अद्भुत है इस कपाल मोचन तीर्थ की महिमा, यहाँ आते ही कट्टर दुश्मन भी हो जाते हैं गहरे दोस्त…

कपालमोचन तीर्थ स्थल का अपना ही महत्व है। यहां एक मेले का आयोजन महर्षि वेद व्यास की कर्म स्थली बिलासपुर में आठ से 10 नवंबर तक किया जाएगा। यह पवित्र स्थल पने आप में एक इतिहास समेटे हुए है।

कहा जाता है और वेदों में वर्णित भी है कि सारे तीर्थ बार-बार कपालमोचन एक बार। यमुनानगर से लगभग 28 किलोमीटर दूर यह धार्मिक स्थल है। यहां द्वापर, त्रेता कलयुग का इतिहास सिमटा है।

अद्भुत है इस कपाल मोचन तीर्थ की महिमा

इसमें देश के विभिन्न राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्ताराखंड व उत्तर प्रदेश से लाखों की संख्या में हिंदु, मुस्लिम व सिख श्रद्घालु सदियों से मोक्ष की कामना के उद्देश्य से यहां के पवित्र सरोवर में स्नान करने आते है।

यह पवित्र सरोवर सतयुग में सोमसर के नाम से जाना जाता था, जो आकार में अर्ध चंद्रमा के समान है।

शास्त्रों के अनुसार यहां श्रीराम, श्रीकृष्ण, पांडव कौरव भी पितरों की शांति के लिए आए। कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद श्रीकृष्ण अर्जुन ने यहां शस्त्र धोकर पितरों की शांति के लिए पूजा अर्चना की।

पुराणों के अनुसार कपालमोचन तीर्थ तीनों लोकों में पाप से मुक्ति दिलाने वाला धाम है।

इसके पवित्र सरोवरों में स्नान करने से ब्रह्माहत्या जैसे महा पाप का निवारण होता है। कहा जाता है कि कलयुग के आगमन से पहले ब्रह्मा हत्या से मुक्त होने को शिवजी ने यहां यज्ञ किए।

किवदंतियों के अनुसार भगवान शिव को ब्रह्मा जी का एक सिर काटने पर कपाली लग गई थी। जिसे दूर करने के लिए उन्होंने हर प्रयास किया। लेकिन सफलता नहीं मिली।

फिर भवानीपुर गांव में गऊ बच्छा की कहानी सुनकर पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने यहां के कपालमोचन सरोवर में स्नान कर उस कपाली से मुक्ति पाई थी।

जिस कारण इस पवित्र सरोवर का नाम कपालमोचन पड़ गया है। चांद के आकार का होने पर इस सोमसर के नाम भी जाना जाता है।

धर्म ग्रंथों के अनुसार महाभारत के रचियता महार्षि पराशर के पुत्र भगवान वेद व्यास की कर्म भूमि बिलासपुर रही है।

कपालमोचन शुद्घि देवी का निवास भी माना जाता है। भगवान शंकर पर लगी ब्रह्मा हत्या की कपाली छूट जाने से इस तीर्थ का नाम कपाल मोचन पड़ा।

अत्याचारी ब्राह्माण की हत्या करने वाली गाय एवं उसके बछड़े ने इस तालाब में स्नान करके ही दोष मुक्त हुए थे।

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कपालमोचन तीर्थ में मुख्य सरोवर के पश्चिमी भाग पर गाय एवं बछडे़ की मूर्तियां मौजूद है।

मान्यता है कि सूर्यकुंड सरोवर में स्नान करने से नि:संतान स्त्रियों को संतान की प्राप्ति होती है। गुरु गोबिंद साहिब भंगानी के युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद यहां 52 दिनों तक रुके थे।

उनकी इस यात्रा के प्रतीक के रूप में यहां पर गुरुद्वारा बनवाया गया। कपालमोचन में एक प्राचीन शिलालेख और गुरु गोविंद सिंह द्वारा दी गई हुकमनामा आज भी सुरक्षित है।

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