महाराणा प्रताप जयंती : ऐसा वीर, जिसे दुश्‍मन भी जिंदा देखना चाहते थे

महाराणा प्रतापहिन्‍दुस्‍तान की सरजमीं पर एक से एक जाबाज योद्धा पैदा हो चुके हैं। इन्‍हीं में एक हैं महाराणा प्रताप। हिंदू तिथि के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्‍म विक्रम संवत् 1597 ज्‍येष्‍ठ महीने केे शुक्‍ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन हुआ था, जोकि आज है इसलिए आज महाराणा प्रताप की जयंती मनाई जा रही है। वहींं अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक यह पिछले म‍हीने 9 मई को मनाई जा चुकी है। प्रताप की जांंबाजी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह कभी मुगलों के आगे झुके नहीं। उनका संघर्ष हमेशा के लिए इतिहास में अमर हो गया।

महाराणा प्रताप का जीवन

महाराणा प्रताप, उदय सिंह द्वितीय और महारानी जयवंता बाई के बेटे थे। महाराणा प्रताप का जन्‍म राजस्‍थान के कुंभलगढ़ में हुआ था। प्रताप ऐसे योद्धा थे, जो कभी मुगलों के आगे नहीं झुके। उनका संघर्ष इतिहास में अमर है। दुश्मन भी उनकी युद्धकला की तारीफ करते थे। इतिहासकारों के मुताबिक, महाराणा का परिवार भी काफी बड़ा था।

प्रताप उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। महाराणा प्रताप ने जब सिसोदिया राजवंश की गद्दी संभाली, तब दिल्‍ली में मुगल बादशाह जलालुद्दीन मोहम्‍मद अकबर का शासन था। कई परिस्‍थितियों के बीच महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की बागडोर अपने हाथ में ली। महाराणा प्रताप, उदय सिंह द्वितीय और महारानी जयवंता बाई के बेटे थे। उनकी प्रतिभा के कायल उनके दुश्‍मन भी हुआ करते थे, जो हमेशा उनकी युद्धकला की तारीफें किया करते थे। ऐतिहासिक दस्‍तावेजों का अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि जूलियन कैलेंडर के हिसाब से महाराणा प्रताप का जन्‍म 9 मई, 1540 को हुआ था। वहीं ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्‍म  19 मई 1540 को हुआ था।

महाराणा प्रताप के बारे में रोचक जानकारियां :-

  1. माना जाता है कि जब एब्राहम लिंकन भारत दौरे पर आ रहे थे, तब उन्होंने अपनी माँ से पूछा कि हिंदुस्तान से आपके लिए क्या लेकर आए। तब माँ का जवाब मिला- उस महान देश की वीर भूमि हल्दी घाटी से एक मुट्ठी धूल लेकर आना, जहाँ का राजा अपनी प्रजा के प्रति इतना वफ़ादार था कि उसने आधे हिंदुस्तान के बदले अपनी मातृभूमि को चुना। लेकिन बदकिस्मती से उनका वो दौरा रद हो गया था। ‘बुक ऑफ़ प्रेसिडेंट यूएसए’ किताब में यह तथ्य दिया गया है।
  2. महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलोग्राम था और कवच का वजन भी 80 किलोग्राम ही था। कवच, भाला, ढाल और हाथ में तलवार का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलो था।
  3. आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।
  4. अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते हैं तो आधे हिंदुस्तान के वारिस होंगे, पर बादशाहत अकबर की ही रहेगी। लेकिन महाराणा प्रताप ने किसी की भी अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया।
  5. हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और अकबर की ओर से 85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए।
  6. महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है।
  7. महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लोहार जाति के हजारोंं लोगों ने भी घर छोड़ा। दिन-रात राणा कि फौज के लिए तलवारें बनाईं। इसी समाज को आज गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान में गाढ़िया लोहार कहा जाता है।
  8. हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहां जमीनों में धंसी तलवारें पाई गईं। आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में हल्दी घाटी में मिला था।
  9. महाराणा प्रताप को शस्त्रास्त्र की शिक्षा “श्री जैमल मेड़तिया जी” ने दी थी, जो 8000 राजपूत वीरों को लेकर 60000 मुसलमानों से लड़े थे। उस युद्ध में 48000 सैनिक मारे गए थे, जिनमें 8000 राजपूत और 40000 मुगल थे।
  10. महाराणा के देहांत पर अकबर भी रो पड़े थे।
  11. मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में अकबर की फौज को अपने तीरों से रौंद डाला था। वो महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे और राणा बिना भेदभाव के उनके साथ रहते थे। आज भी मेवाड़ के राजचिह्न पर एक तरफ राजपूत हैं तो दूसरी तरफ भील।
  12. महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक उन्हें 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ। उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया। जहाँ वो घायल हुआ, वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है। जिस जगह चेतक की मृत्यु हुई, वहां चेतक मंदिर बना है।
  13. राणा का घोड़ा चेतक भी बहुत ताकतवर था। उसके मुंह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी। यह हेतक और चेतक नाम के दो घोड़े थे।
  14. मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85% मेवाड़ फिर से जीत लिया था। सोने-चांदी और महलों को छोड़कर वो 20 साल जंगलों में घूमे।
  15. महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7’5” थी। वह दो तलवारेंं हमेशा अपने पास रखते थे।

महाराणा प्रताप के हाथी की कहानी

आपने महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के बारे में तो सुना होगा, लेकिन उनके पास एक हाथी भी था। इसका नाम रामप्रसाद था।

अल-बदायुनी, जो मुगलों की ओर से हल्दी घाटी के युद्ध में लड़ा था, उसने अपने एक ग्रन्थ में रामप्रसाद का जिक्र किया है। वो लिखते हैं, अकबर ने महाराणा प्रताप के मेवाड़ पर हमले के दौरान अपनी सेना से कहा, ‘मुझे दो ही चीजें चाहिए। एक महाराणा और दूसरा रामप्रसाद हाथी।’

आगे अल बदायुनी लिखते हैं, वो हाथी इतना समझदार व ताकतवर था कि उसने हल्दीघाटी के युद्ध में अकेले ही अकबर के 13 हाथियों को मार गिराया था। वो आगे लिखते हैं, उस हाथी को पकड़ने के लिए हमने 7 बड़े हाथियों का एक चक्रव्यूह बनाया और उन पर 14 महावतों को बिठाया, तब कहीं जाकर उसे बंदी बना पाए।

अब सुनिए एक रामप्रसाद की स्वामी भक्ति

उस हाथी को अकबर के समक्ष पेश किया गया, जहां अकबर ने उसका नाम पीरप्रसाद रखा। रामप्रसाद को मुगलों ने गन्ने और पानी दिया। लेकिन उस स्वामिभक्त हाथी ने 18 दिन तक मुगलों का न तो दाना खाया और न पानी पिया और वो शहीद हो गया। तब अकबर ने कहा था कि जिसके हाथी को मैं अपने सामने नहीं झुका पाया, उस महाराणा प्रताप को क्या झुका पाऊंगा।

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