आज बाल दिवस के मौके पर कुछ तस्वीरें जो आपको हैरान कर देंगी, क्या है पूरा सच…

Report – Ravi Pandey

सोनभद्र। चाचा नेहरू के जन्म दिवस को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है । बाल दिवस पर सरकार भी कई तरह के आयोजन करती है ।

आज बाल दिवस

सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो जनपद सोनभद्र में बच्चों के लिए कोई पहल नहीं की जाती है,यही कारण है कि बच्चो के हाथों में किताब कापी की जगज भीख मांगने के लिए कटोरा और कूड़ा बीनने के लिए छोला नजर आ रहा है । जनपद के हर कोने में जिंदगी से जूझते बच्चे मिल जाएंगे । बच्चों के अलग-अलग रूप होंगे, कही कूड़े बीनते तो कही होटलों पर जूठा बर्तन धोते नजर आएंगे ।

जी हां हम बात कर रहे है बाल दिवस पर मुफलिस की जिंदगी काट रहे बच्चो की । बाल दिवस के मौके पर एक बार फिर थोथे नारे गूंजे और तसल्ली के सहारे बचपन की छलनी की रस्मअदायगी भरी कोशिशें फिर सामने आ गयी।

दुकान में आग लगने से लाखों का सामान जलकर खाक, कड़ी मशक्कत के बाद आग पर पाया काबू  

पण्डित जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिवस बाल को दिवस के रूप में मनाने वालो की न तो बेबसी और मुफ़लिसी से जूझता बचपन दिखा और न ही कूड़े के बीच से पेट की आग बुझाने का जतन करते मासूम बच्चे।

जबकि यह सच्चाई शहर के गली कूचे में नही, बल्कि मुख्य मार्गो पर भी जहा-तहा रोज दिखाई देती है। गर्दिश हालात वाली बचपन की तस्वीर देश के हुक्मरानों व बच्चों के प्रति हमदर्दी उड़ेलने वालो के प्रति सवालिया निशान है। श्रम विभाग के अहलकार हो या शिक्षा विभाग के जिम्मेदार या समाज सेवा कर ढिंढोरा पिट कर झूठी वाह-वाही से अपनी ही पीठ थपथपाने का जतन करने वाले सब के सब हकीकत की धरातल पर फरेबी नजर आते है।

आज पूरे देश में पंडित जवाहरलाल नेहरू जी की याद में मनाया जा रहा बाल दिवस

बच्चो का दशा और दिशा सुधारने का दावा केंद्र सरकार से लेकर प्रदेश सरकार अक्सर किया करती है। योजनाएं भी लागू की जाती है लेकिन यह योजनाएं वास्तविकता में धरातल पर कितना पहुचती है यह सच्चाई सड़को पर कूड़ा बटोरने वाले बच्चो की हालत स्वतः बया करती है। सर्व शिक्षा अभियान हो या श्रम विभाग की बाल सुधार योजना या फिर समाज कल्याण विभाग की योजनाएं हो सबका दावा बच्चो की दशा सुधारने का ही है, लेकिन सुधार की हकीकत दावो की  ठीक उलट है।

बेबस और मासूम बचपन हालात का शिकार होकर उम्र बढ़ने के साथ मानसिक धरातल क्रूर होता जा रहा है। समय रहते अगर इन बच्चो को सही राह नही मिलती तो इनकी दशा और दिशा विपरीत दिशा में मुड़ जाती है । जिनका उपयोग आगे चलकर घोषित और अघोषित अपराधी कुरियर या कैरियर के रुप मे करते है।

बाल दिवस मनाने की सार्थकता  तब तक नही हो सकती जब तक इस दिवस के उद्देश्य के प्रति लोग समर्पित भाव से अभाव ग्रस्त बच्चो के प्रति अपना नजरिया बदलकर तसल्ली देने के बजाय यथा स्थिति कुछ कर गुजरने के लिए आगे आये।

दुकान में आग लगने से लाखों का सामान जलकर खाक, कड़ी मशक्कत के बाद आग पर पाया काबू  

बहरहाल सरकार चाहे लाख दावे कर ले, सैकडों सुधार की योजनाएं बना ले, हालात तब तक नही सुधरेंगे जब तक बच्चो के लिए कोई महत्वपूर्ण योजन कठोर कानून के साथ न बनाई जाए ।

 

 

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