकनीक और समुद्र तल के ग्रेविटी मैप का इस्तेमाल किया गया था। इसमें इस बात की पुष्टि हो गई कि यह एकीकृत क्षेत्र है। इसी आधार पर वैज्ञानिकों ने इसे महाद्वीप घोषित करने की मांग उठाई है।

अध्यन में कहा गया है कि जीलैंडिया का 94 फीसदी हिस्सा जो पानी में डूबा हुआ है, दरअसल लाकों वर्ष पूर्व वह आस्ट्रेलिया से ही टूटकर समुद्र में समाहित हो गया था। जीएसए टुडे में प्रकाशित रिपोर्ट में शोधकर्ताओं का कहना है कि जीलैंडिया की पहचान बहुत हद तक एक भूवैज्ञानिक महाद्वीप के रूप में की जानी चाहिए। इससे महाद्वीपीय दरार, उसके पतलापन और विघटन की प्रक्रिया को समझने में आसानी होगी।

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