#नवरात्री स्पेशल: सोमवार को मां भगवती के इस रूप के पूजन से पूर्ण होंगी मनोकामनाएं

l_skand-1460186558एजेन्सी/सोमवार (11 अप्रेल 2016) को मां दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप का पूजन करें। यह देवी का पांचवां रूप है। इन्हें स्कंदमाता इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इन्होंने स्कंद (कार्तिकेयजी) को अपनी गोद में बैठा रखा है। वे कमल के आसन पर विराजमान हैं। इसलिए इन्हें पद्मासन देवी के नाम से भी पूजा जाता है।

देवी के इस रूप का एक विशेष अर्थ है। चूंकि इन्होंने कार्तिकेयजी को गोद में स्थान दिया है, इसलिए हर भक्त के लिए मां का यही संदेश है कि वे उसे भी पुत्र-पुत्री के समान प्रेम करती हैं, उन्हें शरण देती हैं। 

जिस पर स्कंद माता का आशीर्वाद दोता है, उसे शुभ कार्यों में सर्वत्र विजय प्राप्त होती है। सिंह तथा मयूर माता के वाहन हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। माता के दोनों हाथों में कमल के पुष्प विराजमान हैं। 

ये हैं देवी को प्रसन्न करने के चमत्कारी मंत्र

मंत्र

सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
 
ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्
सिंहारूढाचतुर्भुजास्कन्धमातायशस्वनीम्॥
 
धवलवर्णाविशुद्ध चक्रस्थितांपंचम दुर्गा त्रिनेत्राम
अभय पदमयुग्म करांदक्षिण उरूपुत्रधरामभजेम्॥
 
पटाम्बरपरिधानाकृदुहज्ञसयानानालंकारभूषिताम्
मंजीर हार केयूर किंकिणिरत्नकुण्डलधारिणीम।।
 
प्रभुल्लवंदनापल्लवाधरांकांत कपोलांपीन पयोधराम्
कमनीयांलावण्यांजारूत्रिवलींनितम्बनीम्॥

स्तोत्र मंत्र

नमामि स्कन्धमातास्कन्धधारिणीम्
समग्रतत्वसागरमपारपारगहराम्॥
 
शिप्रभांसमुल्वलांस्फुरच्छशागशेखराम्
ललाटरत्‍‌नभास्कराजगतप्रदीप्तभास्कराम्॥
 
महेन्द्रकश्यपाíचतांसनत्कुमारसंस्तुताम्
सुरासेरेन्द्रवन्दितांयथार्थनिर्मलादभुताम्॥
 
मुमुक्षुभिíवचिन्तितांविशेषतत्वमूचिताम्
नानालंकारभूषितांकृगेन्द्रवाहनाग्रताम्।।
 
सुशुद्धतत्वातोषणांत्रिवेदमारभषणाम्
सुधाíमककौपकारिणीसुरेन्द्रवैरिघातिनीम्॥
 
शुभांपुष्पमालिनीसुवर्णकल्पशाखिनीम्
तमोअन्कारयामिनीशिवस्वभावकामिनीम्॥
 
सहस्त्रसूर्यराजिकांधनज्जयोग्रकारिकाम्
सुशुद्धकाल कन्दलांसुभृडकृन्दमज्जुलाम्॥
 
प्रजायिनीप्रजावती नमामिमातरंसतीम्
स्वकर्मधारणेगतिंहरिप्रयच्छपार्वतीम्॥
 
इनन्तशक्तिकान्तिदांयशोथमुक्तिदाम्
पुन: पुनर्जगद्धितांनमाम्यहंसुरार्चिताम॥
जयेश्वरित्रिलाचनेप्रसीददेवि पाहिमाम्॥
 
कवच मंत्र
ऐं बीजालिंकादेवी पदयुग्मधरापरा
हृदयंपातुसा देवी कातिकययुता॥
 
श्रींहीं हुं ऐं देवी पूर्वस्यांपातुसर्वदा
सर्वाग में सदा पातुस्कन्धमातापुत्रप्रदा॥
 
वाणवाणामृतेहुं फट् बीज समन्विता
उत्तरस्यातथाग्नेचवारूणेनेत्रतेअवतु॥
 
इन्द्राणी भैरवी चैवासितांगीचसंहारिणी
सर्वदापातुमां देवी चान्यान्यासुहि दिक्षवै॥

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