
नई दिल्ली। इन दिनों जम्मू-कश्मीर में एक मिनी वार छिड़ी हुई है। लगातार सीमापार से गोलीबारी जारी है। आए दिन कभी भारतीय सैनिकों के शहीद होने की तो कभी दुश्मन सैनिकों पर विजय और आतंकियों की मौत की खबर आती रहती है। लेकिन सबसे ज्यादा अहम बात कि आखिर इन सभी कारणों में शामिल एक नाम आईएसआईएस आखिर पैदा कैसे हुआ। क्या है इसका अतीत? दहशत में जी रहे लोगों के जेहन में अक्सर ये ख्याल आता होगा। तो आइए आपको बताते हैं कि इसकी शुरुआत कैसे हुई और किस तरह से इसने एक भयावह रूप ले लिया। असलियत बेहद ही चौंकाने वाली है।
आईएसआईएस कैसे हुआ पैदा
इसकी शुरुआत उस दौर में हुई जब पूरी दुनिया से आतंकियों का नामोनिशान मिटाने की मुहिम जोरों पर थी। 16 अक्टूबर 2016 को इराक के मोसुल में उस जंग की तैयारी शुरू हो गई, जिसका इंतज़ार पूरी दुनिया को था और इस जंग का मकसद भी साफ था, मोसुल को आज़ाद करवाना। 17 अक्टूबर 2016 को सुबह की पहली किरण के साथ इराक फौज का पहला जत्था इराक के दूसरे सबसे बड़े शहर मोसुल को आईएसआईएस के आका अबू-बकर-अल-बगदादी और उसके गुर्गों के चंगुल से आज़ाद करवाने के लिए पहुँच गया।
इराक की सेना ने मोसुल के दक्षिण से और कुर्दों की पेशमर्गा आर्मी ने मोसुल के पूरब से आईएस के आतंकवादियों पर हमला कर दिया है। इस साझा आपरेशन में इराकी फौज के 30,000 सैनिक, कुर्दों की पेशमर्गा सेना के 4000 सैनिक और अमेरिका की अगुवाई में अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन सेना के 7,500 सैनिक शामिल थे।
कल तक दहशत की सारी हदों से आगे निकलकर दुनिया को ललकारने वाले सबसे ख़ौफ़नाक आतंकवादी संगठन आईएसआईएस के लिए अब तस्वीर पूरी तरह से पलट चुकी थी। पहली बार लगने लगा है कि जंग के इस मैदान में अब आतंकवादी डरे और सहमे हुए थे। उनके पास पीछे जाने के सिवाय दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा था। उन्हें लगने लगा था कि अगर वो जगं-ए-मैदान में खड़े रहते हैं तो बेमौत मारे जाएंगे।
इस खतरनाक संगठन की शुरुआत 10 जून 2014 से हुई थी। ये तारीख इराक के इतिहास के पन्नों में एक काला दिन बन गई थी।
दरअसल आज से करीब सवा दो साल पहले मोसुल का मंज़र ऐसा नहीं था। इराक के इसी शहर में सीरिया बॉर्डर पार कर आईएस के आतंकवादी टोयोटा कारों में सवार हो आईएस के काले झंडे लहराते, हाथों में खतरनाक हथियार थामे इस शहर के अंदर घुसे थे। देखते ही देखते कुछ ही वक्त में इस शहर पर इन्होंने अपना क़ब्ज़ा जमा लिया। उस वक्त इराक सेना भी उनका मुकाबला नहीं कर पाई थी।
इसके बाद इराक ने क़त्ल-ए-आम और क़त्ल-ओ-ग़ारत का ऐसा मंजर देखा कि इंसानियत भी रो पड़ी। इब्राहिम अव्वाद इब्राहिम अली बद्री उर्फ़ अबू बकर अल बगदादी उर्फ़ इनविजिबल शेख उर्फ़ डॉ इब्राहिम नाम के इस शख्स और इसके आतंकवादियों ने जो क़त्ल-ओ-गारत मचाई उसके बारे में सुन कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
यही वो शख्स था, जिस पर इराक और सीरिया समेत कई मुल्कों में बरपे मौजूदा कहर के मास्टरमाइंड होने का इल्ज़ाम है।
इस बगदादी का मकसद सिर्फ और सिर्फ इराक और सीरिया को जीतना नहीं था बल्कि वो तो तमाम इस्लामी मुल्कों यानी साइप्रस, इजरायल, जॉर्डन, लेबनान, सीरिया, फिलिस्तीन और टर्की को भी जीतना चाहता था।
बगदादी ने इराक पर कब्जे के लिए अल-कायदा इराक का नाम बदल कर नया नाम रख लिया था। आईएसआई यानी इस्लामिक स्टेट आफ इराक।
साल 2009 में इराक के बाद बगदादी ने सीरिया का रुख करने का फैसला किया। सीरिया तब गृह युद्ध झेल रहा था। इस दौरान उसने एक बार फिर से अपने संगठन का नाम बदल कर अब आईएसआईएस कर दिया था, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया।
जून 2013 के दौरान अमेरिका, इजराइल, जॉर्डन, टर्की, सऊदी अरब और कतर ने फ्री सीरियन आर्मी को हथिय़ार, पैसे, और ट्रेनिंग की मदद देनी शुरू की।
इन देशों ने बाकायदा सारे आधुनिक हथियार, एंटी टैंक मिसाइल, गोला-बारूद सब कुछ सीरिया पहुंचा दिया और बस यहीं से आईएसआईएस के दिन पलट गए।
हकीकतन जो हथियार सीरियन आर्मी के लिए भेजे गए थे उनपर साल भर में आईएसआईएस ने कब्ज़ा कर लिया। अब इनके पास हथियारों का जखीरा जमा हो गया था। इसी के साथ करीब 15 हजार लोग भी इस आतंकी समूह में शामिल हो गए थे।
बस इसी के बाद जून 2014 में अचानक आईएस की ऐसी तस्वीर दुनिया के सामने उभर आई, जिसकी किसी ने कल्पना भी न की थी। अभी तक जो एक गुमनाम संगठन था अब एक खतरनाक कहर बन चुका था।