अयोध्या राम मंदिर फैसला ! सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आगे क्या होगा…

देश का सबसे बड़ा फैसला अयोध्या का राम मंदिर का फैसला बस कुछ ही पालो में सुप्रीम कोर्ट सुनाएगी। वहीं देखा जाए तो भारत सरकार द्वारा सुरक्षा के पुख्ता इंतेजाम कर दिया गए हैं।

 

 

वहीं सुप्रीम कोर्ट अयोध्या विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना रहा है। इस फैसले को देखते हुए उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। अयोध्या शहर को छावनी में तब्दील कर दिया गया है।

मुस्लिम पक्ष जमीन पर दावा साबित करने में नाकाम

 

जहां केंद्र सरकार पहले ही वहां अपनी ओर से सशस्त्र पुलिस बल के चार हजार जवानों समेत अन्य सुरक्षा बलों को भेज चुकी है। इस सबके बीच एक सवाल यह भी है कि क्या सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पूरी तरह से अंतिम है। इसके आगे क्या होगा, किसी पक्षकार के हक में फैसला नहीं आने पर उसके पास क्या विकल्प होंगे।

खबरों की माने तो सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने इस एतिहासिक फैसले से पहले लगातार 40 दिन मामले की सुनवाई की।

पीठ में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के अलावा न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायाधीश अशोक भूषण, न्यायाधीश डीवाय चंद्रचूड़ और न्यायाधीश एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। पीठ ने मामले की सुनवाई 6 अगस्त से शुरू की थी। इसके बाद 16 सितंबर को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सभी पक्षकार पुनर्विचार याचिका (रिव्यू पिटीशन) दाखिल करने का अधिकार रखते हैं। यानि वह फैसले के खिलाफ ऐसी याचिका दे सकेंगे। जिस पर पीठ सुनवाई कर सकती है।

लेकिन कोर्ट अपने अधिकार के तहत याचिका को तुरंत सुनने, बंद कक्ष में सुनने या खुली अदालत में सुनने का फैसला करेगी। पीठ याचिका को खारिज भी कर सकती है। सिर्फ यही नहीं वह याचिका को बड़ी पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए भेज सकती है।

पुनर्विचार याचिका (रिव्यू पिटीशन) वह है जिसमें पक्षकार की ओर से अदालत से उसके दिए फैसले पर दोबारा विचार करने का आग्रह किया जाता है। यदि अदालत इस याचिका पर फैसला दे देती है इसके बाद भी पक्षकारों के पास एक और विकल्प रहता है।

यह विकल्प उपचार याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) दाखिल करने का है। यह पुनर्विचार याचिका से थोड़ी भिन्न है। इसमें फैसले की जगह मामले से जुड़े उन मुद्दों या विषयों को रेखांकित किया जाता है जिन पर ध्यान दिए जाने की जरूरत हो।

दरअसल यह दूसरा और अंतिम विकल्प है। इस पर संबंधित पीठ सुनवाई कर सकती है, याचिका खारिज कर सकती है। यदि याचिका खारिज होती है तो इसका अर्थ है केस खत्म कर दिया गया है और जो निर्णय दिया गया है वह सर्वमान्य होता है।

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