आज बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती को करें प्रसन्न, जानें पूजा की विधि, मुहुर्त, महत्व और कथा

हिन्दु धर्म में माघ मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि बसंत पंचमी के रूप में मनाई जाती है। हिन्दू मान्यता के आधार पर मां सरस्वती की आराधना से बुद्धि की निर्मलता एवं विद्या की प्राप्ति होती है। ज्योतिष शास्त्र में मां सरस्वती के पूजन अर्चन का यह पर्व अबूझ मुहूर्त के नाम से भी जाना जाता है।

शुभ मुहूर्त 
शुभ मुहुर्त प्रायः उत्तरा भाद्र पद सूर्य नक्षत्र और रेवती बुध नक्षत्र में हर वर्ष बसंत पंचमी या सरस्वती जयंती आती है। श्री काशीस्थ गणेश आपा पंचांग के अनुसार 16 फरवरी को प्रातः 04:44 बजे पंचमी तिथि लगेगी तथा अगले दिन 17 फरवरी को दिनभर रहेगी। इस प्रकार पंचमी तिथि 16 फरवरी को पूरे दिन रहेगी। प्रातः 10:54 बजे से 12:21 बजे एवं 12:21 बजे से 13:47 बजे मध्यान्ह में मां सरस्वती की आराधना उपासकों को एवं विद्या अर्जन कर रहे बालकों हेतु पूर्ण फलदायी होगी।

पूजन मंत्र
सर्वप्रथम सफेद पुष्प हाथ में लेकर निम्नलिखित मंत्र से भगवती सरस्वती का ध्यान करें- 
या कुन्देन्दु-तुषार-हार-धवला या शुभ्र-वस्त्रावृता।
या वीणा-वर-दण्ड-मण्डित-करा या श्वेत पद्मासना।।
या ब्राह्माच्युत-शंकर-प्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता,
स मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहाः।। 
इसके बाद हाथ में लिया हुआ श्वेत पुष्प मां सरस्वती की चौकी पर इस मंत्र का जप करते हुए अर्पित कर दें .

‘ऐं सरस्वत्यै नमः’, आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामी। 

पूजन विधि
चौकी में रखी हुई मां सरस्वती की प्रतिमा में पीले रंग का वस्त्र अर्पित करें
मां शारदा को सफेद रंग के पुष्प, पीली मिठाई और अक्षत, रोली चंदन हल्दी तथा केसर आदि की तिलक अर्पित करें। 
संगीत आदि वाद्य यंत्र एवं किताबों पर पुष्पादि अर्पित करें।
मां शारदा की वन्दना/प्रार्थना करें। 
या देवी सर्वभूतेषु विद्या रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।

बसंत पंचमी का महत्व
बसंत पंचमी के सन्दर्भ में निर्णय सिन्धु ग्रन्थ के पृष्ठ संख्या 445 पर इस पर्व को श्रीपंचमी नाम से भी जाना जाता है। कामदेव के जन्म से इस तिथि का जुड़ाव जहां प्रकृति में श्री वृद्धि को करता है वहीं हमारे जीवन को बसंत के वैभव से परिपूर्ण करता है। बसंत जीवन में उमंग लाता है.

पौराणिक कथा
मां सरस्वती को विद्या की अधिष्ठात्री देवी के रूप में जाना जाता है, वे ब्रह्म देव की पुत्री हैं। इस जगत में विद्या विहीनता की स्थिति को देख ब्रह्म देव ने अपने कमण्डल से जल निकालकर जब प्रोक्षण किया तो सुन्दर कन्या के रूप में एक देवी उत्पन्न हुईं। जिनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में पुस्तक थी तीसरे हाथ में स्फटिक माला एवं चौथे हाथ में वर (अभय) मुद्रा सुशोभित हो रही थी। मां सरस्वती के वीणा वादन से संसार में आनन्द रस उत्पन्न हुआ। इस सुअवसर के समय बसंत पंचमी का पर्व ही था। तभी से देवलोक से मृत्यु लोक पर्यन्त मां सरस्वती की उपासना होने लगी। ज्ञान के आराधना का जीवन में आनन्द की प्राप्ति का वैभवपूर्ण पर्व है बसंत उत्सव। अतः ठीक ही कहा गया है- मीन मेषे बसन्तम्।

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