अमेरिका और ईरान के बीच एक बार फिर से बिगड़ रहे हैं संबंध, ईरान की अमेरिका को दो टूक

अमेरिका और ईरान के बीच संबंध एक बार फिर बिगड़ रहे हैं. हालांकि, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ईरान के साथ संबंधों पर बयान दे चुके हैं कि ईरान के साथ अमेरिका युद्ध की दिशा में आगे नहीं बढ़ रहा है. इसी बीच ईरान ने कहा है कि वह आसानी से खाड़ी देशों में अमेरिकी जहाजों को निशाना बना सकता है. हाल के दिनों में वॉशिंगटन और तेहरान के बीच तनाव अपने चरम पर है. ईरान के राजनयिक लगातार कोशिश कर रहे हैं कि किस तरह से अमेरिकी प्रतिबंधों को खारिज किया जाए और न्यूक्लियर डील के मामले में अमेरिका के विरोध को कम कराया जाए.

अमेरिका और ईरान

ईरान और अमेरिका हाल के दिनों में एक दूसरे के विरोध में काफी मुखर हुए हैं. इसी सप्ताह तेल के चार टैंकरों पर हुए हमले के बाद अमेरिका ने बगदाद से अपने कुछ राजनयिकों को वापस बुला लिया था.

पूर्व में बराक ओबामा प्रशासन ने ईरान के साथ न्यूक्लियर डील की थी जिसे ट्रंप प्रशासन ने 2015 में खत्म कर दिया था. ट्रंप के इस कदम के चलते ईरान पर कठोर प्रतिबंध एक बार फिर से लागू हो गए. ईरान की अर्थव्यस्था अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से प्रभावित हो गई है. भारत, चीन और पाकिस्तान जैसे देशों को तेल आयात पर मिलने वाली छूट को भी रोक दिया गया है.

फार्स न्यूज एजेंसी को दिए गए एक बयान में ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) के डिप्टी कमांडर सलेह जोकर ने कहा, ‘हमारी कम दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें भी अमेरिकी युद्धपोतों को खाड़ी के देशों में आसानी से निशाना बना सकती हैं.’ उन्होंने कहा, ‘अमेरिका एक नया युद्ध नहीं झेल सकता. सामाजिक और मानव संसाधनों के लिहाज से अमेरिका की स्थिति बुरी है.

अमेरिका के आर्थिक प्रतिबंधों पर ईरान का मानना है कि वॉशिंगटन केवल आर्थिक प्रतिबंधों को बढ़ा रहा है कि खाड़ी के देशों में अपनी सैन्य हिस्सेदारी को बढ़ा सके. अमेरिका ईरान पर संयुक्त राष्ट्र पर हमले का हवाला देकर वैश्विक दबाव बढ़ाने के प्रयास में है. तेहरान का कहना है कि अमरिका का यह कदम केवल मनोवैज्ञानिक रूप से लाभ लेने और राजनीतिक बयानबाजी के लिए है.

वॉशिंगटन में एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने कहा कि अमेरिका ईरान से बातचीत के लिए तैयार है लेकिन ईरान ट्रंप के साथ सीधी वार्ता के लिए तैयार नहीं है. अधिकारी ने कहा, ‘हमारा मानना है कि दोनों देशों के बीच तनाव कम करने के लिए ईरान को आगे आना चाहिए और बातचीत के लिए तैयार होना चाहिए.’

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राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ईरान के नेताओं से न्यूक्लियर प्रोग्राम पर बातचीत करने के लिए कई बार अपील कर चुके हैं. खाड़ी के देशों में बढ़ते तनाव के मद्देनजर अमेरिका ने एयरक्राफ्टर करियर तैयार किए हैं. इस क्षेत्र के लोगों में आशंका है कि कहीं अमेरिका और ईरान युद्ध के लिए तैयार न हो जाएं.

ईरान के सेना प्रमुख मेजर जनरल अब्दुलरहीम मौसवी ने कहा है, ‘अगर दुश्मन देश हमारी ताकतों के बारे में गलत अंदाजा लगाता है तो यह उसकी रणनीतिक भूल साबित होने वाली है. हम ऐसा जवाब देंगे जिससे उन्हें अफसोस होगा.’ इससे पहले वरिष्ठ सांसद हश्मतुल्लाह ने ट्विटर पर चिंता जाहिर की थी कि ईरान और अमेरिका के बीच रेड डेस्क बनाना चाहिए जिससे संभावित युद्ध को रोका जा सके.

ईरानी संसद के राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के प्रमुख हश्मतुल्लाह ने कहा, ‘अमेरिका और ईरान के उच्च अधिकारियों ने युद्ध की संभावना को खारिज किया है. लेकिन तीसरी ताकतें विश्व के एक बड़े हिस्से को तबाह करने पर तुली हुई हैं. ईराक और कतर के बीच एक रेड डेस्क की स्थापना की जानी जिससे दोनों राष्ट्रों के बीच तनाव का खात्मा हो.’

ईरान के सर्वोच्च नेता यातुल्लाह ख़ुमैनी ने इसी सप्ताह कहा है कि तेहरान किसी भी नए न्यूक्लियर डील पर वार्ता करने के लिए तैयार नहीं है.  2015 में ट्रंप प्रशासन ने डील तोड़ दिया, ईरान के पास न्यूक्लियर बम बाने की पूरी क्षमता है, ईरान पर प्रतिबंध थोपे गए. अब अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से बचने के लिए न्यूक्लियर डील का मुद्दा उठाया जा रहा है.

हालांकि ट्रंप का मानना है कि आर्थिक नीतियों को दबाव के चलते ईरान मजबूरन मिसाइल और अन्य न्यूक्लियर कार्यक्रमों पर रोक लगाएगा, और ईराक, सीरिया और यमन में ईरान अपनी पकड़ ढीली करेगा.

ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जावेद जारिफ ने जापान और चीन के दौरे पर कहा कि सिर्फ समर्थन में बयान देना ही न्यूक्लियर डील को बचाने के लिए काफी नहीं होगा.

ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद जरीफ ने चीन और रूस सहित अपने मित्र देशों से अपील की कि वे 2015 के परमाणु करार से अमेरिका के अलग हो जाने के बाद इस समझौते को बचाने के लिए ठोस कदम उठाएं. ईरान ने ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, से भी अपील की कि अमेरिकी प्रतिबंधों से ईरान की अर्थव्यवस्था को बचाया जाए.

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ईरान में वैश्विक प्रतिबंधों की वजह से महंगाई 40 फीसदी तक अधिक बढ़ गई है. ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों से ईरान की अर्थव्यवस्था कई साल बुरी तरह प्रभावित रही है, 2015 में राष्ट्रपति हसन रूहानी ने उन प्रतिबंधों को हटाने के बदले में ईरान की परमाणु गतिविधियों को सीमित करने के लिए अमेरिका और पांच अन्य देशों के साथ एक समझौते पर सहमति जताई थी. समझौता लागू होने के बाद ईरान की अर्थव्यवस्था वापस पटरी पर लौटी और जीडीपी 12.3 फीसद बढ़ी. लेकिन नए सिरे से अमेरिकी प्रतिबंधों ने जीडीपी विकास दर को बेहद कम कर दिया है.

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उम्मीद जताई है कि अमेरिका ईरान के साथ युद्ध के रास्ते पर नहीं बढ़ रहा है. इस बात की आशंका जाहिर की जा रही है कि ट्रंप के दो शीर्ष सलाहकार ईरान के साथ युद्ध के पक्षधर हैं. यह पूछे जाने पर कि क्या अमेरिका ईरान के साथ युद्ध की दिशा में बढ़ रहा है, ट्रंप ने बृहस्पतिवार को कहा, ‘‘मुझे ऐसी उम्मीद नहीं है.’’ उन्होंने एक दिन पहले ही बातचीत की इच्छा जाहिर करते हुए ट्वीट किया था, ‘‘मैं आश्वस्त हूं कि ईरान जल्द ही बातचीत करना चाहेगा.’’

ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन और विदेश मंत्री माइक पॉम्पिओ ईरान के खिलाफ अधिकतम दबाव की ट्रंप सरकार की मुहिम के अगुवा रहे हैं. ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड के एक अधिकारी ने शुक्रवार को कहा कि ईरान की मिसाइलें फारस की खाड़ी में स्थित युद्धपोत तथा पश्चिम एशिया के किसी भी हिस्से में आसानी से पहुंच सकती हैं. अर्द्ध सरकारी समाचार एजेंसी फार्स ने मोहम्मद सालेह जोकार के हवाले से कहा कि ईरान की मिसाइलें दो हजार किलोमीटर तक जा सकती हैं और क्षेत्र में किसी भी ठिकाने पर हमला कर सकती हैं.

गौरतलब है कि ट्रंप ने बराक ओबामा की सरकार के दौरान ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते से अमेरिका को बाहर कर दिया था. इससे ईरान के ऊपर फिर से आर्थिक प्रतिबंध लागू हो गये थे. इसके बाद से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता ही जा रहा है.

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